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सरवाधिक र लसक भ सवाबीम रख ह |

मदरक !- इईशबरकषाश रन सनातक अाननद परिटिग परस

गोपासजी का रासता अपपर

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- विजञपति “7 --- वितञ यतर-मनतर-कलप समरह म तीन विभाग किय

गय ह । परथम विभाग म यनतरो का समरह ह जिनम स नमबर ४७ तक क यनतर मर दादामद शरोमान‌ जालम

चनदजी नागोरी क समरहद म स परापत हए ह,ओऔर जय- पताका विजयपताका, वरधमानपताका यनतर पराचीन जनपरनथो म स परापत हए ह, इस तरह क सगरह-साहि तय का जनवा को जञाभ मिल इस हत स परकाशित कराया ह |

दसर विभाग म मनतर सपरह ह, और बताय हए

सन‍तर आराधन करन वाल क लिए विशष लाभदाई परतीत होत ह जिन भवयातमाओ को मनतर शासतर पर शरदधा ह उनक लिए यह परकाशन उफयोगी दवोगा।

तीसर विभाग म कलप सगरदद ह जिनम स लोगसस कलप तो सचत‌ १६६७ म शरीमती जञामशरोजी महाराज

दवारा एक भडार म स आपत हवा था, और सहदबी कलप मगल कलप, धममोमगल कलप, सवरण सिदधि कलप परादीन भढारो म स अनायास परापत हए ह, ओर दवीशायनतर कलप पजय मनति सहाराज शरी नयाय सागरजी

न पराचीन पतर-परत-आदि का समरह किया ह उनम स

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[ सतर]

परापण हवा ह यह सब उपयोगी और झाशधक पदप का कषाम पहचान घाकष दोन स परदाशन कराय ज ह मिसका सारा भय पदी परषो सइएमाधो और भापत परभो को ह कि शिनडी यदद कतिया ह और जिनस षाए म सपरद कर पाया ह ।

विधि-पधान जहा दह दवो सकता सपषट रप स

लिया गपा ह किए नी इस पिपकष क निधाहत परषो स विशप शानझारी परापत कर अआराराधन करना बादिए,

कयोढि एस बाय हषाम परषो की सापतरिपपठा और रपा स शीस पमन इन ट

दस परत॥ क परताशन स जयम ममिकराशप हो

बिपपदरार कथन दिया गया द, यह धारबार राबलोवल करता बा हिए जिसस वसतर मरय कऋरएप क दात म परदगा कर म सविधा ह।गी और दाप पतर हप स सफल हो सकता !

धातर गतरज म हमार पाश एफ पर वा पर चौ एः

एगय अपदद बह टतरो बा सपद ह औरवरगी तरद

बजिवएदण यतर जो चभरवि परदशक /वजनसषाप बार

थी पटार अऋ साथ दमन परातवात काणया ह बड

बस जि दित दो धप अविधाहइछ ह हथा। 7: दम गरौ?

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(गत

ह, जो परसड"ो चित परकाशित करान का विचार ह, इस समय परस की असविधा ओर कई परकार की कठिनाइयो को पार करत यह परकाशन कराया ह, परफ सशोधन म परा धयान रखा गया ह, फिर भी अशदधिया रह गई होगी, कयोकि हमन यह भी अनभव किया ह कि यतर पर गए बाद भी मातराए-अकषर गिर जात ह और कई बार बस दवी छप जात ह जब ऐसा दखन म आता ह तो द ख होता ह परनत कया किया जाय बबस बात हो जाती ह, अतः पाठकरगण जहा भी अशदधि दख उस सधार कर पढ ।

परकाशन म परोतसाहन उनही लोगो को मिलला करता ह कि जो धनिक वरग क समपरक म आत रहत ह, जिनको परकाशन म सहायता नही मिललती उनका सभगह‌ किया हआ साहितय उपयोगी भी हो तो परकाशित नही

दो पाता, इस पसतक क परकाशन म हम विशष हानि

हई ह, दो वरष पहल दो फारम एक परस म छप जान बाद हमार लिय हए बावनरपोड क डराई ग पपर किसी दसर काम म ल लिय और फिर वसा कागज नही मिलला-इस भाराजगी स दसर परस को काम दिया तो एक फाम छाप कर उनहोन भी हमार खाथ उचित वयबददार नही किया।

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[ भ ]

पसतक शपवान क हत कई मददिम भमजइ ठदरना पडा इस वरदइ की कटठिसाहयो स इम इस परतक का समय

पर परकाशित करवाकर पराइको का नही द सक जिसक

लिय कषमा मागन क सिथास और रपाण दवी क‍या ह ! इस तरह क साहिसप कर परकाशन करन क ललिप

मि सददाराज भी जिनमड विशयजी साहब न इससाहित किया और शरीयत‌ मगमाह इशलीबत दास बमधइ विभासी न रसाहिद कर भाइक बनाय एतदथ धमभबाई

दिया जाता ह | परकाशम की झवारी कठिया पराचीम ह इसम इमारा

कछ भी नही करबता सककषना माज करन का परिनरम किया गया ह सो आपक सामम रखत ह, शिसका परय आापत परषो को ह।

इस पसतक क परफ बखन थ धरमव पर काज करन म झानसद परस, अयपर क भोपराइटर पडित ईशवरकषाससी न सयष भयात दिया ह इस बलिए बसयदाद दत £ ।

निवशक

बस मदी ! सदनमल नागीरी समबत‌ २००८ पो० छोडी साइडी (मवाड)

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>>

शण

१६,

१२७

अनकरमणिका

सास

असत मनर क जिभास महोदय

उतना महिमा

यन‍तराफ योजना

यनतर लजन योजना

यन‍तर लगबन गध

यनतर लखन विधान

मनतर चमतकार

यनतर लखन फिसस कराना

शर गणित भविषय फल

शकनदा पदरिया यनतर

दरवय परापति पदरिया यनतर

वशी करण पदरिया यमतर

उचचायण निवारण पदरिया यनतर

परयति पीडाहर पदरिया यनतर

मतय कषटटर पढरिया यनतर

पिशाच पीडाहर सतरिया वन‍तर

सिदधि दाता वीसा यनतर

शषठ

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शमप,

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हर

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१५,

भ६,

[ ' ] करमी दाता विबय बीसा यम

सब कामग लाम दाता बीठो सनतर

शाति पषटि दादा बीरा गखर

बाश रचा दोसा बन‍तर

हापतति टजारण बौसा कशय

एड रश निदारण बौसावन

लकषमी परापयि बीस मम

मत पिशाखर-डाफिती पीछ हर रौसा समन

बाल मय इ९ इकटीसा बनतज

समर हक इर जोषीता पतर

परपति पीशा इर उननौसा यनतर

शरम रहता ठीसा फअ

गम पषटि बात बतीसा बसतर

ममदर परष सपा बरभक घोसीता पन‍ञ

ममधआर शबित चोतीशा। पमन

परमाच-पशता बरजक चोतीसा समतर

परन-मालि छततीता पनतर

सरमयाच परदयन बॉलीसा पसत

एथर पीहा हर साटिया यरत

अबीस जिन पसरटिया गरसत

॥३‌

३४

३६

हक

इ८

१६

ह.

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०-2० लहर हछ

पद

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चर

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ह 7५०] ३७ पच घरषटि उन‍तर सथापना

3८. दसरा चोबीस जिन पसठिया यनच

म६ दसो पपटिय यनतर वी सथापना

४० लकषमी परदान अडसडिया बनन‍तर

४१, नितय लाम दाता बहतरिया यनतर

४२, सरमभयहर अमसीया यमतर

४३. भत-परत भय हर पिचयासिया यनतर

४४ सख शाति दाता इकक‍काणव का यनतर

४४, गह कलश हर निनयानव का यनतर

४६ पतर परापति गरभ रकषा यनतर

४७ ताप जयर पीडा हर एक सो पायखिया यनतर

४८. सिदधि ठायक एक सो आटिया यनतर

४६ भत परत भय कषट निवासण एक स छपीस। पन‍त

४०... पनोतयति दाता एक सो सितरिया यनतर

५१, एक सो सितरिया दसरा यनतर

५२ वयापार वदधि दोसो का यनतर

५७४२ लकषमी दाता पाच सो को बन‍तर

४४, सात सो चोवीसा यनतर

२४. लाखिया यनतर

४८६ लाखिया यनतर दसरा

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परज

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कल

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[ छण ] जय फताकय पमतर

मिखय पटताढा यनतर

सऊट मरतन कप

सिखन शरद

जिदधा पतष

परोसठ मोगिनी यतर

धमए चोसठ योगिनी यनतर

उदयय बरा झक शाटा पल

फज सहित बशन छद

पतर महिमा छरय का साभा

बन 'दष मतर

रोड आम दतप मरज अभि गाता मरग

जकषमी परापसि मनतर

झषयदरी मनतर

टवाशया चवषि शरसवती मसत

हमपचिदाता मन‍ज

विदया सिदिण सतर

बटक मरण मन‍द सहददी ककप होगसस कहप

“6 ]84542477<5 शर

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[ र ) एमपसि परदान मनतर

मानपान समपतति सोमागय दाता मतन

सयददिध मनतर

सवभय छदधगव कलश पीडा हर मनतर

जय विजय वशीकरण मनन

समाधि शाति सतदाता मगन

यश परति'ठा शरदिषि करता मनतर

छ दी माल फलप

धममीमगल मकदधि कलप

रपाए सदरिध उलप

बीशा यन‍त बलल‍प

शदधि पतर णाठ काड थशदध

ही 4५ (२६

नफ 8 दीषानी धध ड ।

१०४ १ परय

३१६ टट 725] ह प‌ परम धर स

१३ कद पर)

१०७

१०७

१०८

(१०६

११०

११९

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शठ दध

घड25,

ऐीयाली

न, नी परय नी शी

धरय पर

८ छततापह गण, रदचिवनापदछा

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, सत]

इस पसतक फ समपादक की ममपादित

परकाशित पसतको की सची

न नाम कीमत

१ चटर रममा भौर कामी भरणार ०४०० २ दसौपपिदस ०. प०० ३१ बलतबरणो सिदध ०- ए-७ ४ भबाड क नय बबकी क परति सदश भट ४ जसतठमर म अमसकार ( गजराती ) ०-० १००

घि ७. इसरी आषतति ०5 म ०

७ कसरियाजी तीरय बा इनिददास ०- (२०७ ८ ,, परी भ बतति 9-१२-०

६४. मवकार मददाममतर फरप ह #-० १० ,, बलरी आयतति 9. ९-० ह१ गरषि महा सवॉग भाषाश झादि १ ८-७

११ छीलातरी शवाग मट १३ हानियगा ३०%

ह गत वि त इह ०- ३-७

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[ ढ )

१४ नवकार महामनतर कलप तीसरी आचतति १८०

१६ सनातर पजा साथथ ०-६-०

१७ दशन नयाय सतवन माला १-०-०

१८ सामायिक रहसय (गजराती ३०००)... मट

१६ सराक जाति और जन वरम भट

२० सराक जाति अन जन धमम भट र र

२९१ दवसिराई परतिकरमण सतर साथ शबदाथ

भावाथ रहसय हत सहित १-४-० २२ दसरी आदतति ,, » १-८-०

२३ वरषावप महातमय सट २४ नवाण यातरा महातमय भट

२४५ जगसिदद शठ भट

२६ स +८ पसतको म पषपाक नही छपा ह । २६ जिननदर गण सतवन माला

२७ दवबय परदीप हिनदी अनवाद २८ नीमच बतीसी

२६ यनतर-सनतर-कलप समरह १०-०-०

३० ऋषि सणखतञ यनतर २३ इच का ०-मर-०

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[6 |

अपरग? पसतक बची

१ अमतराय कम की पशा साथ का सहित २ गहसव घम, कजिकाल सजञ रचित का

हिसदी भमवाद ३ अटराइ बयाकषपान ४ नमबकार मदहामसच महातमय ४ समकित परदीप-अझनणाद

६ पटाकण कलप-विघान सददित

नमसकार मसददामनत मदठारय

भह पसतक कइ सचर- सिदधात और परयो की सहा- घता स किला गया ह | पक पक अकषर थो दो क बल!र पद अकलद आरादि का परा बहन ह पचपरमपठि म बरप डिस परसयर भदित दोत ह सो सममपधा गया ह सिता- बरथा म धयो किस परकार कत दवाठा और पच परमपटठि क बयय क साम आधमा का बयय का किसना शाढ सपप

ह झिसका खलासा किया गय। ह पसतक पहन थोरय ह | कप रही द |

पसा

सनदनमतत नागोरी पन पसतकाकषप पोसट- छोटी घाइडी (मवाड)

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[ ड८!

88 यतर-विशिषटता &

पसतक की तयारी चलन रही थी इतन म सयोग- घश बहत परान समय म लिख हए जीशा पतर मिल

जिनम यतर विषयक छद लिखा हा ह. कछ तो

कागज फट गया ह और जीणता इतली आई हई ह

कि पतरो को पढ नही सकत छद की परी नकल छपवात

तो धम विशष दरष होता परनत वबस बात ह फिर कछ साराश जो दहभारी समझ स आया ह उसका वरन

इस परकार स ह।

(१) लास लाय न कर जल, शतत जीत सपराम ।

गरभावास पडतो रह । (२) शत यथतर. खबव वयाधि जाय ।

(३) छततीस जवा जीत सददी | चोतील तसकर न लागहददी

(४) दसस' परीत न टट, वददोतर वदीवान ज छट,

चाललीस टीडी नही लाग, बावन मगढा दवार न शआच, जोगणी दोष चोसठ नास, वदवाद'** सनन‍तरम बध घघ अति जोरी ।

इस परकार क चरणन स यतर महिमा पर और भी

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[दढ ]

विशवास पठता ह, जाखिय यतर स भगमि परकोप नही होता सौ क पमशर स भयाधि नए दोतो ह और छतीसा जधारी को या सपटबात करो बहत उपयोगी दोता ह बोतीस पसतर स योर मयय मिटता ह | पक इजार का यतर टटी हऐ धरीत का अलरसबान करता द

बहोततरिया इत क परभाव स बदीवास छटतकान म सदा शदा दोठो ह, भाननीसा पतर विधि सहित लिख खत म रख दत और किसी पकत क ऊपर पिटसम कर या गरद को बछ पर बाध दिया जाय तो टिपटिया महदी वरत ओर नकसान भहदो दीठा बापम कय यतर पास म रखर वाला मशहा करीत कर झाता द चोसट फ यमत स थोगनी का उपडद मपट दोता द ऋो। पयशतिसा ड, प बदधि दीप दोती ह इाझर अबाो याद आजाती । इस ठणड स छदर क तीन पपत लिख हए # पलढ

साराश खिल‍दन का यद सतकब ई कि घच भदिस। ८ बयान मरातरीन पतरो म इस परकार कषिणा सिकषता ह |

धअतत

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जा. पागल पण नगबीक... -फयग कफ... वा

| भी जनाघारय थी मदगारक जिनशदधि छरी भररमी मदाराघ

? हा .! सि णएकक छा...

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घिनक क(कमरलो स एक अआचाव एक शपाधयाय प पद परदान हआ ह | |

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2 शरीमान‌ सवसथ आचाय दवश र

3. शरीजिनऋदधि सागर सरिजी महाराज 28 गरदव !

आपकी कराई हई जिन परापाद‌ परतिषठा

क अनक शिललालख आपकी अमर नयाथा का

समरण कर रह ह और शासनोजनति क काय

जो आपक दवारा दो पाए ह वह भी चिर- समरणीय ह अतः समरणााजली रप यदट आपव

परषो की कति का सगरदद समरपित द

सो रबग म रवीकार कर अनगदवीत करिएगा। । ० 77727 22227 0228 22399 ६66६

आजषाकित सवक -- |&# चदनमल नागोरी . एिट छोटी सादडी (मवाड) (*

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वीराय नितय नमः

खसचछ « छगन‍चछ >> कलफ सयथह

--६००८०- हा

यनतर मनतर क जिजञास महोदय !

आपस निवदन ह कि ससारी आतमाओ को

अमक परकार की विडमबनाए लगी रददती ह, और उनको दर करन क लिए कई तरह क परयतन किय जात ह, उन परयतनो म स एक परयतन यनतर मनतर दवारा दव की सददायता स दख दर करन की इचछो भी ह

झओऔर ऐसी इचछाए कब होती ह कि जब दम सब तरह क परयतन फरक थक जात ह फिर दव की सहायता लना समतो ह।दष को परसनन करन क, आकरषित

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ए] यरतर-सधच-कप सपरद

काम क उपाय मसतर थमतर धयाम पजा, सवपन मट झादि मफय मान गय ह, इस परकार क विधान म बिरोप हप स विशवास होन स शरदधा करम जाती ६ और परष ऐस कारपा म इचत चितत होकर निज परधथसन म पिजय पादा ह, इसक बहत स दवाइरण शासतो

म परतिषादिश ह ।

बह सब करन स पहल समरस घयान क किए

दषारी करत सात परकार की यदधि की ओर अबरय धयान दमा चाहिए“

चवा-- (१.

अजजञ बसन मन समिकय, हसपीपकतख सार | नयाय-रवप-विधि-घदधता, शदधि सात मकर ॥१।|

भाषाब- शारापमरा करत समरभ गरीर, बदध, मन, भसि, रपकरण टरसम-सममी, और विधि-विभाम अरथात करिया पइठ साथो दी विशष दवदधसाम शोगा तो झारामना मी ददध दो सकगी।

बहत बार ऐसा भी दवोता द कि दशलौ भजपप अपपी

धषापय दषटि स शीम दी सिदध करन क दत, विधात

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यनतर-मनतर-कलप समरह ३

कछ कम दवो पाया हो तो भी उसकी तरफ धयान नही

दता और फल सिदधि दखस को उतसक रहता ह। इस तरह क शीघर सवभातरी साधक परष को धयान दिलान क लिए कटदा ह कि,

यथवा विधिनालोक, न विदया गरहणादि यत‌ ! दिपयय फलतवन, तथयदमपि भावयताम ॥२॥

भावारथ--अधिवि स परहण की हई विदया मनधर यनतर तन‍तर आदि छछ भी हो, विधान रहित गरहण

की ह तो वह विपरीत फल दगी इसलिए लोकम विचमा चाह जिस तरह परहण नही की जाती परथात‌ इस तरह फी शीघरता व अरविधि को शरगरदवित माना ह।

॥ उपयकत कथनानसार विधान को पहल समपरण

समम कर साधन करना चाहिए जिस मनषय स विधान

बराबर नही होता वह असिदधि म विदयाका दोष बताब तो अनचित ह ।

साधन करन स पहल लायक हो पाए ह या नही ९ इसका विचार अरवशय करना चाहिए । समझान क लिए ,उदाहरण बताया ह कि, औषधि पषटिकारक

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४] बमव-मनत-कलप सपदट म-त--कततगततलफलपनल तपमसलनपटरनरगपसनञयि

ओर अनभवी बश 6र बनी हई ह परसत उस पान की शकति शरीर म नही ह वो भौपषि क‍या कर सकती ह | पान बादइ भी रकषा तिशमम नही 7 रख सकत ह थो रोग नषट मददी दो पाता और शमणाता बढ लाती ह, ऐसी परिसपिधि रपरिबित दवो शो पलौषध का और वश का क‍या दोप ई | टीक इसी धर& सममदो कि बलत-मसज को सिदध करन क गरोगप पदो हो पाए हो-अभजबा

सिदधि दवोम क परचात मी सिदधि कया झनचित हक ४ ग किया जाय हो परापत सिदधि मी नएठ दवो जाती

दव-अभिपटायक सालबी स अधिक छपयाश बसत दोत ह. भौर बह अनिषट कारम म सहायक मददी होत अतः

साधक परप करो इसका विशष धयान रखना चाहिए। मतराधीन दब दोत स शहदापक दोत ह परत साथ

ह परप की परथनलता सी दवोना चआाडिए एक छशाहरणज स समझ कषो कि दो बासरको का अशम पक दी बिन एक दी पघडी पकष कषमम इशच म हक दो और भधशइमास कशडलली भी पकसी दवो परसत पशपाह क करण पक कर राधय मिलता ह और दसर को पटकाई मिकषदी ह।

दोनो अभिकमर पाय ह परशत परण सचय क

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यनतर-सनतर-कलप समरह [ ४

अनसार पात ह । जब पएय हट जाता ह तो मनषय

कितन ही परयतन कर सिदधि नही होती, इस विपय

म कहा ह कि--

यपा अर भजञ -मातरण, भजयनत परवता अपि |. तरहो ! क वपमय, भपमिकषाउपिनापयत ॥

भावारथ-जिन परषो की भरयटि-आख क पतषक फिरन मातर स पवत का भी भग हो जाता दवो, ऐस बललवान राजा को भी जब करम की सतता घरती ह. तब भिजषा भी नही पा सकत ।

5

जाति चातरथ दवीनोडपि, करमणयभयदयायह ।

जणादरदभोडपि राजा सपात‌,छतर छनन दिगनतर ॥३॥ . भावारथ--जाति और चतराई स हीनता पाय

हए मनषय का जब अभयदय करन वाला करम उदय म आता द तो कषणवार म ही रक मनषय नन‍द आदि की तरह जिनक लिए “छतनः आकाश म धमत ह और वह पलक मातर म ही राजा बन जात ह।..-

4

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| सघसव-मसथ-कफरप सपह

दोनो छदाइरज बराबर समझन धोगय ह और ऐसा समममा कर कोई परष भिरधमी की धरए बठा रह हो इस फल सही मिदधदा कदचयम स इरिभरता सपट होती 2, भौर कई परकार क ठयमा म दव भाराघन का रदयम भी मर की पराचोन ससकति क अमसर अदर करन बोगय ह | ह

असचव-मशतर भी ममषप को-रोगी को गरौपधि की तरह कषासदाई डोत ह । परनत जद भामषय समापत होता दो बदद पर भौषधि ढकास नही दती, इसी तरह स पापकम का उप दो तो पशयाई का ककष पापोइस

बी धमापति क बार मितरता ६। इतम कशन पर स

समम लना भाहिप कि मनय सव यपित पही ह। यदद तो हराय परषो क बनपपर हए £, मिन पर विशणास करना डी पादिप परसत अपना चारितर कम परकति, ओर सवमातब को भी गखना इचित ह कि इस करा तक बोगयठा पा सक. इस हरद सम कर सापय करोग हो खिदधि शीम दो सकगी ।

॥ यनचाडः महिसा ॥

शारवकार महाराजा न डिस परकार सयकतापर स

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यनतर मनतर-कलप सगरह [ ७

मतराकषर की योजना की ह, और जिनक धयान समरण मातर स मतरो क अधिषठाता दव परसनन होत ह तदनसार अछ योजना भी की गई ह, जिसक आलखन को यनतर

फटटत ह, और य दख तो मन‍तर-यनतर का जोडा ह; जिस परकार मनतर शकति बलवान होती ह, उसी तरह स यनतर शकति भी बलवान मानी गई ह जब एक अक क पास दसरा अक लिखा जाता ह तो दस गणा हो जाता ह, गिनती म नौ अक ह और दशवी मीडी आती ह जिसको अनसवार भी कहत ह। नो अहछ अपन गण पर खड रददत ह, और अनसवार का गण गौण हो जाता ह, इसलिए दसर अको की सददायता बिना गण का परकाश नही हो पाता, और जब सददायक मिल जाता ह तो पर बल स निजञ सखया परकाश म अती ह।जोड क अनसघान म भरी अलसवार फी गिनती नही ली जाती परनत अनत म सखया बल दश शणा दवो जाता ह। जिस परकार अकषर फ मिलान स ऐस शबद बनत ह कि वह पराथना रप दवोन स, परारथी की इचछा को परी करत ह, और ऐस शबद मनषयो को तो कया--भरवान ! को भी वशरम - करन की. शकति

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प ] भलय-मसतर-ककप सपह दिन मन अनननम.++--3320:--333 +पननन-3०३3आभ५५3«3५3>39:33»+++.. ५०५७० 2 »»००5०«.».

बाल होत ह, सिसका खास कारण झततरो का मिशलान

ओर डिनक समरण मातर स दव दासव राकषस आादि सतबगसी, रशोगसी झौर तमरोगणी सब यश म हो

बात ह, ककिन योअना रोतसर दो, सगीत, शनद, कबिता शोदि बासतविक राग रागणी सहदित दो तो बह और भी शीप फकती ह । इसी सलिए सटोत मसतर काबपादि को योशना राग भय होती ह, सिसम हसव

दीप पदऋशतर छप गठ सयकतकषर आदि कापपान रकषना चाहिए और सलारण परणाम रप स दोवा रहगा तो विशष आनतयद आयगा रवाइरस स सममखो

कि एक बिनती साभारण शबदो हारा की गई हो, दसरी नमरता परवक सारबाददी शपदो म दी गई हो तो दसरी बिमती का असर जल‍दी हो छाता ह, भौर तीसरी बिनसी कविता या छलद म ह खिसस वासतविकता क

पिदयाय अरखकार दी शो तो टच नीच शबद बोकन पर मी बड विशष पियकर होत ह, डिसक सनन मातर स ही परसभठा झाती ह, सकति माग इसी खसिए पराहष ह

कर पसी पोडना अनादि कर स चदी भावी ऐ । ऋपर बतान हए कथन क अनसार अकषरो क

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यनतर-सनतर-कलप सगरह [ ६

मिननान म जो बल रहा हवा ह, उसी परकार अक म भी ह, ओर अक योजना म इतना सप ओर सगठन ह कि जो अकषर योजना स अधिक आग बढ जाता ह'।

उदाहरण ह कि जब एक अदार क साथ दसरा अकषर मिललाया “जाता ह तो उसका आधा रप नषट हो जाता ह, और जब एक दरसर क साथ मिलन क लिए निज रप को आधा किया गया ह तो जिस अकषर क

शामिल वह मिल रहा ह अपन म मिललाकर ' उस आध

अकषर का सतकार करता ह, और जहा दोनो का एक साथ उचचार टवागा, वो पहिल उस मिल हए आध अकषर का उचचार स पहिला सथान रहशा इस परकार स ऊपन म मिलत हए या मिलात हए अकषर को निज रप को घटा ढना हो गा, इस तरह की वयवसथो' अको

'म नही ह, यह तो जितन भी अक' ह, सब ही सवतरनतर ह, नतो एक दसर क साथ मिलत ह; और न आध होत ह, ओर न निज बलल को कम होन दत ह, और साथ दवी एक दसर का आदर करत हए इसन सप सगठन स रहत ह कि जिनका सथान दश गणा बढता जाता ह, साथ दवी एक अनसवार अयथात‌ मीडी जो सवय

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१० ] ... यव-मात-कषप सपरद

कझपन थकष पर बिमा किसी वसर अक की सहयायता

क बगर, निमर थन बतान म अरममरथ ह परसत ऐसी मीडी को सी अपन बीच माई हई झानकर योग डोज गिनती नही करत हए भी इसका बचचन दश यणी ससया तक पहचा शत ह, झौर मीडी इारः सखया बढती जाती ह इस तरह बस भ'झम एक क पास एक आता ह तो वश गणा बल बढ जाता ईद, भौर साय दी पसा सप द कि जिसक साथ एक ह ओर दो तीन आग आउठ जात ह तो पिलचज अक का ककष कायम रइ कर आग भाग बासा अक भौर ससया बदाता जाता ह, शदाइरण स सममको कि एक क पास पाच झाया तो

परदइ हो गए, दोसो की सघि स दस गया बह गया इस हर की ससधि धो कायम रहती ह और पाच क पास दसरा पठा झा गया तो पक सो पतरपतत हो जात द शरपात जिस अछ क पास जाकर कोई अछ बठगा वह वश गणी सखया कर दगा, इस तरशका सप-सगठन और अपन पास आए हवए थादि भाई थान अल को बढात रहत ह, इस तरह की सपपा कय

बडना एकतर रइम तक दी होता ह, लब एक स पर

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यनतर-सनतर-कलप सपरह [११

अलग दवो जात ह. तो फिर उसी मल रप पर आ खड होत ह और सखय। बल घट जाता ह।

इस तरह भिनन भिनन अछ की योजना जिसकी गिनती अपतक सखया तक आ पहच उसम विशष सिदधि मानी गई ह, और उस सखया क शरकको - को यथावयव- सथित कोठ बनाकर लिखना 'उसी को यतर कहत ह,

ऐस यननो की साधना स चहत घड कारय भी सिदध दवी

जात ह। यतनो की शकति 'अपार होती ह जिस परकार अकषरो की सयकततास मतर बनता ह और मतर दवारा आरापना स दव परसनन होत ह, ऐस मतर सप क विष को बिचछ क जददर को जतार दत ह और मनन दवारा कठिन स कठिन कारय सिदध होत ह, तदनसार यतर भी अमक अछ क मिलान स अमक दव को परसनन कर लवा ह और वह दव परसनन हो जान बाद उस यतर क शराधीन

दो सवक क काय को सधारता ह, जिनकी गति बहत बडी विशाल होती ह, इसी लिए मतर क साथ यतर का

सपरण सवनध ह, इसी' लिए ' शरीमकतामरसतोनन, शरोकलयाणमदिरिसतोतर, उतरसगगहरसतोतर, तिजयपहत सवोतर, घटाकरणसतोतर आदि क मनतर शरकनय-अलग

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१२ ] ससत-ममतर-कहप सपह

इन हए ह और परति मसतर फ साथ घतर मो बनाए गए ह, जो आपद पडपो की करि ह शिसको विधि-विघाय सहित छिलकर पास म रखन स या पञरम करन स ककष मिलतता ह इपरस ठरइ पजका परभाव वहत बडा

होता ह, और विरोप बढ पडता रहता ह, समझ सको हो सममझो कि इसी किए हदसारो दवास पावर स

चकही हई मशीम को यतर कदइत ह, और जिस परकार बरागन पतर पोजमा न शिल परभाव को सारी दनिया म फशा दिया द,तदनसार यदद धमतर योजना भी परजाचारयो रचित व मपरदित होम स झतपशत परभाव बाकी ह, जिसका आदर कर जो मनषय यथा विधि आरापमय

करगा छलास पाचपर साथ ही भदध) म कमी लत होसा आहिए, जब झयाप यततर को ब पमतरापीन दव को आइर

की दषटि स बखोग तो बद मी कमापक ऊपर कातसकषय साथ रखगा।

॥ यनयराक योजना ॥ शतरम जो विविध परकार क सास दोत ह, तिन

स कई यतर धो पस दोत द कि जिनम किस अहो को

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टचिचचस७!!»थवय/6भ)/)फ/स/चचजाडःःःः-ः

यनतर-मनतर कलप सगरह [. १३

किसी भी तरफ स गिनत हए अनत की सखया एक दी परकार की आवगी, यहधा इस परकार क यतर आप

दखग, इस तरह की यीजना स यह सममः म आता ह कि यशराक अपन बलको परतयक विशाम एक‍सा

रखता ह, और किसी दिशा म भी निज परभाव की

कम नही होन दता ।

यतरो म भिनन-भिनन परकार क खान होत ह, और वह भी परमाशित रप स व अको स अकित होत ह, जिस शरकार अतयक अक निज बल को पिछल अक म मिला दश गणा बढा दता ह, तदजलसार यह योजना भी यनतर शकति को बढान क हत स की गई समभना

चाहिए । | ड

जिन यतरो म विशष खान ह, और उन खानो म अकित किए हए अको का किधर स भी मिलान करन स एक ही योग की गिनती आती हो तो इस तरह क यतर

अनय हत स समकना चाहिए,और ऐशय-तरो का योगाक करन की भी आवशयकता नही होती, ऐस यतर इस

तरह क दवो स अधिषठित होत ह. कि जञिनका परभाव

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१४ ] पसतर मख-कसप सगरह

भयकषिपट ोठा ६, मस मचयमर भावि क यतर £, इस लिप डिन यतरो म यागाक पक म मिजवा हो हनफ

परमाव म या कषाम परापति क कषिपर शका करन करी झावापक‍ता नही ६ |

॥ यनशर कषतर योजना ॥ झप यतर का सघन-सा सिदधि करम क कषिए बठ

इसस पहल यतर को लिखन की योशना को सममरो बिना समम था भमपास फिए बगर यतर कषिजोग तो रसम मब शो शाना समव द। मानजो भल दो एई ओर पफिस हए अड को कार दिया या मरिठा विषा धरोर उसकी सगह दसरा लिखा तो वह पतर कामदाई

परददी होगा, पदि अक सिलषत समय झपधिक था एक क बदस वसरा लषिसा शगरा तो यह भी पक परकार की मझक मानी गई ६, अता इसी तरइ स कषिकषा गया दो तो रस कागज या भोज-पतर जिस पर सखलिकष रह दो रसको छोड दो भौर दसरा सकर खिखम शगो, इस तरह की पर मी मझष न होोम पाय इसी किए पहल दिखन का भरमवापत कर धलना चादिए |

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यनतर-मनतर-कलप समरह | १५

यनतर लिखत समय यनतर म दखलो कि सब स छोटा यान कम गिनती वाला अछ किस थान म ह

ओर जिस खान म दवो उसी खान स लिखना शर किया जाय और वदधि पात अछ स लिखत जाओ, जस यनतर म सबस छोटा अक पजा ह तो पाच का अक जिस खान म ह उसी खान स लिखन की शरबात

करो और वाद,म वदधि पात हए यान छ-साव-आठ

जो भी सखया लिख हए स पहली अधिक दवो उस लिखत हए यनतर परा लिखलो । ऐसा कभी मत करना कि यनतर क खान अकित किय बाद परथम क खान म

जो अक हो उस लिखकर बाद म पास म जो खान ह उनतम लाइन सर लिखत जाओ । यदि इस तरह स

यनतर कषिखा गया ह तो वह यनतर लञाभ नही पहचा

सकगा, छसी लिय यनतर लिखन की कला को बराबर

सीख लना चाहिय, ओर लिखत ससय बरावर सावधानी स लिखना योगय ह ।

॥ यनतरलखनगनध ॥

यनन अषट गध स, पचरगध स, और यकषकददम स

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१६ ] यसथ सनच कप सपरदद जीन >3+-- -+

पविख यात ह, और कलचस क कविए मी अहय विपाम ह, ऋनार की, अमकषी की और सोन की कलम स लिखमा बताया गया सो भन‍तर क बयान म जिस परसपर

दी कसम भा २घ का माम झव बसी तयारी कर अना बाहिप | कषिकरत समय कशम टट जाय दो पतर स लराम मही दवो सकगा शौर लिखत समय गधावि मी कम स दो जाय जिसका इपयोग पढल डी कर शकषना चाहिए। तह

अषट गध म (१) अगर (०) तगर (३) गोरोचन

(९) कलरी (२) चसदन (६) सिलदर, (७) कषालल अभदम भोर (८) कशर इन सधका एक आअएजञ म भोट कर तपार कर कषना भौर लिखम की शाडी झसा रस बना सना !

अऋषट गण का दसरा विजारत (१) कपर (+) कशलरी

(३) करार (४) गोरोचम (४), शरपर (६) चनदज (७) अगर और (८) गहआा इस तरद आठ बतत का बनता ह | ट

कपठ गाल का तीसरा विधास ((१) कशर (२)

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यनतर-मनतर-कलप सगरह [ १७

कसतरी (३) फपर (४७) हिगल (४५) चनदन (६) लाल

चनदन (७) अगर, (८) तगर लकर घोट कर तयार कर लना ८ न

हि

प गध का विधान, कशर, कसतरी, कपर, चनदन, गोरोचन, इन पाच बसन का सिशरण कर रस बना लना |: !

यकष करदस का विधान १) चनदन (२) कशर (३) कपर (४) अगर (५) कसतरी (६) गोरोचन (७) हिगल (5) रताजणी (६) अमयर (१०) सोन का बक (११) मिरचककरोभ, इन सब को लकर शाही जसा रस बना लव ।

ऊपर बताए अनसार शाही जसा रस तयार कर पतचतितर कटोरी या अनय किसी सवचछ पातर म लना, खयाल रखिय कि जिसम भोजन किया हो अथवा पाली पीया दवो तो वह कटोरी कामम नही आ सकशा, शाही यदि तातकालीक न बनाई हो और पहल थनाकर झखा कर रखो हो तो उस काम म ल सकत ह सब तरह क गधघ यथा शाददी की तयारी म गलाब जल काम म लना चाहिए, और अनार की या चमली की कलम

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अपकरसयमम कस कर ऋजाकल तक कप पट पक नजक लक कल पल मनपक अप परत पदक जनक ततक अर न हक

हप ] यमतर-ममज-कशप सपरद

ऐकी शगकन स बान गयारह, परह पगल पषमबी होमा चाहिय और पाद रमखपिय कि गयार‌इ शगकष स कम लना मना ह, सोन का नितर हो तो वद भी नया दोना

चाहिब जिसस पहल कभी सम कषिशषा गया दवो जिस दोसडर म निव डाकषा आव ससम लोह का कोई अश न दोमा चादिय इस तरद दी तयारी समबरमित रप स की साथ!

मोजपतर सवचछ हो, बाग रहित हो, फटा हमा

म हो, बसा सवसछ दखकर ससा और बमश जितना बडा लिखना शो इसत पक अगक अरगरिक छतपा चौडा मला चाहिप भोअपनतर सम मिकष सद तो ऋभा५ म

अरावशयकता परी करन को कागज मी कराम म स सकत ह ।

॥ यनतर लखन विधान ॥

धसतर खिलन बठ तब पदरि बपर क साथ विघान

हिला हवा मिल दो इस पर पपान दना 'दादिए और खाल कर पतर शियत समप मौस (दमा इचित ह, मखासन स झासम १२ बठना सामन तोडा-बढा

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यनतर-मनतर-कलप समरह [ १६

पाठटिया था बाजोठ हो तो उस पर रख कर लिखना

परनत निज क घटन पर रख कर कभी न लिखना

चाहिए, कयोकि नाभि क नीच का अग ऐस कारयो म उपयोगी नही माना ह,

परतयक यतर क लिखत समय घप दीप अवशय रखना चाहिय और यतर विधान म जिस दिशा को तफ मख करक लिखना बताया दवो दख लव यदि न लिखा मिल तो सख समपदा परापति क हत पब दिशा की सक और सकट कषट आधि वयाधि क मिटान को उततर दिशा फी तफ मख करक बठना चाहिय, तमाम

करिया करन शरोर शदधि कर सवचछ कपड पहटटिन करक

विधान पर परा धयान रखना उचित ह ।

लखन विधि ऊनक घन हए आसन पर गरठ कर, करना चाहिय और सथान शदधि का भी धयान रगयना ।

॥ यनतर चसतकार ॥

यनतर का बहमान कर उसस लाभ परापत करन की परथा पराचीन काल स चली आती ह। वारषिक परष

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२१० ] यसतर-ममत-कजप समई

दीवाशची क दिन शकवन क दरबास पर था अमवर छददा इब रमापना हो धइ पर पदरिया भोटीसा, परसठिया पतर छिलन दी परथा पडरत लगड परसन म आती ह,

विशप म परह सी दसा ह कि एमयती स‍तरी कषठ पा रही हो और झरकारा न दोता दो तो पिप सददिद यतर कषिखकर इस सतरी को दिसान मातर स दो छटकारा दो जाता ह और किसी सतरीको डाकिनी शाकिमी सवाती दो दो बतर को दवारयो पर या गल म भापन मातर स था सिर पर रखन या विशवान मादर स झाउम हो जाता ह।

पराचीन ढाकष म ऐसी परथा थी कि, डिज या गढ की नोम कषरातत समय अभक परकार का ससत जिसम

दीपक क साथ नीस क पाय म रखत थ इस सभय मी

चहद स भमषय पनतर को दवोभ क बाप रहत ह और जन समाज म दो पजा करन क असतर मी हात ह. बिन कय नितय परति परजञातष कराया साता ह और चसदस स पजा कर पषप बढात ई, इस तरह स यतर का बहमान

परारपीन काका स इ।ता झाया ह करो परव तक चतो रहा

ह, साथ दी भदया भी फसवी ह, शिस सहषप को यतर पर भरोसा होता ह रस फशमी मिकषता द इसी कषिप

परदराबान होगा विशोप शास हरान ह। भरदधा एछप स

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यनतर-सनतर-कलप समरह [श१ कब <ज>->+८ >> पनन >> + 33 +--कननन++ «मना +-- ०० ०- २०२४० सतत

आतम विशवास बढता ह, एक निषठ रहन की परकति

हो जाती ह और इतना हो जान स आतमबल आतम

गण भी बढत ह, परिणाम मजबत होत ह और आतम शदधि होती जाती ह इस लिए विशवास रखना चाहिय ।

॥ यनतर लखन किसस कराना ॥ जो मनषय मतरशासतर, यतरशासतर क जानकार और

शअकगणित जानन वाल तरदमचारी-शीलपान उततमपरष हो

उनस लिखाना चाहिय, और ऐस सिदध परष का योग न पा सक तो जिस परकार का विधान परति यनतर क साथ लिखा दवो उसी तरह स तयारी कर यतर लखन कर और लिखत दवी यतरको जमीन पर नही रखना ओर जिसक लिए बनाया दो उस सय सवर या चनदर सवर म दना चाहिय, लन वाला बहमान पवक परहदण करत समय दव क निितत फतन भट कर तो अचछा ह । यनन लन बाद सोन क, चादी क या ताव क मादलिय स यतन को रख दना भी अचछा ह यदि सादलियान रखना हो तो बस ही पास म रख सकत ह, यतर को ऐस ढग स रखना उचित ह कि बह अपवितर न होसक, मतय परसग म जञोकाचार म जाना पढ तो वापसी पर धप खबन स पविननता आ जाती ह।

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श२ ] ससतर-ससतर-कप सपरद

॥ झकगणित मविषय फल ॥ ---#क#ईव--

अहछ योगस मविषय फश भौर ससत तख का दाह जाम सकत ह बतमाम समय म भजबिदया क परिपतात भपलप सकया म रह गय ह, भौर शिसका खार कारश यही पाया जाता द कि पराभरीम बिशा और मल‍तति का विकास करत क काय म सहापक मही मिलथ, अकायित स मस-तख सविषय और आपतति आदि किस परफार दाल सकत ८ जिसशय पक साहस द कि जब सभ‌ १६१४ म कषदधाई जारी हई थी झइस समय सात दश क राता बाइशाह था अधिषयरी जओ दश क

सरवकषण प सबकय सगठन दो गया था और पक सकषाइ स परचकर क दशमन स सामना करन को मलट गए थ जिसका दामि सलवाम सब बशो को सपनाधिक परत समान मशा म सोगना पडा सा डिसका मविषय झाकडा गिनती स खाम न को परथम शरमसी स कषदम

बार नौ राजी क माम दिशपग भौर ४सपक का जमम सबत‌, राजयामिपक बच , राजसतता भोगन का बरकाश

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| वन अिजजडा सीन लता. लनऋ

यनतर-मनतर-कलप सममह [ २३

परतयक की झायका बतमान वरष लिख कर सबका योग करग तो सबक योग र८५३४ आत ह, यह बात आशचरय पदा करती ह कि इस योग वाल सबक सबको सरब

दख आपतति समान दरज भोगना पडी थी । जनम- राजया- राजय-

न नाम सन‌ भिषक सता उमर योग

१ | इचचलड क राजा १८६४१६९१० ७ | ४२ ३८३४ २ अमरिकाक परमच [१८५६१६१२| ४ , ६१ [र८३४ ३ | फरास क परसीडट [१८६०१६१३ ४ | ५७ ।३८३४ ४ , इटकषी क राजा (८६६ |; नर

। १६०० । १७ घप | ३८३४७

| रशिया क शहनशाहट १८६८ १८६४२३ | ४६ ,३८३४ 5 | बलललियमक राजा (८०६ १६१९ ४ | रप (वपर४

७ | जापान क शाह जज! ६१९४ & | र८ इिडद2 ८ | खरविया क राजा १८४४ १६६०३,१४ | ७३ [रप३४ & मोटोनिशिक राजा १८४११६१०, ७। ७६ ३८३४

इस यदधकालक बाद सन ११२६ म दसरा यदध जारी हवा और सन‌ १६४४ सपटमबर की सात तारीख का दोबज बध हवा इस यदधम भाग लनबाल मखय सतताधीशोका जनम आदि का सन‌ दखत एक दी योग

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शह] अखतर मखय-कसप सपरह

झादा ह और समान वरज आझयपकति सागन का मान

कराता ह, । छतम- अरधिकझरर सताऊ-

न नाम एम उमर, पाया बरय सबरोग

१ | अरजिलल | १८७४ |७० [१६५४० ४| ६८८८ २ इदिखकषर १८८४ | ४२ | (६३४ १६ शपप८ ३ | हमशसट | ८प३ | ६२ [४११३ ११। रपपन:

४ । मसाहतिनो | १८८ | ११ |१६ । २० | ३८८

४. सटाडिण (१८७ | ५ ६२४ २० | इफ८८

ह | टोजओो र८प० | $ (१६४९ ३ १८८८

ऊपर बताय हए हकगणितव का योग कितना

गराएचयकारी इ इस तरह स पक योग का को मतिपय इसपा गया ममा राया उस पर स अकरगणित विषया

की मइतयता समम म भा सकती ४ इन डालो उदाह गऐो

स कछ सममः सह ता इसी परफार घतर म दिबर हप

अक का शरोग भी विशप परवमर की पिशिपटता बाला

एगा प इसा लिए पराचीम कानल म यतर परभाग दो

पिशष माम दिया अहा था, और भदधाबान ममषय शदततमाम समय म भी भतर परयाग स कषाभ बठात £।

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यनर-मनतर-कलप समरदट [ रए

आडटगणित म होन वाल धसतक भाव की तजी मनदी खलत भाव बद भाव आदि जानन की कलला को आकडा गिनती कहत ह, और इस तरह की गिनती जानन चाल-गिनती क आधार पर हो वयापार किया करत ह, इस लिए सिदद होता ह कि अक गणित भविषय-फल जाननक लिय एक उततम साधन रप ह, 'असत ।

, 4 --५४८9:---

र (८ जयज ह 22 “7 ड ५४2/ हपल रा भरय ६४ कर

ह कि पा न जटस स नि “य ३६०८० 7 भर

० < हल, टशाक ४) 7 5 २४० 8 > «८57 '), बजाज 200 नी। ५०५४7 ८-८

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शद] यसक-सनव-रसप सपरद

॥ यनतर सगरह ॥ -८०'(2--

॥ शकहषनदा पदरिया यतर ॥१॥|

४ |३|६८| एप पदरिया सतर आपक सामन ह,

न ह; इसम एक स नौ अछ तक की बोजता ह इस लिय इसको सिदधबकरयत भी

२|७ | ६ | "दव ह, इस पशर पर शकन हषिमि आाल ह तब क पत पर था कारगअ

पर अएट गध स अचछ समय म घतर दवितत सपा जाय

अर जहा तक दो सक आय क पाटिय का बना हधमा पाट कवा दो रत पर सथापित कर--अरवि का पाटिया न

मितर सक हो ससा भी मिल उस पर सथापित कर भप स मिल दवारथो को सवचछ कर सचकार मजर नौ धार

बोहकर तीम चाचत या तीन गह क बान पषकर झपर होड दव ऊिस अक पर ऋण अात‌ दाम गिर लसढय कछ इस तरइ समम कषद ।

शोफ छकक दीस नही, शकन पिचारी ओव | दीय ऋटठ छात विय, पात सणाव ॥

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0 नक पल कक फ नतकलक कफ पान न कान न ५४०न आसान सका न» कक 3-० ऊ १००“ जापान कट कक क “० * बन

यनतर-सनतर-कलप समरह | ७

एक पणज नव निधि पाव ॥ इस तरह फल का तिचार कर कारय की सिदधि को

समझ लना !

॥ दरवय परापति पदरिया यतर ॥ २॥

इस यतर स बहत स लोग इस लिए

परिचित ह कि वीवाली क दिन दकान पिध म पजन विभाग म लिखत ह, जब

र‌ । ७ | ६ | कारय की सिदधि क लिए लिखना ह तो सिदर स लिखना चादिय, पहल छोट खान शदध कलम स बनाकर एक अझछ जो छटठ खान म ह चहदा स शरआत कर सातव खान म दो का अक दसर म तीन का अक इस तरदद चढत अक लिखना चाहिय, ओर बाद म चनदन या क कम स पजन कर पणप चढाना धप खतर कर नवदय फल मट कर हाथ जोढ लना यददी इसका विधान ह, यतर लिखत समय जददा तक दो सक शवास सथिर रख सौन रदद कर लिखना चाहिए, और हो सक तो नितय धप खब कर नमन कर जना चाहिय ।

६ | ४

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शद ] यमवर-ममच-इलप सपरद‌

॥ पशीकरण पदरिया यशर ॥३॥

यह पदरिषा पशन मोर पर या

कागज पर पथ गघ स छषिणना

आहिय विशष कर हक‍स पकष म

परशा ठिधि क विन तम नकषतर बार

को भी दा दीपक सामत रख धप शष कर चमददी की ककमम स जिखनमा भौर मिसप यतर को पास रखपा चाहिम शौधता स सिदध करना ह हो जिस काम पर काब करना ह. परातःकाल म बचर करो जप स लप और काय का नाम लषष, पतर को ममम कर पास म रखकष

कारम सिदध दोगा। ॥ उशचागश निदारग पदगया यनतर ॥ श।

यह यतर रपाटण या वपदथ को

य | ७ | ६ | ताश करन म सददायक दयोत! ह परापीन लात १ | समय स पसी पदधति चलली भाठी ई

कि इस यतन को विबाली क विम तकान

४ ह | 5५ | क दरपाज पर शिसतत और इस यतर

दो कविपन का कारण पददी ई छि सय का लाश शो और

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यनतर-मनतर-कलप सपरह [ २६

मख समपदा आव, लिखत समय धप दीप रखना और मिदर स चमली फी कलम स लिखना चाहिय,

दरवाज क सिर पर कोई मारतरिक सथापना हो तो उसक दोनो तरफ लिखना सथापना न हो तो दरवाज म

जात दाहिनी तरफ ऊपर क भाग म लिखना चाहिय।

इस यतनन का उपयोग जब किसी मलपय को भय

उतपनन हवा हो और उस वासतविक भय क सिवाय घटदटम भी हो रहा दो तो उसक निवारण क लिए भोज

पतर पर अषट गध स लिगव कर पास म रबन स सथिरता अधवगी बहस दर होगा यतर को दरशाग धप स खबसा चाहिए । ह

५ ॥ परदति पीडाइर पदरिया यतर ॥५॥

परसति सतरी को परसल क समय कि । ५ । ४ | पीडा होती ह और जलदी छटकारा न १ । ४ | ६ | हो तो कटमब म चिता बढ क तनी ह,

प ! क | जब ऐसा “समय आया दो तो इस यजन को सिदर स या चनदन स अनार की

कलम स मिटटी की कोरी ठीकरी जो मिटटी क टट हए

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[१ बलख-समवककप समर

बरतम की दाग रहित हो इसम छिलकर छोवान स

सब कर परससि का बतान स परसब शीघर हो जायगा

भरयतति पतर को एक हपटि स कछ दर बखवी रह और इसन पर स परसच शीभ भही दोब दो चमदन स कषिश

हए यतर को सवचश पाती स रस ठीफरी पर क यतर को धोकर बह पामी पिकषाबम सो परसति पीडा मिट धययगी।

॥ सतय फपट इर पदरिया यतर ॥६॥

अइ यतर रन जोगो क काम का ई

कि जो जीवन को जोशस का कास करत

करत समप आापति आन का अनमान किया जाता हो

इस तरद क काय करन बाल इस घतर को पदचकरशम स किसकर अप पास रख तो भचछा ह, इस पतर वो अनार की कसम स सलिसमा चदिय बयौर दीबाफी क दिस मधय रापि म किमकर वास म रस तो और सी अपका द रीवा क दिस नही खिला जाप धो अचछा

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यनतर-सनतर-कलप सपचह ३१ ]

दिन दख कर विधान क साथ लिख मादलिय म रख

पास म रख ।

, ॥ पिशाच पीडाहर सततरिया यतर ।७॥

।7|०|२|ण। पिशाच-भत-परत-डाफिनि-शाकिनी ""-----+-- दवारा कषट पहचता हो तो उस निबा- ह । शा |२। ; । * | रणकरन क लिए ऐस यतरफो पास 0९ [५|९॥ । ८|१॥ म रखना चाहिय. भोजपतर या । हल पर कागज पर यकषकरदम स अनार या

६ |शा |श॥| ३ । चमलली की कहम स शरमावसया,

रविवार और मल नकषतर इन, तीन म सएक जिस दिन हो सवचछ होकर मौन रह कर इस यतर को लिख लोबान और धप दोनो का घ‌वा चलता रह उततर दिशा या दकषिण दिशा फी तफ लाल या शयाम रग क आसन पर बठ कर लिख और लिख बाद सात रग क रशस का

'घागा यतर क लपट दव, और मादलिय म रखल या कागज म लपट अपन पास रख, विशष जिस क लिय बनाया दी उसका नाम यतर क नीच लिख जिसम लिख कि “शाकिनी”? पीडा निवारणारथ या “भत पीडा

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इ२ ] परमपर-मसतर-कजप मपरदद >--->. >>: क>अबमक-ल‍मफ मत मममअलञनपममसन3»+ कमल 9क

निवारयारच” बिसको ओर स पीडा होती दो वसका साम

सिख, किसी मनषय को कोई शतर था कर परकति पहला

मनपय सतावा शो कह पहचता दो, दराम, परशाम

करता दवो तो यतर कषितर बाई तसठा नास सकषितष “अमझ

हारा इतपपन पीडा क निषारदारथ” एसा कषिसना चाहिए

थौर पथार करन छ बाद पास म रखत ता डो कषट हो रहा दगा छसस शाधि मिलगो | दोनो विधान म पकत कदस स दी किखना चाहिए।

॥ सिदधि दाता धीसा यतर ॥ ८ ॥

पर ह 5 | बीसायतर बडत परसिदध ह भर

_.| | थदद कई तरद क दोत ह, ओसा कारय ता ७ | ८ | दो वसा मतर बसाया आय धो कषाम

वश न | ४ | होता ह, इस यतर को अपटगगघ स मोजपतर पर अमषली की या सोन कौ

कपम स शिसना चाहिए मोअपत सवछऋछ फऑरकर गर

पषथ या रविपषय योग दो रस दिल था परण विधि को

किल और परव दिशा या रततरदिशा फोवरफ भद

करक छिस दीपक धप सामन रख पतर तयार दोन बार

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०>-.-त+तञत-नतनतन- सनम नन+नननन-न नी नमन पान 3-५० 3 नन-+-मन-+-. कफ ०-० का ममता कम ७ ०५ पका वा नकमाक

यनतर-सनतर-कलप सगरह «| दय

जिसको दिया जाय वह खडा हो दोनो हाथो म ल

मसतक पर चढाय और पास रख तो ससार क कामो म

सिदधि मिलती रहगी।

॥ लचमीदाता विजय बीसा यनतर ॥ ६॥

दल इस यतर को लिखना हो !२| ब य _. |! तब आब क पाटिय पर

गलाल छाट कर उस पर

८ घसली की कलम स एक सौ ह < पार शआठ बार यतर लिख, एक बार

लिख वददी गललाल या दसरी

गलाल छाटता रह बारीक कपड म गलाल रख पोटली

बनान स छाटन म सविधा होगी जब एकर सो आठ वार

लषिखल तव उसी समय अषटगनध स ,भोजपनन पर या

कागज पर यतर फो लिख कर पास म रख दो उततम ह,

बयापार या करय विकरय का काय करत पास म रख कर

किया कर और ददोसक तो नितय धप भी दच।

बनद फः कप

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इष ] यमव-ससव-कल‍प सपरह क

॥ सरव फाय छलामदाता परीसा यतर ॥१ ०)

यदद यतर छपताम काम को सिदध करता ह इस यतर को हयगि क पतर

पर या मोफस‍पतर पर बरिसकर पयार कर अपटरगण भौर चमजी यासोन दीकशम स झिस घकलपकष दयमवार परया तिथि पा सिदधियोग अमत सिदधि धोग हो इस विम सषिसत कर रकष कषव भौर घप दीप रखकर पराध'झासत स यतर ही सपापना कर सामम सफद असम पर बठ भीध कषिस मतर का आप कर-डाप कमस कस सापट बारइ इसार और अधिक कर तो सबा कषाल आप परा कर फिर पतर को पास म रख कर काम कर ।

मतर--3 हो भी सफर फलदायपक हर-हर समाहा

बतर ऐयार हो मान पाद जप पास म रखा लाव ओऔर भपमायास परसतिभद था सतयद दाए किया म

झान! शो तो वापस झा यतर को धप स सवम मादर स शय दो सापगा। ह

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२>+>- >> कनक अमन कक क... कक पननप- मकर कल नकनक क ० पर

यनतर सनतर-कलप समरदद [ ३५

45

॥ शाति पशदिता बीसा यतर ॥११॥ रर शाति-पषटि मिलन क

ह ६ > लिए यह यतर चहत उततम 5 ७ माना गया ह जध इस तरह

स र का मनन तयार करना दवो तो ५5 क सवचछ कपड पददिन कर परव

दिशा की ओर दखता हआ बठ कर धप दीप रख इषटदव

फा समरण कर इस यनतर फो आब क पाटिय पर एक

सौ आउ बार गलाल छाट कर लिख और विधि

परी होन पर भोज पतर 'अथवा कायज पर अषठगध

स लिख यतर को अपन पास म रख जिस क

लिए यतर बनाया हो उसका नाम यतर म लिख अरथातत‌

अमक मलषय क शरयाथ ऐसा लिख शभ समय म हाथ म चावल या सपारी ल यनतर सददित दव, लन वाला लत समय आदर स लब ओर कछ लनवाला भट यतर क नाम स कर धरमारथ खच कर यदद यनतर शभ फजञ दन वाजता ह. और शाति-पषटि परदायक ह शरदधा रख पास म रखन स कषाभ होगा ।

०क+--७ कप 4५५५ >-०क5 पक 33५०. दम

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जा खो नाओि नफी खतत++5 जा

४६ | समप-मगज-कएप सपरह

॥ धाल रता थीसा यनतर ।। १३२ ॥

इस यसतर म योजना म एक

अशचर धायस बाइिनी ओर का एक साना बीच म छोड कर दो थार भाया दिजा रकषा करम म बलनघान ह इस यशशव को शम मोर म मोजपतर या बयाज पर अषट गर स धममार

की ककषम स खिख और लषिखम क बाद मट कर ऊपर रशम #ा थागा कषपटल हए भौ भझाठ कपा दव बात म भप सब मातकषिय म रतत पल म गा बरमर पर हडडा मषिधा हो धाध गब, वासतव म गल म बघना अचछा रहा ई, इसक परभाव स बाकक-बालषिफा क किए समय अपक डर झमादि दपदरव सहो होत और हर पकर स रद दोतो ह।

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यनतर-मनतर-कलप सगरह ३७ |

॥ आपतति निवारश बीसा यतर ॥१३॥

मनषय क लिय आपतति

तो सामन खडी दयोती ह ससार आधि वयाधि उपाधि

की खान ह,और जब २ कषट पक आत हतघ मितर भी बरी हो

जात ह. ऐस समय म इस

यतर दवारा शाति मिकवती ह आपकति को आरपतत मानता रह ओर हताश होता रह तो 'असथिरता बढती जाती द अत इस तरह क यनतर को पचगनध स चसतषी की कलम स भोजपतनर या कागज पर लिख कर पास म

रख ओर जिस मनषय क लिय यतर बनाया हो उसका नाम यतर म लिख, “अमक की आपतति निवारणारथ? ऐसा लिख कर समट कर चावल की हार अथोत बीज को सपारी पषप सहित हाथ म लकर द दव, लन वाला खआादर स लकर यतर को अपन पास म रख सपारी आदि

कही भी रख ठव या जल म परवश कर दव आपतति स बचाव होगा और आरपात को नषट करन की हिममत

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[ १८ पमथ-मखथ-कप सपरह

पदा दोगो मराज म सथिरता भावगी साथ दी अपन इस रव क समरण को भी करता रह, ईपदष का ायघन ऐस

समय म बहत सहायक दोठा ह भौर दान पएय करम स आपतति का निबारकष होता ह इसका सयान रख इएट सिदधि दवागी |

आह बततश निवारश भीसा यतर ॥१४॥

गह कसश दो गदरप फ

यहा शरमायास छोटी बडी

बात म हआ करता ह, भौर परामतासप कमपरशा हआ इडोतो

बएदी नपट टटो बता ह,

परसत किसी समगर ऐसा धो आता ह कि इस दर करम म कई दरइ की कटठिमाइया आशती ह और कछश दिन दिन बडता रइता ह, पस समय म मदद

बीसा पतर बत काम दता ह, इस घढ को मोजपतर था कागम पर पशषकरम स छिसमा चाहिय और खिलन बाद एक यतर को तो ऐसी लाए कषगा दमा कि सिरस पर सार कठसव की दषटि पढती रह, और एक यतर पर का

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यनतर-मनज-कलप सपरह | 8३६ ९०० मककमाभममभ न -०

मखिया परष निजक पास म रख, और पहला यतर जिस जगह लगाया जाय वह मलषय क शरीर मानस स

ऊची जगह पर लगाव, और नितय धप खव कर उपशम होन की पराथना किया कर तो कलश नषट हो जायगा, परतयक कारय म शरदधा रखनी चाहिए दषटदव क समरण को कभी नही भलना जिसस कारय की सिदधि होगी।

॥ लचसी परापति दीसा यनतर ॥ १४ ॥

8८ ही. चससार म रचषमी' की लालसा अधिक रहा फरती ह,

3 कप इसी लिय लकषमी परापति क कर लिए अनक उपाय ससार

ह म गतिमान दवो रह ह, और

हव ८१ हॉ. ऐस .कारयो की सफलता क _ लिय यहदद यनर काम आता ह

जिनको इस यतर को उपयोग करना ,दो, तब उततम समय दख कर अषटगनध स या पचगघ स लिख ल कततम सोन की-या अनार की अथवा चमली की औसी

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अिनतीनि-ननननान-नन-तमम ममता,

० |] पमव-सतव-करप सपरद

भी मिकष सक कषकदर भोजपत पा कागज पर लिख भौर घन‍तर दो धपपन पास म रस, दो सक दो इस तरइ का यतर दाब क पतड पर सयार करा परतिषठित कय निजर क मषाम म था हकान पर सथापन कर निसप पजा किया

कर शाम सबह पी का थीपक कर दिया कर तो छाम मिकषगा इपटरब क समरण को न मकष पमय समयय कर पमय स झाशाय फलती ह और इान दन स कषशमी दी परापति दोठी द।

॥ सक-पिशाघर डाकिनी पीडाइर दीसा मतर ॥१६॥ पिशाघ डाकिनी पीडादर बीसा मतर ॥१६॥

लत ऐसा बयस हो ताप व कि मव पिशाकर-शाकिसी

पीडा द रही ह, दवमतर-यतर 5 | 6ततर बाल ढी हलाश ढी शाती

१4 ह, भौर इस तरइ क धदम अकसर सवथिशवो को हो आपसा

करत ह, और ऐस बटस का असर दो जान स दिव मर ससदी रहती ह, रोती ह, इगपवा रलती ह झोर पाल शपित कम दो छाती ह, और भी कह तरद क रपदक

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सराफा धारक ७ ४9) ऊ भगत दाना भावना काका"

यनतर-मनतर-कलप समरह | ४१

हो जान स घर क सार सनषय चितापरसत हो जात ह,

ओर यनतर-मनतर वालो की तलाश करन म बहतसा धन बच करत ह, ऐस समय म यह बीसा यतर काम दता ह । यतर को यकषकदम स अनार की कलम लकर लिगवना चाहिए। लिखत समय उततर दिशा की तरफ मख करक

वठना, और यतर भोजपनन पर अथवः कागज पर लिखवा कर दो यतर तयार करा लना जिनम स एक यतर को

मादलिय म रख फर गल म या हाथ पर बाघ दना,

दसरा यतर नितयपरति दखकर डवची म रख दना और जिस समय पीडा हो तब दो-चार मिनट तक झारख

वध किय बगर यतन को एक दषटि स दखकर बरापस रख दना सो पीढडा दर होगी, कछ मिटगा और घन वयय स बचत होगी, घर नीति को नही

छीोडना ।

॥ वाल भयहर इकीसा यतर ॥१७॥

वालक फो जब पीडा दोती ह, चमक हो जाती ह, तब अधिक भय पतर की माता को हआ करता ह, ओर जिस परकार स हो सक पीडा मिटान क उपाय

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शर ] परलभ-समतर-कलप सपह

किय जात ह और परक सब कषोग ऐसा झनमान कर छत ह कि किसी ढक रषटि छवान स या मय स अगवा

गत चमक स मइ पीडा दो गई &,-इस तरह की पीडा दर करन म यदद यतर

सटटायक होता ह। अब यतर सयार करना हो तब मोख पतर अथवा दागअआ पर पछकदस स अनार की कलशनषम

पलकर किखना भाहिए। सब यतर पयार शो झाय तप झमट कर करच रशमी भाग स साठ भपया मौ झाट दकर माइसिय म रस गदछो म या दाम पर बाधन स पीडा मिट जाती ई, ऋएपतकति-बिदा का साश दवो शाता ह, बालक भायम पाता ह, नितय इहषट बष क समरण

को नही मछना चाहिए।

॥ नर रषटिदर चोबीसा यतर ॥१८॥ बालक को दषटि दोप दो जाता

प (१ | ह हब-- दध पीत था कछ खात १९ | ८ | ४। समय भदभि दो जान स बसन

हो बाहो ह, पापम शकति कमर दवो ४ 8 दिए मान स मखाकति रकत रइत दीलन

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नली ७ फऑिआतिताओत अआडजी ह की ++ पतन ल+ डाल: 553 4

यनतर-मनतर-कलप समरह ४३]

लगती ह, इस तरदद की हालत दवोजान स घर म

सबकी चिता हो आती ह, इस तरह की परिसथिति

म चोवबीसा यतर भोज पतर अथवा फागज पर अनार फी कलम लकर यकषकदम स लिखना

पचाधिए, और सादलिय म रख गल पर या दवाथ पर

बाधना, और जिस मनषय का या सतरी का दषटि दोप हवा हो उसका नाम दकर दपटि दोप निवारणाथ लिखना पाहिए, यदि नाम समरण न हो तो कवल इतना दी लिखना कि “दषटि दोप निवाणाथ” यनतर तयार हो जाय तब समट कर फचच रशमी धाग स आट दकर

यनतर फो एस म रख या गल पर दवाथ पर चाघ तो दोष

दर दो जाता ह ।

॥ परसति पीडाहर उनदीसा यनतर ॥ १६ |!

यह यनतर उनतीसा और तीसा कददलाता ह, उपर क तीन कोठ

ओर बायी तरफ क तीन कोठो म तो उन‍तीस का योग आता ह, और सधय भाग क तीन कोठ और

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४४ ] यमतर-सनतर-ककप सपरह मषाब:-->- लि ८ व न २ ३१+ कक व किक कक ि त

नीच क तीन कोठ और दपर स नीच तक मधय बिसाग व दाहिमी कोर क तीम कोठो म तीस का घोग भाषा ह। गरम परसतक समय म धदि पीडा हो रही शो ठब इस यनतर को कमहार क अबाड की कोरी ठटीकरी पर झपट गरप स खिल कर बतान स परसच सख स दो

जायगा। बताय बाद भो पीडा दवोठी रह तो सतर को पीठलल पा सतरि क पठड पर या थाकषी म अपट गप स

झमार की ककषम दवारा कषिख कर धप पकर थो कर पिककान स पीडा मिटगी और परसव शीम दी सख परक हो जायगा।

0 गन रदा कीता यतर! / ₹० 0 न इरस यतर को किसी भी तरफ

स गिमन स तीस का योग भाता ह गम ही रकषा फर सिमितत सह घतर काम भझाता ह, जब परसव

समय निकट न हो ओर पट म दइ या और तरह की पीडा होती दो धो इस मतर को अपटरगघ स किखलबा कर पास म रखत स पीडा मिटगी,

अकाश परसच नही दोगा और शरीर शयसथ रहगा |

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यनतर मनतर-कलप सभरह (४४५

॥ गरभ पषटिदाता बतीसा यतर ॥२१॥ पक यह बततीसा यतर ह इसको लक चाह किसी ओर स गिन ल

६ | ३ १९ [११ | बततीस का योग आवगा, चार (४|६|८|१ कोठ क अक गिनन क बाद “|| उपर क दो कोठ फ उपर नीच

_[_ ( कचार कोठ क मधय म या

तिरछ सीध किसी भी. ओर स गिनत ह तो बराबर योग बततीस का आता ह। यह यतर गभ रकषा क लिए उततम " माना गया ह । जब महिन दो महिन तक गभ सथिर

रद कर गिर जाता हो अथवा दो-चार महिन बाद ऋत सराव दो जाता दो तो इस यतर को अरषटगध स तयार

करक पास म रख लन स झा कमर पर बाधन स इस

तरह क दोप मिट जात ह, गरभ की रकषा होती ह, और पण काल म परसव होता ह, विशष कर गरभ सथित रहन क पशचात बालन वदधि स जो सतरी तहमचरय नही पालती दो अथवा गरम पदाथ खाती पीती हो उसी का

गरभजलाव होना सभय ह, और दो-चार वार इस तरह

४ | ५ [१० [१३

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[ ४३ पशच-ससत-कसप सपर

दो लान स परकति दवी ऐसी बन झाती द, इसकषिए ऐस अमहसत करन पाल का को सही करना चाहिए, ओर

पतर पर विशवास रख कर पदधठा स रखग हो शलाम

दोगा।

॥ मय दर एब वयवसाय बघक भोतीसा यतर [[<२॥

इस चोठीस यतर म भी शरददी बिरोपदा द कि चाद किसी ओर क चार कोठ क अक को रिनस ह तो चोठीस का योग झाता ह, इस पतर

को जिस अगह सयथसाय की रोकड रहती हो, था घम

समपकति रखन का सथान दो; मरा तिओरी क अखर

दीजासी क दिन शयम समय म सषिख कर हपर पपप

अडा कर धप पणा कर दीपक स आरतो हठार कर नम सकार करता चादिए | बाद म दो सक तो मिसप घप पजा करत रहमा भदि तलिसय भददी छो सक तो गयापकति मी नही ह। इस पतर को अषटगघ स किखवा कर पाप म

रखा जाय तो बततस ह, ताब क पत पर तबार करा

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यनतर-सनतर-कलप सगरह [ ४७

परतिषठित कराक तीजोरी म रखना भी अचछा ह जसा

जिसको अचछा मालम दो करना चाहिए ।

॥ मतराकषर सहित चोतीसा यतर ॥ २३ ॥

[| ही| बीली|ध|न यदद चोतीसा

छठ| ६ [६ | ८| ! | दा। यतर बहत चम-

इस ६ | २ ३ १९|य| 'रीह घन की >+++++ इचछा करन वाल

दि [० | ९ (१० | हि पा | म |, और ऋदधि सिदधि | जय विजय क

| इछचक लोगो की

मनो कामना सिदध

करन वाला यह यतर ह, इस यतर को ताब क पतड पर

तयार कर परतिपठित करा लव और हो सक तो मनतर का एक लाख जाप यतर क सासन धप दीप रख कर फर लव, यदि इतना जाप नही दो सक तो साड बारदद

हजार जाप तो अवशय कर लना चाहिए। जाप करत मनर बोला जाय उसम एक गरगम द--वबह यदद ह कि

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घघ |] यमवनमसच-कलप सपरह

मतर फ अमद म 'सथाहा ” पतञञव स लाप करता जाय

अरथात‌ कर क शवादा करमा चाहिए, जिसस मसतर

शकति बढगी और ससव-यसतर नव पलकवित मसा दवोकर जकलाभ पहचायगा |

जाप करत समय एप यमतर मोज पतर पर तधार कर जाप करत समसम ताब क पतड बात यमतर क पास

दी एल, कब साप समपरण दो शराप तब मोस पतर वास को मिसप अपन पास म रस और तथ क भदर को तकान म पा मम म सपापिद कर मिस‍म धप पजा किया कर, इतता कर ललम बाद दो सक ता मतर की पद साला मिसप फर कषब, और नही दो छक तो कमस कम इककोस आप तो अबशय फरना चाहिए। भदधा रख कर इषटवब का समरजञ करठा रदद मीति स चलत और दास-पमय करता रह लो कषाम मिलगा |

॥ परमाष परशसा वरधक चोदीसा यतर ॥२४॥ शोतीसा पतर बहत परसियई, और सपापारी बरग

तो इस यसतर का बहमान विशष परकार स करत ह मद पा मदभमि भौर ममकद पराठ म हो सयापारी कषोग झपपनी तकास पर दीबाकषी क विस सिकतत ह, पराचीस

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आल 3333:0044334309फ434200>.ावक०७४४००००-०: पा मन

यनतर-सनतर-कलप समरह [ ४६

रा पनः ६ | ३ १३ [२

काल स ऐसी परथा चलती आ

रही ह कि शभ समय म सिदर . स गशपति क पास लिखत ह,

४ [: मर १ दरवाज पर मकान की दीवार पर किखना दो तो छडमची

क | | ह |! ४ स लिखना चाहिए, इस यनतर

को किख बाद धप पजा कर नमसकार करन स वयपार चततता रददता ह, और वयापारियो म इजजत बढती ह, परशसा होती ह, और ऐस यनतर को भोजपनन पर लिख कर पासम रखन स वयापारी बग म आगवाल की गिनती म आ जाता ह, हर एक कारय म लोग सलाह पछन आयग, परनत साथ दी कछ योगयता बदधिसानी घयता

ओर निषपकषता भी दोना चाहिए यदि ऐस ससकार न हो ओर मिलतसार भी न हो तो यतर स साधारण फल मिलगा, ओर परोपकारी सवभाष होगा तो विपश फल मिलगा ।

॥ धन परापति छततीसा यनतर || २५ ॥ इस छतीस यनतर को दीवाली क दिन रातरि कर समय

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करलललसलज-फसस+जचिःर&ऑििििििललसअनननननननननननन नमन.

४० ] परव-सनतर-ककषप सपद

एम घमस म खिलना चाहिए, दडपान क दरब/ज पर या मगज समापता क दाइनी भोर अधबवा दकान क अमदर सामन की दीबाए १९ सिदरस कषिकष शो सयापार बढवा ह,

डयापार करत किसी परकार का भप-सकट आता हो तो मरिद शायगा परभाव धदगए, और इस मतर को मोशएऊ पर खिखकर पासम रखमा मी धरम सच* ह ।

॥ समपतति भरदान बालीसा यतर ॥२६॥

आहोता घतर हो परषणए का ई, दोनो रचम ह शो

सामन ह, इस पत को किसी भी महिन की मदी बढ डी पकायशी क पितत अथवा

परणिमा क पनि पपगरप स हिहना आाहिप, पचगरप (१)%सर (२)कमरी (३१)कपर

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सबक कल अ>आ. बअऋन‍ण + हपापाशक ००4४०“ मास आन. >+>+ अडनन- क कपन‍->

यनतर-सनतर फलप समरह [ ४१

(४) चनदन, (५) गोरोचन, एन पाो को सिशचित कर उततम गनध बनाफर सवनछ भोजपतर पर दिखना चाहिए, यह यनतर पास म ह तो चोर भय मिटता ह, और नदी क किनार या ताललाब फी पा पर आसन विछा फर बठ, शभ समय म यतर लिख-लिखत समय दषटि जन पर भी पडती रह, और लिखत समय धप दीप अखड रख तो सनचछा परण होती ह, परनत इतना समरण रगवना

एज चाहिए, कि बरषमचय पालन ला काआ म सतयता का बयवददार फरन

हर | र३, जर म ओर शदध समयक‌ चतति स ५! ६८] | द । १ ' रहत म किसी परकार स फसी +- --| नही होना चाहिए, 'भआाचरण [३(९ ४ ३ (४ [५ | शदध रखन स करिया घ साधन

फल दत ह।

॥ जवर पीडाहर साठियायतर ॥२७॥

यह साठिया यनतर जयर-ताप-एफानतरा-तिजारी आदि क मिटान म फाम पमाता ह। इस तरह क छोर घाग घ

यतर घनवान फी परथा छोट गावो म घिशष होती ह,

>>५+०००७-००००-००++हरन.. >> 3 «>>, मम

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शर | पशथ-मसतर-कलप सपरह

झौर जरो शोग सिसम भदधा रखत ह, ८नको मतर, यतर,

ततर फकषत भी ह, इस ठरह क कारयो म इस सतर फो भर गरभ स तयार करक पास म रखन स पौडा वर दोषी ह

शाति मिकषती ह, सोखपतर भमवा छयगज पर लिसकर पीडित झातमा क गकल पर था हाम पर बाधन स अबषा पास म रखन स जञाम डोता ह। दसत यतर को

कासी क सवचछ पातर म झअपटगसप स लिसकर पी

सक छतन पानी स घोकर पानी पिलनातस स सी बचराति

पीडा नपट दवो जानी ह |

॥ चोबीस जिन पसठिया यशर ॥२८)॥।

॥ गरय १थषषटियनतरगरमित बतरविशति खिन सतोवस॥)

बसद पमशिन सवा ससकर, चमदपरम नाभिज। धीमदी रशिनजए अपकर करण 'ब शाधि जिसमव॥ा

मकति मीफवाइसयनतवमततिप बन‍द मपाशष बिशल)

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लजसलचखखल‍-ञझखिचचचचःः

यनचर-मनतर-कलप सपरह ४३ ] मम मशीन कद अप फल परम पक लक कलम शरीसनस घनपातमज च सखद पाशव मनोउभीषटवम‌ ॥१॥

शरीनीमीशयर सतरती च चिसल, पदमपरभसावर। सव समभवशकर नमिजिस महलि जयानदनम‌ ॥ बढ

शरीजिन शीतल च सविध सवडजित सकतिद, शरीसबबवत

पचमवविशतितम साकषादर वषणवम‌॥२९।॥ सतोचर सब- जिनशवररसिगत मन‍तरप मनर धर | एतत‌ सननतयनतर एव बिजयो दरवयलिखितवा शभः ॥ पारशव समधरियमाण एव सखदो माहनलयमालाअदो । वामाग बनिता नरासतदितर कबनति य भावत' ॥३॥ परसथान सथिति यदध बाद करण राजादिसनदशन। वशयारथ सत दवव घनकत रकषनत पाशव सदा ॥ मारग सचिपम दवागनिजव-

लित, चिनतादिनिनाशन, यनतरोडय मनिननन सिदकवितता सदनथित सोखयद, ॥७॥ इति

0 पचञच पषटि यतर सथापना ॥

उपर बताया हवा सतोनन बोलत जाइए और जिन तीथकर भगवान क नाम का अक आध उतली दी अक सरया लिखन स पसठिया यनतर तयार हो जाता ह, इस तरह क यनतर को ताव क पतड पर तयार करा

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४४ ] यख-मनतर-कसप सपरह

शदध करन वाइ पर म सवापित कर उपर बतापा

ह सवोतर नितय-सजति

हप स बोजल कर समन करना भादिए | इस रह

क पच को मोशपनतर पर लिकवा कर पाख म रखन स परदश जाय समय झअगबा परदश म

इददत समय म शलाम होता रहगा किसी क साथ बाद

बिबाद करन स रप परापत दोगी, राणा क पास शरथवा और किसी क पास जान स झाइर दोगा,सि' ससतान को पतर परापयि दोगी,निघन को घम का समरागम दोगा/मारग म डिसी परकोर का मय मही योगा, चोरो क इपडव स पाव होगा, झरिम पररोप स पीढा म रोगी, भौर अद- समाद म रशा। होगी चिता मषट दोगी मसपठ झाय म

बिसय गापत दोगी, इस लिए रो अपना सपिपय शाबल

बनाना चाहत ह इन परषो को इस परत का आदर परक भाषपन करमा भादिए |

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यनतर-सनतर-लप समरह | ४४

॥ दसरा चोबीस जिन पसठिया यतर ॥२६॥

। पञच पषटियतर गभित शरीचतरविशति जिनसतोतरम ॥।

आदी नमि जिन नोमि, समभव सविध तथा ॥ घमनाथ महादव, शातिशातिकर सदा ॥१॥ अनत सननत भकतया,नमिनाथ जिनोचतसम‌ ॥ अजित जितकनदप , चनदर चनदरसमपरभम‌ | २॥ आदिनाथ तथा दव, सपाशय विमल जिनम‌ ॥ मललिनाथ गणोपत, घनषा पदच पिशतिम‌ ॥श॥ अरनाथ महावीर, समति च जगदगरम‌ ॥ शरीपदमपरभ- नामान, वास पजय सरनतम ॥४॥ शीतल शीतल लोक, शरयास शर यस सदा ॥ कनधनाथ च वामय,शरी अभिननदन जिनम‌ ॥५॥ जिनाना नामभिबदधई, पच पषटि समदधवा यनतरोडय राजत यतन, नतर सौखयम‌ निरनतरम‌। ६॥ यससिन गह सहाभकतचया यनतरोडय पजयत चघ' ॥ भतपरत पिशाचादि, भय तनन न विदयत ॥७॥ सककष शणनिधान, यतनमन विशदधम। हदयकमल कोष,घीमता धयय रपम‌ ॥| जय तिलक गर शरीसरिराजसथ शिषयो, बदति सखनिदान मोकषजतमी निवासम‌ ॥८ो। इति

--४क --

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ह ] .. यअसक-ससत-करप सपरद

॥ दसर पसटिय यतर की सपापना ॥२६॥

दा का कक इस पसटिय यतर क

जो सदीव झाठ रफोक का र । ८ | बताया ह सका पाठ करत

१७ (१३ [१ ६ [२४ २४ जिन सीमकर का नाम झात लक सनकी ससमा का हक

वन २४ | £ | $ | १३ हजन स पसठिया यतर १० !! १ |!७ २६ | ४ | सयार हो खाता ह, इस यतर

का भददातमय सी बहत ह,

यतर को परभम यतरक विधानानसार दी तबार करमा बादिए, डिस परम ऐस पतर की सथापमा पजा हभा करती ह, इस परम आनमव मगछत रदय करता ह, छो सनषप इस यतर की आराथना करत ह इनको, मरसथक

परकार क सज मिकषत ह भौर झिस भान म शमापना दरी दवो बदा पर मद परत पिशाचर का भय मी होवा-- हआ दो ठो मएट दो खाता ह, इस यतर का शितला आइर ढरग उतना दी भरपिक मख पा सकग इस पतर का सिम क पास रखता दो तो सोड पतर पर तयार कराक रखता

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यनतर-सनतर-कलप समहट [ ४७

२ । ऐस यनतर शदध अछ गध स लिखान स जञाभ दत ह ।

लकषमी परदान अडसठिया यतर ॥३०॥ यह अडसठिया यतर

२८ हिल बप [८५ ४० | घहत परसिदध ह, फई लोग

१६ [र १० | ह दीवाली क दिन शभ समय

दकान क मदनल सथान पर नि लिखत ह, इस यनतर म ९४ (४ [९८ २ ४९८ (९९ | शप १२ यह खबी ह कि किसी भी

क ओर स चार कोठ क अछ गिनन स अडसठ का योग आता ह, ऊच नीच आड

टड किसी तरह स चार फोठ का योग दखलो बसबर अडसठ का योग आा जायगा, इस यनतर को लकषमी परापति क हत चमजञी की फलम लकर अषटगनध स लिखना चाहिए, और समट फर रशम लपट कर निज क पास रखना और वयापार करत समय तो यनतर फो पास म रखकर दी करना चाहिए, जयापार सतयनिषठा

थ इसानदारी ओर पनयायी स फलत ह, इषटदव क समरण धयान को न भलना चाहिए

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शप ] यतरन‍ममधककप सपरद बनाम +++ क जज न नततप कफ पक -ि---_<-ब<-<<<-<5

॥ नितय शामदातता बदसरिया यनतर |!

बदततरिया यतर क ललिप‌ र ममपय सोम करत रदत ह, शरसव का मिशन जाता तो सहय बात ह, परसत बिघाम का मिकषमा कटिन बाठ

ह| इस बशत को सिदध करत समय जददा तक हो सक सिदध परष ,ी सानिमयता म करना बाहिए, भौर सिदधपरप का थोरगा नही मितर सब तो किसी परनतर क लामकार की सानिधयता म करमा चाहिए;

एम दिस दख कर शरीर व वसतर की शदधता का उपयोग कर अधिषटायक दच को सामिषप सममः कर पराठ' दास

म हाई पडी कददी दिन चढ पहल अटगसप स करागख

पर बहचतर यरतर कषिससा चाहिए, करम जसी भजकल अाष चमशषी दी यासोम क मिथ स किस जब यमत

लिखन बठ दव पथविशा की आर मख रइनप चाहिए, असम सफश कना इततम बताया द, खिलरत समय

मौसम (६ कर यतर खषिखन फ विवाल क परा कर खग ।

अब पमदर शरम परा दो साय तब बज को एक सवचछ

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यनतर-सनतर-कलप समरह [ ४६

पटट पर सथापन कर अगरबतती लगा दव दीपक धथापन

कर, और ढाई घडी दिन बाकी रदद वतर अरथात‌ सयोसव स ढाई घडी पहल लिख हए यशनो को ऊध रख कर

पानी स धोकर कागज भी जलाशय म डाज दव, यह सब करिया समय पर ही करन का परा धयान रख। एफ विधान ऐसा भी ह कि बहचततर यतर शरलग अलग कागज पर लिखना चादधिए, और कोई एक कागज पर लिखना यतात ह, जसा जिसको ठीक मालम दवो सविधा क अल- सार लिख, इस परकार स बहततर दिन वक ऐसी करिया करना चाहिए, और बहततर दिन तक बरहमचरय पालना सतयनिषठा स रदना और कछ तपसया भी कर जिसस

करिया फलवती दवीगी । इस भरवार स बदधततर दिन पर

हो जाय और तिददचतरव दिन परातः काल ही बहततर यतर लिख कर एक डवमी म रख दव यतर कौ पजा कर घप दीप रखना कदछध भट भी रखना और दिन रात अखड

जोत रख फर परात काल म उबची लकर दकान म गलल म तिजोरी म या ताक म रख कर नितय पजा कर नम- सकार कर लिया कर इस तरदद करत रहन स घन क.

आय और इजजत सात सससान की बदधि दोगो, सख

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+ 8२ ] धलच-मर-करप सपरह

सौमागय बढता रहगा इपटवव क शमरण को य सतय मिपठा धम नीति को नही छोडना बादिए ।)

॥ सप मयहर झरससीया यतर ॥३२॥|

इस यतर म एक स शरकर आझाठ तक और बततीस स

सकर रन पभाकषीस तक क अफरो

म परा किगरा ह दस यरतर क

बनान म पद खबी ई कि उपर मीच आड टडर 'बाह

डिसी शोर स चार कोठ क

अड गिसन स घोग बराबर अससी का धवयवा र, हस

यखय को बिशोप करक सरप क ठपदव म काम म खरो

ह अब सरप का मय इतपस हआ दो या सधयन म बरा”

बर सिकछता दो, अवया घर मही छोडता दोवो

अससीया यतर सिदर स सहमम की रीचार पर किल,

और जददी वक हो ऐसी घगाई खिखषता भाहिए कि जहा

सरप की दषटि भततर पर गिर छाव, अथवा कासी की

धाकषो म दिखा हवा सयार रख सो अब सप मिकसन हथ

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यनतर-सनतर-कलप समरदद [ ६१

उस थाली बता दव सो सप भय समिट जायगा, और

उपदरव नही करगा, विधान तो बताता ह कि सप उस

मकान को छोड कर ही चला जायगा कित समय का

फर हो और इतना फल नही द तो भी उपदरव-भय तो

नही रहगा, और ऐस समय घर म सप दरणी नाम की

झौषधि जो काशमीर जिलम बहतायत स मिलती ह-मगवा

कर धर म रखन स सरप ततकाल भाग निकलगा लकिन

सरप को मारन की बदधि नदटी रखना चाहिए । सप को

सतान स करोध कर काठता ह, वह सममता ह मझ

मारत ह और सवाया न जाय तो पदद अपन आप चला जाता ह।..' ह

, ॥ भत-पर त मय हर पिचयासिया यतर॥ ३३॥ जला ला बला का अकसर जब मकान म

फोई नही रहता हो, और बहत लगब समय पक बकार सा पडा हो तो ऐस मकान म

* भत,परत अपना सथान बना लत ह, और. भत परत

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श२ |] धसतर-मनथ-कतप सपह ह

नही मी बसत इो और मकान म रहन कषरम इसकर बाद

कछ अमिपट हो शाय-भौर क दिम बाइ फिर दो जाय तो एस मकान क जिए सदम सा हो जता ह, भौर मकान को कषाकती कर दत ह। लोक बारी कक शराती ह,

कौर पस मकमन म कोई बिना किराय भी इइन को

तयार मददी दोदा। ऐसी अवसथा म इस यतर को पकषकरषम

स मकान की दीबार पर अदर क माग म खिख और

आवशयकता दो दो परति मकान म कषिखना मी धरा मही

ह, बज शिसन क बाद दाव लोड क९ परारयमा कर कि

ह दष ! सवसथान गदः इस धरइ करन स रपदरष शासव

हो जायगा और सख परक मकसत म रह सफीत। दव जप धीप स असभ दवोत ह, और भारषता सवीऋर-%रत

ह, इस लिए इशमोस दिस तक सामकाकष को पक भी का रज

दोपक कर बप कर दसा भाहिए | कम ।

॥ धल शातिदाता इसफाशब का यतर १४॥

कमी कमी पसा सटस दो जाता ह कि इस

मधयन म आप बाद धर म स गिमारी भहदी निदमचती

वा सच स मरी रइ पएल-की। म कोई

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यनतर-मनतरन‍कलप समरह [ ६३

तप ही जाती ह, इस तरह क

३० ४५ | *|७| फारण स उस मकानको छोडवम ६ । ३-४९ | ४० की भावना हो जाती ह।

7 ऐसा परसग शआजाय तो इस

हर । क । | _ यतर को यकषकरदम स मकान

। ४ | ड ६ | ४३| क अनदर व दरवाज क बाददरी एटणशणणअए भागपर यथकषकदमस लिखना

चाहिए, और साय काल को धप खव कर पराथना फरना चाहिए, कि “यतराधिषटायक दव सखशाति छर कर

सवाहम:” इस तरह स इककीस दिन तक करन स सख

शाति रददगी, और वहम मिट जञायगो ।

* ॥ शद करशहर निन‍याणप का यतर ॥३५॥

गहसथी क गरह ससार वयवसाय क लिए शरथवा विशष कटमब क कारण यायो क‍टट दीजिय कि सतरियो क

सवभाव क कारण नरासी घाव पर मन मठाव दो जाता ह, और उस

न सभाला जाय तो घर म कलश घढ जाता ह, जिस

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६४ | गरसत-ससत करप सपरद

पर म इस तरह क कसश दोत ह उमडी आजीविका भी कम हो आती ह, और सयवदटार म शामा भी कम दो राठी द | धाइर क दशमन स मसपप सचत रदद सकता द, किशत घरका मशमन सडा शो तो आपतति हप दो थाता द, बन, बसब, मकान,मिलकिपत बददी, इसस‍वर, खत, कतत, सिशरद सिसत हाम भाई

हो दाब दता ह, भर ऐसी भवतथा दो हान स पर की आरावद कम हो लाती ह, इस तरदइ करपरितथति हो दब इस परतरको कष कहम स मडाम क अदर आर खास कर पशमडार पर ,और बचलदद क पास बाजी बीमार पर किख भौर अगरबती या पप साधकाश को कर दिला कर, इस तरशइ स इबकीस दिल तक कर और बाब म झापस म फसला करन बट दो काय निपट जापरट, साथ ही समरण एसला चाहिए कि शयाव भीयि और कतडव पथ क कास करोग तो सफ- कषता मिदगी, पर की बात को बाहर भही पौलञाना शपदटिप, इसी म शोमा द भौर इखजत करी रकषा ह। छो कोग सथिरो क कहन म आकर अराएपरम-हटतथ

सह और करयमव को सश छातत ह, इनकय विभराभ

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अनतर-मनतर-कलप समरदट [ &५

चिगहा समझना गशरतयक रारय म इषटदव क समरण

को न भलना चाहिए ।

(.0-पतर शरापति गभरजषा यतर ॥३६॥ यह सौ का यनतर ह ओर

ह! इस को आशा पणण यनतर भी कि कह कहत ह, जिनक सनतान नही

! होती दोया गरभ सथिति क पिन । १| बाद परोकानन म परसव न

होकर पहल &ही गिरनाता ॥ ४ | * [8 [१७ हो तो यह यनतर काम दता ह । इस यनतर को पटगनध स लिखना चाहिए, पट भसनन‍ध बनान म (१) कसर (२) फपर (३) गोरोचन (४) सिदर (४) छीग और (६) खरसार, इन सबको घराषर लना परनत कसर विशष डालना जिसस लिगवन जसा गनधरस वयार दवो जायगा, इतना काय शदधता पवक करक भोजपतर पर दीवाली क दिन मधयरातरि म तयार कर सतरी क गल पर या हाशष पर जहय ठीक सालस हो बाधदव पतर क इचछक हो तो पति पतलि दोनो को बाधना-वस कम तो शरधान ह, जस फरम उपाजन किए दवोग बसा दवी फलत मिलगा--परनत उदयम

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पक) पसतमशक‍तपसपड... | ससमव-ममव कलप सपरा

शपाय भी आपस परषो क बताय हए ह, करन म इानि

तो ई नही, अपन इपट दव को समरण करत रहना

पसय परापत करना घमम रपाडन करमा सो किया फल दगी सतरी गरभघारण करगी, पणकाकष म परसव होगा कपरण समय म गरमपाव नही शोग! ऐसा शध परत का परभाव ह, भरदधा-विशवास रखन स सरव का सिदध होत ह दाम, परष घम सापभ नीठि सपषददार स

झाशा फखशमवी ह।

॥ ताष जयर पीडा इर एकसो पाणिपा यतर )३ ७)

भह पक सो पाजिया सतर ताव, एढाशतप दिजारी, को शकन म काम वषा ह, मोजपतर पा कागज पर किलर कर भाग-डोर स दाव पर बाघन स दाब-भवरादि मिट जात ह

मतर तधार दो जाय ठब भप स खब कर रककस बार एपर फर कर पीशा बड क कॉपना भरव धयर पीडा मिट

जञाय ठब पत को कन क बानी म डाज दगा विशवास

रखना और इपट पष का समरण करत रहना ।

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नह

२०2७-०2 >3३५-५० ७०००७ १ कक कम ५५७ क-७नकनस‍म ७ कक ५७५५५३०३+वमनन ५ पकभाभ ०७३५० न समर

यनतर-सनतर-कलप समरह [६७

॥ सिदधिदायक एकसो आठिया यनतर ॥ ३८॥

नि यह सोलह खान का एक

४६९ | ९|०| ४३ | ब‌ ! ७ | सो आठिया यनतर ह, खाय

६३० | ४६ ह चाह किसी तरफ क घसाकर

84 3 मी कि अरक गिनन स योमाक एकसो

गा |प | | आठ आतो ह,यतन म विशष । ४ | भर | ५९ फर यही खबी जानन ओगय

जा +++++ होती ह, इस यतर को अषट राध स भोज पतर या कागज पर लिखना चाहिए कलम

चमली की लना-सोन का नीव दो तो और भी अचछ

ह, यतर तयार कर बाजोट; पर रख धप दीप रख पषप घढा कर वास कषप स पजा कर सामन फलन नवदय 'चढ कर नमसकार फर यतर को समट कर पास म रख, यर जिस काय क लिए बनाया दो उसकी सकलप यजन क यजी करन क बाद बयान कर नमसकार कर लव औ जददो तक काय सिदध न हो बहा तक परात-काल २ नितयपरति धप स या अगर बतती स खब लिया क इषट दख का समरण फभी नही भल कारय सिः दटोगा |

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८ | पसथ-ममतर-कलप सपरद 0 मल ,.-.0-/“---- वात पाक पा पा ८ -०--.-322-%3»0--»अ+नाक»७७७+न७५०आमढ-५००५७०५५५५»2०००७.. “० ५

खपप _ इपटरिशरश एकसोशनसीसाप१/१७॥ च-प+++ गह सोकषइ कोठ का एक नल १६ || सो छततीता भह ह, इसक न [० भार कोठ क झक किसी भी “7 तरफ प गिनत स एक सो

पा नशम | स हततीस का योगाक भाता ह

२८ (३५ इस बद को सकाल क बाहई भी छिलत ह और पास म

रखन क जिए भी बनापा डावा ह, पस तो लिखन का दिन विदयादधी की रातरि. बताया ह परसत भावरयकता धतनसार बब भाद कषितर ह, भौर दो सक तो अरमगबरतपा की शतरि म किस जिसस थतर कषाभदाई दोत, अब मतर ऐत डाकितरी कर मप इतपल हमा दो इस यतर क बाधम स मिड जायगा भौर दसरी दरद क कषट होग हो बदइ भी इस पश फ परभाव स 4४ दो झागग भौर मकत परापत दोगा इस मसतर को मोश पतर था कागज पर हो भपटगप स कषिसना चाहिए भौर सहन की दीबार

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यनतर-सनतर-कलप सपरह [ 8६

॥ पदनोतपततिदाता एकसी सितररिया यतर (/४०।॥। यह सोलह कोठ का एक

७७८४ | २ | सो सिततरिया यनतर ह इस

शी यनतर क चार कोठ क कर

गिनन स एक सो सिततर का

| फ | १| योगॉक आता छ, इसकी ४ | ( पर मददिमा बहत बताई ह, यहा ज++++++++ तक कहदा ह कि इसकी मददिमा का घणन तचछ बदधि नही कर सकता धन परापतिम- जय-विजय म और पतर परापति क दत बनाना हो तो अषट गध स लिखना चाहिए भोज पतर पर काला दाग न हो ओऔर सवचछ हो, कागज पर लिख मो अचछा कागज लब और शकलपकष की परणा तिथि पचमी दशमी पणिमा फो अचछा योग दख कर तयार कर लखनी चमली की या सोन क नीब स लिख आर पास म रख तो मनोकामना सिदध होगी आर सख आपत होगा, घम पर 'पावनद रह पनयोपाजित करन स आशा शीघर फलतो ह इषट दव क समरण को नही भलना।...

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ऑटयवशसचचचचचाीी नमन नया न रन पा कल +-+-3_०.०

>+ ] यमतर-मसथ-करप सपरदद

एकसी सितरिया दसरा यतर ॥४१॥ ४ ;

यह एक सो सिवरिया

हसरा धमतर मी सोकषद कोठ का ह, इस यरतर क चार कोठ ह अक की चाह जिघर स

न ४६ [* हलन स एक सो सिततर का #८ हि! (३ रिए ४१ शिप लोगाक आता ह, करमी परापि

क हत खय विजय क मिमितत

इस पमदर को मी कम म खत ह, शरम रकषा और असय

परकार की पीछा मिटान क हलियप इस पसतर को अचछ

दिल हम समय म अपटगलय स भीडपतर अथवा

कागज पर किसनना चाहिए, एकसो सितरियर दोनो

यनतर छामदाई ह, मीति--शयाय पर चकषमा ओर इएरज को समरण करत रहमा जिसपर पमताधिषतपक दब परसपत होकर मसतोकामता सिदध करग, यनतर माइलिय म रख था सोम क कपगद म कपठ कर पास म रख ।

बयड कर

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यनतर-मनतर-कलप सभह [ ७१

॥ वयापर वदधि दोसो का यतर । ७२ ॥

हि यह सोलह खान का दो सौ त पा का यतर ह चार कोठ का अक

म | ३ ६६ [६६ फो चाह जिधर स गिन ल

अजब दोसौ का योगाक आयगा,

लत ६३ | 5| १| इस यतर कददो विधान ह, | ४ [ ५ पड ७ (६७ पहला विधान तो यहद ह कि

एआाएजएएा दीवालीक दिन अधरातरि क

समय सिदर या हिगल स दकान क बाहर किख तो

वयापार की वदधि होती रहती द, दसरा विधान यह द कि, इस यतर को भोजपनन अरथवा कागज पर पचगनध स लिख जिसम कसर, कसतरी, कपर, गोरोचन, और चदन का सिशरण हो, उततस पातन म पचरगध रस तयार कर चमली की कस स लिख, यह यतन विशष कर दीवाली क विन अरधरातरि क समय लिखना चाहिए, और ऐसा समय निकट नही हो और कारय की आव- शयकता दो-तो कषमावसपाक अधराधि क समय लिख ओर जिसक लिए बनाया दो उसी समय या पराव काल

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5८ >>5-->->-लम व सपवनपरनस<2

द दव-यतर को पास म रखन स ऋतषनसी का शलाब नही

रकता हो वो इक आगरगा गरभ धारण करगा भौर

गरम रहा होगी इपट दव का समरण निस‍प करा

चाहिए |

>- छकषमी दाता पाचसोका पतर ॥४३॥ इस पाच सो क यतर क

भार कोट क अक गिनन स पाच सौ की गिनती झादी ह, इस यतर को पास म रखन स

परमी परापय होगी और पक विषपाम इसका यह ह कि पतर

की इचछा वाल पतति पतनि पास य रख तो भाशा फलतगी शम फराम क सिप भरधट गरम स सना और बटी परामय क दत यकषकरषम स दिकषता चाहिप कपतम पमली दरी शरम भौर पतर को मादकषिप म रकष पास म ररमा धययवा डोगज म झपड कर जब म रखना प क परताप स झाशा फशगी दान पसय करता धरम निपया रखमा।

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यनतर मनतर-कलप समरदद [ ७३

॥ साहसो चोबीसा यतर ॥४४७॥

इस यतर को एफकरसो इकया-

सिया यतर कददत ह और सातसो चोबीसा भी कहत ह

चार फोठ क अक गिनन स

सातसो चोघीस का योग 2 १८९ आता ह, यह यतर परभाप

घढाना ह. और राजमान समाजमान व वयापारी वरग म आगवानी परापत कराता ह। इस यतनन को अषटगघ स लिखना चाददिए ओर परातः काल घप खबना चाहिए, इस यतर फो वशीकरण यतर भी कहत ह, जिस काय क लिय उपयोग करना दवो

कर परनत नीति नयाय को नही छोड इस यजञ को

चादी क पतड पर तयार कराकर परतिषठा करा पजा करन स भी जञाभ दवोता ह, जिसको जसा योगय मालम दवो करा लव | धरम पर शरदधा रख इषटदव फा समरण किया फर।

का १८११८१८११८९

स 3 न

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७४] पसतससतरककपसमइ | ] यसव-सनज-कसप सपरद

॥ जञासिषा यतर ॥४५॥ टी

>मि क कषाखिया

' गरतर ह इसक चार

जा कि ३ ४६६४ ६६४६६६ जामो क अरोको जप किसी भी तरफ

६६६८४४६६ | स गिनन स साख 9 [३ धथए (धपपणधपषज कायाग आता द।

इस यतरको ललिखन

क धिधाम इस परकार स बताय ह। | ("0 छोमागड स मरिल का धपन पास रखन स

अगनि भय स बचाब होता ह!

(१) डिन करोगो को माठहसी म काम करमा पडता दो और रपरी अधिकारी बारबार माराज होत हो तो इस बतर को पतरगघ स किसझर अपन पास रख दो

अधिकारी की कपा रहती ह ।

(३) पआअक‍सर कई जग पति परिन क आपतत म बमनसप दोआया करता ह बह भी अल‍प समय का हो हो सख दाई नही दवोता परसत बाएगार बलश दोता हो

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यनतर-मनतर-कलप समरह [ ७५

तो इस यनतर को कछम स लिख कर परप पास म रख

तो पतति क साथ परम चढता ह और शरतति रहती ह

(४) इस यनतर को हलदी स लिखकर पास म

रख तो पतनि क साथ पति का परम बढता ह ।

अकसर ऐस यनतर दीवालो क दिन मधय रातरि म लिखत ह और धन परापति अथवा दमर किसी काम क लिय वनवाना हो तो पचगध स लिखत ह जिसम

कसर, कसतरी, चनदन, कपर, मिशरी का सिशरण होना चाहिए ।

॥ लाखिया यतर दसरा ॥४६॥

यह दसरालाखिया

यनतर ह इस को

३० ।4?९०|४४००० भीदीवाली क दिन

आजएए।ण+ मधयरातमलिखत

ह और अपटगघ स लिखकर यनतर

जिसकलिय बनाया

हो उसका नाम लिखकर पास म रखन स जय चिजय दवोता

59००

६०००

८००० ८००० ४३७०० १०००

4.० पाहनमम४आ|रानक नानक दा ८ कक

2०००५ [४०००५ ४५०००१७००० 22-5० अरनननक मनन

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फई ] पमतर-मशत-कसप सपरह

ह।पपबसाय क त समय जिस गादी पर पठत हो रक मीच रखन स वयवसाय म शाम दवोवा ह, उपर बढाया

हवा कषाखियाबत भी ऐस कारयो म कलास दता ई खिसको जो पमतर टीक करो हसी का उपयोग कर !

इस प का एक मतर सी ह बद इमार सभइ म भही द, परमसत विधाम बह द कि दिवादी की मसय शतरि म मतर लिख कर एसक सामन एक पहर तक यतर

दा धयान कर | और फिर समय आय वनखड म या बाग म अथवा ससराशय फ किनार भठ कर पतर कर सामन एक पहर तक मतर का भयास कर जिसस यतर सिदध हो जायगा किया करत सससर छोबान का थप

बराबर ररना चाहिए सो यरतर सिदध दो जायगा और भी इन बोलो यतर क कई चमस‍कार ई अदधा रख कर इषट बब क समरस को करत (इना शिसस कारय सिदध दोगा।

॥ बय पवाफा यतर ॥४७।॥॥

पह कषय पता का धरतर ह, खिसका सहासय इसक शाम पर स दवी समझा सकत ह, शरो मनपय मददा मातमो की कपा परापठ कर छता ह उसी को इस यरज की धयाजनाय

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यनतर-मनतर-कलप समरह [ ७७ खहफयययसमसससससससनसनसनननसससससससस

ललललललल++

मिलती ह, सामानय स इस यनतर क लिय कषठा ह कि इस

..' | र ३ ६४ । १ ४६ (६६ | ६ (७१

४६ ४४ [हिए [६ रण ४४ [२४ |४९ [६०

३४ ८० [१७ [रप (७३ [१० [३ |ह८ | १४

5द‌ । डर [४८ जात न ७० ७ (२

२१ ६ ४० २३ ४१ ६ (४० ३ ४९ ४६ १ ४३ [९

जाए जा: ३० ४ ४ | ५९ ८ ४ ४६ । ७२ ६ ५श| ६४ २ | क‍

पद 0 पक हित ह ४ का ३१ ७६ (१३ | ३६८१ १८ [२६ [डट १०

यनतर को पचरगध शअथवा अषटगध स लिख और किसी खास काम पर विजय परापत करन क लिय बनाना हो तो

यकषकरदम स लिख, लिखत समय इकयासी कोठ बनाकर चढत अक स लिखन की शरवात फर, जस परथम पकति

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धपप | धप-मसतर-कलप सपरह

क पाचव कीठ म पद का अऊ किस सावबी जञाइन क

आठव कोठ म दो का झक किस, भाथी लाइन क दसर कोट म दीन का गर लिख,सातवी कषाइम क दसर कोट

म बार का भठ तिक, वोथो कषाइन क भाचव कोटठ म पाच का झक कषिस, परथम छाइम फ आाठव कोट म छ.

का धयऊ लिस 'डोयी कषाइन क आाटव कोट म सातका अक दिसप, परभम कषाइन क दसर कोट म आठ का अक लिख, सादबी शलाइन क पयचव कोट म नौ $। भगर कषिस ओर तीसरी कषाइन क हटठ कोठट म दशा का अऋ बिय इस तरदइ स समपस यमञ को चढत धयकष स लिखऋर पण कर और तथार छोजाम पर छिपत ममषप क लिय बनाय। हवो सका नाम व ढाय फा सव माम गसतर फ नीख लिगप इस दरइ स तपार कर कषम पाए यरथर को पक पाहाठ पर सपापम कर अपत धबप स पजा कर यपा

शकति सट भी एकल और पटमान स यमतर को कषकर पास

म रस था कषाभराई दोदा £ सीति सयाय को गई दोड

बारितर शदध एकस जिसस परत पिशलगा ।

॥ विमयपताफा ययथर ॥४८॥॥)

इत पमत का लिन का विध ह जपपताडा घरज

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यनतर-सनतर कलप समरहद [ ७६

४७ (प ६६ (६० | | १ ६8 १२ २३ ४७ ८ 6६ 5० | ९ १६ २३ ३४ ४९ | ४१

न ६८ (३६ |६० .. १ पर [३३ ४४ [४६

ह [८ ० १ [२ ४३ (४६

७७ | ७ २८ ९० १ ४२ ३ [४९ (६६ ६ [४७ [१६ ० ४४९ ४२ (६३ ६४ (७६

१६ २७ (९६ [०० ५१ [हर (७३ |७४ (शि

र६ [र हिल ० न रि हित ६१ हर [र । [ हि

शनन शर (धध ६० फिर हक खत | ३ ४ (९६

३७ [टिप दि ७० [ह! | ॥ ३ १ डिश

की तरह समझना चाहिए, शष इस यनन म यह विशषता

ह कि, परतयक पकति क पाचव खान म अताकषर एका ह, चोथ म अरतसवार और छटटी पकति क परतयक खान स अताकषर दो का अकछ ह, आठव कोटो म अताकषर तीन

का अक ह और दसर कोटो म कही सात का कटी छ का

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न नन----ीनलनन----ल‍.77टएप 77-3० मम नमन अनननननन- पी - पलक जज... 3७०००. अन---»म «न जनम ला जनमम

प | यसतर-ममतर-करप सपष

का कही झठ का अक अधिक धार आया ह, इस धतर को विभी स सिखकर पास म इकन स विसय मिकषती ह, वाई विधवाइ करत समय, मकपम की बदस करत समय और सपराम म अबबा इमी धरइ क दसर ढारमो म परयास, परमाण, या परभशा किया लाय तब इस मतर को पास म रखम स सददापता मिसरती ह, इस यमतर का छलखत अपटरगव पचरगघ, भजया पकषकररस स हो सकता ह । बागी विधान तप पताढा यसतर की तरह समम छपता, शरदधा स कारय सिदध होता ह, विजय पार ह, दिममत रखन स भाशा फलनती ह ।

॥ सहद मोघन यतर ॥४६॥

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यनतर-मनतर कलप समगरह [ ८१

इस यतर का जसा नाम ह चसा दी गण ह शरीर असवसथ होगया हो या ओर भी किसी परकार का कषट आगया दवोतो यदद यनतर काम दता ह, इस यन‍नर म सबस छोटा अक एक सो पनदरह का ह और बडा अक एक सो छपपन का ह इन दोनो अको क दरमयानी अको स यह यतर बना ह, परथम क कोन स अनत क को न तक

एक सो पनदराह स एक सो इककीस क अक ह, दसर कोन क नीच स एक सो वाइस स एकसो सतताइस तक क अक ह इस तरह फी योजना स पट का दद ह टी या गोला खिसक गया दो तो उस समय अपटगध स कासी की थाली म यतर ५ खकर घोकर पिलान स दद,मिट जाता ह, इस वरद क विधान ह सो समसत कर उपयोग

कर ।

* ॥ विजय यनतर ॥४३०॥ इस यनतर को विजय यनतर कहत ह और बदधमान

पताका भी कहत ह, हमार समरह म इसका नाम बढ- समान पताका ह परनत इस यतर को विजय राज यतनन सममना चाहिए कयोकि यही नास इस यतर- क सन‍तर म

आया ह। ल‍

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पर यरकमसयककप सपह

! [४ [६ [८ [१ [६ [१ (६ ह! ६६ ह ० [३ || ० | ० हर,

वी 240 2६ [६ ४ हिए 3७ ४२ (६२ 2४ [६०

इस जलच क लच बिसाण ह परधयक दिसास म नौ कोट ह सो सब यरोग इकमासी कोटो का दोता ह

जिनम पक स लकर इकजासी क अक हारा आता परी की गई ह, जिमफो सिखन का विघान इस तरह बताया

र छि बीच क एक बविमराग क मौ खालो का परमम छ

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यनतर-मनतर-कलप समरह‌ [८

बीच क खान म एफ अक लिख अनकरम स चढत अक

लिखत जाना, फिर नीच का नोवा विभाग लिखना फिर बीच का चोथा विभाग लिखना, फिर नीच का सातवा

बरिभाग लकिखना, फिर सभय का पराचतरा विभाग लिखना, बाद म तीसरा विभाग लिखना फिर

छटठटा तरिभाग लिखना, फिर पहला विभाग लिखना और फिर आठवा विभाग लिखना-इस तरह स नौ विभाग

क इकयासी कोरठो को भर दना, इस यतर को रविवार क दिन लिखना चाहिए और ऐसा भी लख ह कि प‌छ- डिया तारा ददय हो तब लिखता चाहिए, जब यनतर

तयार दो जाय तब एक चाजोट पर सथापल कर धप दीप की वयवसथा जयणा सहित रख कर छछ सट रखना

ओर नीच बताय हए मनतर फी एक ' माला फरना, उ> ही शरी कली सम विजय यनतर तजय

घारकसय ऋदधि वदधि जय सख सोभागय लकषसी मम सिदधि कर कर सवाहा ।

इस तरदद की माला फरत पचामत मिशरित शदध

वसतओ का दबन करना भी बताया ह जिसको जसा

विधान ठीक मालम ही उपयोग कर। इस यनतर क नो विभाग बताय परतयक विभाग का

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प‌] पमवतसनत-कलप सपरद

अतग + चमतर भी बनती र जिसका बरणन इशस

परकार ह, ह (१) परमम बिसाग क बसतर स दषटि दोप शाकिसी,

ढाडिगी भत, मत आदि का भय मषट होता ह | (२) दसर बिमारा क बसतर स झषिकारी आदि की परस

झता रहती ह । (६) तीसर विमाग क यतर स भगन भर सप का शपरप

नपट हवो आता द । डर (४) चोन बिसार क पतर स ताक, एकातरा, विजारी

आाद मपट दोदी ह । (५) पाचरण बिभाग क बत स मबपरश पीडा आागि मपट

इतीए ।

(४ धरडड विभाप क घरतर स विजस परात ह | (७) सातव विभाग का यतर मतरिर आदि की धयजा पर

लिखन स दिम २ परभमति होती ह । (८) झाठष विभाग का भतर धरमषय झादि शरत पर

बाधन स विजप पात ह । (६) मौष बिमारा का मरत बीबाकनी क दिन तकाम की

दीवार पर खिकषन स अप विशय होता 2 |

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यनतर सनतर-कऋलप समरह [८

इस तरह स नो विभाग क यतनो का वरणन ह गरथम विभाग अक गिनती क अनसार परथम परकति क

मधय का समभना इसी तरदद स दसरा-तीसरा विभाग चढत अको स सममना चाहिए ।

इस यतर का दसरा विधान इस परकार ह कि विधि सहित यतर तयार करक एकात सथान म शदध भमि बना कर कषमभ सथापना! कर अखड जयोत रख और एक चोकोर पाटिय पर यतर सथपन कर सामन 'चोकोर पाटिय पर नदीवधन साथिया कर साथिया करन क चावल सवासर

दशी तोल क कसर स रग हए अखड दवो उनस साथिया पर कर फल नवदय और रपया नारियल चढाव, फिर सामन बठ कर साड बारह हजार जाप मनन क पर कर लव नियमित जाप सखया परतिदिन की एकसी हो इस

तरह स विभाग कर जाप पाच दिनशरथवा आठ दिन म परा कर लच, जाप करन. क दिलो म एकासना या आय- बिलन तप कर जाप पहर दिलन चढन स पहल परा कर लब भमिशयन बरहमचरय पाजन और आओरभ का तयाग कर नितय सथापना सथान म ही सो जाय जिस दिन जाप परहो जाय साथिया म स चावल चमटी भर कर लव

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पाई | पथ -मशय-कसप सपह

और शिराण रख पकर माकषा मतर की फर सो जान तो शादि क समय सवपन म शसारगम कपन पथ इडवारा मादम इग और घन परदधि दगी काब सिदध दोगा, ऋआशा हअदधा स और पसय स फकषती ह पमय घन साधन स डपारशित दोता ह इसफा परा खयाकष रख।

॥ सिदधा यतर ॥ ४१ ॥

बह सिदधासतर सटोरियो क काम का

ह, इस पतर को पास म रख की

अआाचशयकता नही द न धप दीप रसद कर मोम पतर म खिखन की अआागशयकता ह पद पतर तो ओो इस गिनती क कमनभवी

ह रददी क फराम का ह शिस परष हो इसका उपयोग छरमा दो किसी शासकार स पछ कर कर, अक गशित आमन बासखा इस गिनती को अली समय

सकर।। जानकारी स मी अनभव की

विशषदा दो बददी पलोग पस यतरो म

कषाम इटा सकत ट और विसा अममण स काय करम बाला दवानि उठाता ह, इस बाद को दषटि गठ रतप।

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यनतर-मनतर-कलप रागरह [ ८5७

॥ चोसठ योगिनी यतर ॥४२॥ यह चोसठ योगिनी यतर ह, कइ तरह क कारय

... | ७ ९० (३३ “रन

२१ २४ (४५ | ६ ६ १२ [४३ [४

थ ४७ हि. [ह७ हिर, ४३ [३० (७

मापन (8 हि न | ५ धर

[पर ६९ २ ४९ [१६ [8

२३ |३६[९९ | ९४ ३६०१ | 5४ «०५ *_ १

१० ४८३८ | २५ १६ ह सवर ए०र७

| ३२४ [९९ | ४० २६ २४ १ | १४ सिदध करन म काम आता ह, इस यतर क लिखन म यह खबी दव कि एक का अक लिख बाद दो का अक तिरदछा

एक कोठा बीच म छोड लिखा गया ह इसी तरह स

तमाम अक तिरल कोरठो म एक एक छोडत हए लिख ह ओर 'त म चोसठल अक पर समापति की ह, इस यतर

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षप गरसतर-सनतर-कशप सपर/

की कषतन विधि को अचछी तराइ समझ खरमा चाहिए, ओर पतर कषिषत कर ठिस कारस की परदि क कषिप बमाया हा उसकी विगठ और जिसक छविय बनाया हो इसका नाम यतर म तिलमा चाहिए, अब यशव गिपरि सदित

मियार हो जाय सब झयम समय म पास म रखना और हो सक बहा तक काय सिदधि धक धारस किय रहमय धप मिस‍प दन स मसतर का परभाव बढता ह, कषट भी शीपर मिटता ह और माबनाए फखनशो ह इसट दव-दवी की पता करना और दान पसय की बण रखना सो काय सिदध दोगय

॥ दसरा भोसठ योगिदी सतर ॥ ४३॥

इस यमच म एक स जबर भोसट तक फ अक इस तरइ स लिख हए द कि लपर क कोटो की सीपा ओर अोछ गयाना कर म स दासा साठ का अक अतता द इस

शरद स ऋाठ कोरटो की गिनतो परसमक ललोइन की दोसो

झाठ आती ह, लिखन म ८घद खची ह कि एक कोठ का कॉक अपन पास क इसर कोट म समीर की गिनती क अक किय हए ६; इस तरइ बाधी तरफ $ दो काठो -की

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बन नाल अनाओ जा अननलक चऑनिभनीनन निजअड ज* अल बज नील न

यनतर मनतरनकलप समरह [ ८5६

कर दादिनी नरफ क दो कोटो फी लाइन म लसथन

पदधति ह, चीच क चार फोटो म चाए-चार अक नजीक

फी गिनती वाल लिस ह, इस तरह स चोसठ योगिनी

क सथानो की परति कर यतन बनाया ह, इस यतर फी

न ६१| ६२ प

२ ७४३ | ४४

र विननन7नननननन नम 0 कनीननिओननन (विमानन, न नीििलजलल

प६। ४५-| ४४। ४३ +.२२०२०७०->०>ज ५ अननान-नन-मयामनम... सिन-नपानऊका+ ज ६ ०+-मननननननना- म सिनमगननननननकनाना.

षटत 3 न घ नि करन->>क०_००

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4समक>काभक+>मान ह। २०७ ममकमयाका.. ९७९ ०मम५मनकक, ' अनभिलनिनरन+.

३| ४ ४ ६

महिमा कम नही! ह, थह “यनतर बहत' स कारया म काम

आता ह लिखन का विधान परचत समझना चादविए, इस यतर को ताब क पतड पर बनवा कर पजा करन स

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९० ] यसखत-मसज-कतप सपद ५७० अवय म सरल नमन कद भय अप पर“ कण न‍म मरा मा अप 2८ मना ०० कह धन त एा:ााआल

भी कषाम होता ह इपट दव की सहायता स ऊोग सिदध

दोदा ह ममपय का परसतम करत को काम ह । ॥ उदय असत अक जञापा पतर ॥१४)॥ सदद रहय असत अक जाता बतर ह इमका झञान

जिसको हो लाता ह धद साम सकता ह कि भाव कया खग भौर क‍या बद इग, इस यतर की गिमती दिस फरदार स करमा-निषणावो स सीलना चाहिए इस यतर की झामना गशगाम स परापत हो जाय दो काय सिदध होत दर मही छपती, एप रतन को हढय परापति क

दव वितामसी पतर मी कई द तो अतिशनोकति महदी ह, तसी व जो रहार दोत ह थो ररम सिदध शोत दर मही झगती यह परत चिशष करक छठोरिषो क काम का ह,

इसकी गिनती का करमपास करम स जामकररी डवागी इषट दध क समरण को मही मकषमा दास पसम करन स

इचछाप फलनती ह ।

कक | इति यतर सगरई ।

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धनव] गव-मसव कएप सपरह नअफसफितफसमक_<--_<-- बाबमशो मो ऊकषी सीर मख भोय होन वाहकषो बीर !। सततरिभय भी महिसा शनत, धषछ बदधि किम शाद अठ ॥घ। पक धो बहततरो यतर परभाव, आखषक न टाजष दषट भाव | बिटवसो नो सतर छलिय बार, बाशिसप पशमा दोय इाट ममबरर ॥ भ। तणग नरनारी सो सइ, बियठो बाघ नही सवद | बाररो पर मय नवि होम, कर हरपतति भणी लन मोब ||११॥ पाचरस सहिजा गरभअ

धर परषइ न पतर सवरति कर || छो पतर शाय सख- कार, साठस फगड दोस सपकार।॥|! .| मबसय पथ म छकाग बोर, दशम दल न परामन पोर || शगपारस ज स जीष दषट तोइना भप ठाड शरहतत |(श!| अदी मो बार होग दशा सास पन' तदिथ जोन || बढी सम

कमी रकषा कर, एम यतर दस मददिजञा बिसवर॥१ए/ बशास स शा दिक सान, शाकणो रोप मिषारण आन |! कट तथा भसतक ज घर ,भशभ कम त शज कर [१ श। बाषनना सो मसलक तथा कठ फज पाकषमो हिठ सदा पणपाकीस शिर इठ दोप, सबधरस भगान तस जय ।१॥॥ क कम गोरोचदनसार, सगमदसो चौदरा रबिणषार || पतरितर पसप पषप मल भकषतर, एकमना खो

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अ» ३४५५ प ना ५ +३७ ७५ काक ५ न 2५५ ५॥५३७) ५३७५५ कफ नामक का नमन न क न न नसन-०>>- नम लि जल लत -त++जत 5

यनतर-मनतर-कलप मगरह [ ६३

लखिय यतर ॥१७॥ पाशव जिनशवर तण पसाय, अलिय

विघन सब दर पलाय ॥ पडित अमर सनदर इस कह,

पज परमारथ सब लह ॥ १८॥ इति॥

॥ यतर महिमा छद का भावारथ ॥

२०, यीसा यतर सोलह कोठ म लिखकर पास स रखन

स तमाम तरह क भय का नाश होता ह ।

२८, अटटाइसा यतर रोग भय को नषट करता द ।

३६, छततीसा यतर दयति सटटा करन वाल लोग पास म

रख कर कर तो विजय पात ह । ३० तीखा यतन स शाकिनी भय नषट दोता ह ।

३२, घततीस यतर स कषट क समय उपयोग करन स

सखरप परसव होता ह । ३४. चोतीसा यतशर दव धवजा पर लिखा जाय तो शभ

“कोरक ह, पर चकर अथवा किसी क दवारा भय भापत

होन वाला दो तो उस सिटाता ह, सकान क बाहर दीवार पर लिखन स पराभव नही दोता कामण-टमण

- का जोर नही चलञता शाकिनी आदि पलायन हो जाती ह

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६४ ] परतर-मनतरकलप सपरह

४० चाकीसा यरतर स घिर दरद मिटता ह, बटी पावो म गिरवा ह गाव म परसम म मान-सममान बढता ह ।

इश बासठ क सतर स बधया ततरी को गरम सथित दोता ह |

६४ बोसठिय यतर की महिमा बहत ह, मारग म सब परकार फ समर को भट करठा ह, बरी क शाकिनी डाकिती क मद स बच आदा ह।

७२, बह फतरियर अत स मत गरत का भर नषट होता ई, और स परास म बिदयय पाता ह|

पट, विधयासिय धनन स माग का मय मिटठा ह ।

७८. अटटोकतरिया सतर तो शिकष सस वाता सबकषट को

मषट करन वादा ह।

२० विशोततरसो यतर बढा दोता ह डिसस परसव मख

रप होता ह बदरना मिवती ६ ।

४२५ बाबल सौ यतर को पानी स घोकर सखष धोन दो

भारर चारा-समह बढता ह, भाई बहिम क भाषसत म

परम रहता ह | १७० एक सो सचरिय पतर की मददिमा बहद ह इसका

पसन हचत बदधि मनपय सददी कर सकता ।

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किक + न तल 5 5५. चर 3-5 ५४८४ पक >कनमदलि किरन लक,

यनचर-मनतर-कलप सपह [ धर

१७२, एक सो बहदततरिया यतर स बालक को लाभ दोता

ह भय मिटता ह ।

२००, दोसो का यनतर दकान क बाहर दीवार पर या

मगलिकछ सथापना क पास ललिखन स वयापार बहत

बढता ह ।

_३५०, तीन सो क यनतर स नर नारी का सनह बढता ह, और टटा हवा सनह फिर स जढ जाता ह ।

_४2०. चारसो क यनतर स घर म भय नही रहता, खत पर

लिखन स व लिख कर खत म रखन स उतपतति अचछी दवोदी द।

४००, पाच सो क यनतर स सतरी को गरभ धारण दवो जाता ह ओर साथ दवी परण भी बाघ तो सनन‍ततियोग

बनता ह ।

६००, छ सो क यतन स सख समपतति की परापति होती ह

७००, सात सो का यनतर वाधन स कगड टटो म विजय कराता ह ।

६००, नौ सो क यनतर स मारग म भय नही होता तसकर भय मिटता ह।

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3 | यमतर-ममतर-ककषप सपरद

१०१० सहसषिय पदर स पराशय-परामष सददी दयोता

और बिदभम पाठा ह | ।

११०० रपारइ सा क यतर स शपसातमा की भोर स भय कश दोता दो ठो वद मिट जाता ह ।

१२०० बारद सो क थमवर स वददीवाम मकत दो जाता | | !०००० इससइसरिय यतर स सदीबान मकत हो

जाता ह । 7 ४०००० परास सइसलिय पतर स राजमान मिशचता ह

कषट सिरता ह । ।

इस 6रढ पराचोम छषव कर, भाजाव ह इसम बठाय हप बडठ स यतर इमार सपरइ-साहिसय म मदद ह, खकिस पनच साहमा और समस इदोन पाल काम का पतता छद साभाध स समर म झा सकगा जिसडो आया

इसकता दो गतर शासतर क निपणात स काम पटान |

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॥ मनतर सगरह ॥ . ॥ घन वदधि मलतर ॥

ऊ, नमो भगवती पदमावती सरवजन-ओोहिनी सरच-

फारयकरणी-बिघन-सकट दरणी, मम मनोरथ

परणी, मम चिता चरणी, ऊ नमो ऊ पदमावती नम. सतरोह ॥१॥

विधान-इस मतर का जाप साड वारह_हजार करना चाहिए

और तरिकाल जाप करन का विधान ह, अखड जोत घप रखना शदध ममि शदध वसतर ओर शरीर शदधि का परा

धयान रखना नआहलषमबन म पदमावती दवी का चितर सासन

रखना सफद साला पच दिशा फी तरफ शख रखना और एकापरता स जाप कर सिदधि परापत करना बस इस मतर का सवालाख जाप भी करत ह और तरिदञल न बन सक

तो परातः काल म ही अधिक सखया म जाप किया जाय

तो भी अचछा ह जसा समय दो और अबषकाश मिलत तदनसार करना घाहिए।

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शप ] ' अनमसवनय +' मर लिनन०»»ण»मन-क मकान» मनन नकनकक नल नल अभिभावक

॥ रोजी-माष इडठि मतर ॥२॥!

ऊ नमो भगषती पदध पदमाषवी ह ही भी ह

परबाप इकषिणाय परितरमाष रततयय भाजय परस सवअनवरय कर कछ सवाहा |

विघान-हस मतर का सवाराल जाए कर सिदधि

परापत करमा और भाव म घात' काल म एक मातरा निलप

छएना जिमस धयाय बड गी और बकयर को काम मिसगा

साप करत सतय आधमयन पदमाववी दवी कर रखना बदहिए भौर असय विघान धप दीप आदि परबत घममना | कि

॥ घयदधि दाता मतर ॥॥ | ह पमायती पदम सत पदमासन ककषती बायिसी

बामता परणो मग-परव मिपरदणी :सबराध

सइायी दखन मोदिनी ऋद वदवि कर कट सवाहा ऊषदडो शरी परपावरमनमर साहा । विवान-इस मतर का सदी हाख जाप करमा चाहिए

कषतर जाप परा दो आप तब गगगज गोरोचन णाड

धडोजा, कपरका परी, इस सबका चरह कर गोलिया

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यनतर-सनतर-कलप सगमषट ६६

बना लनी और शनिवार अथवा रविवार की रातरि को शरीर शदध कर लाल वसतर पददिन कर लाल माला, लाल

आसन और लाल वसतर पर सथापना कर लञाल माला स जाप पर कर ऐकक मतर परा होत ही लाल पषप चढाव ओऔर एक गोछी अगनि पर रख इस तरदद स एक महिन

तक बराघर फर, तो लकषमी परसलन होगी और आवक घढगी शरवतलमबन म लचसी दवी का चितर रखना चाहिए

इस तरह स एक मददीना परा दो जान बाद परात काल

म गयारह या इकतीस जाप नितय करना चाहिए और मतर पर होत दी सथाहमः योलन क साथ ही गोली अगनि पर रख पना चाहिए, इस तरह फरन स लदसी परसनन

होगी घन की आय बढगी और सख शाति रदगी।

॥ लकषमी गरापति मतर ॥॥

ऊ पदसावती पदमकशी बजजवपर'कशी परतयकष भयनति भवनति रवादया ॥

विधान-इसम भी? उगरमबन म पदमावती दवी का चितर रखना चाहिए ऊाप अधरातरि म करना और धप दीप 'बराबर रखना-नितय|, एक सहसत जाप[ऊकर

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१०० ] शमज-सतव-करप सपरद

इचीस इजार आप पर करन बाद पक माला नितय फरना

आाहिप घप-दीप भौर शरीर-वशर शदधि का परा वयाम शकतना |

.- ॥ अपटापरी मतर ॥५॥

ह ही भी की बजए ममः सवाहा ॥ इस मतर को सजयपरि म सिदध करना चाहिए,

सिदध करन म शितन दिन झरग रतन दिम तक परदमाचम पाकषमा, एकरासना करना, मरति शपनन करमा सरय

बोढमा, काम करोप कपाय कर शयाग करना, और एकत म घप वीप भररड रवत कर साड बारद इसार शाप पर

फररणा और बाद म एक मालता मिरप फरन स सारा टिन आनद म आयगा और रोडी भिललगी ।

इस यतर का इशकोस बार लाप कर वयाकयातनन दो भठ यो भोदा सोदित दो भर इकफरस शाप कर बार विदाए कर को थो जप परापत दवा पककरीस कलाव कर मषरम की अदाव ददी कर तो राजढारी बोल इच रऐ

शर विजप परापत दो गाव था शाइए म रोशी क सिमितत धाथ ऐो गाव क बाहर अललाराप क कस नह कर इस

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क अमन

यनतर-मनतर-कलप समह [ १०१

सनन की एक माना फर फर परवश कर तो लाभ मिल और फारय को सिदधि दो,इस मनन क सात वार जाप कर परतयक जाप फ साथ मख पर दवाथ फरता जाय और

शतर फा नाम ल सवाहा. घोकनवा जाय तो शतर पराजय दोवा द । सिर म दद छोधा दो तो इस मतर स इककीस घार सिर मनधघरित कर तो दद मिटवा ह। इस मनतर स

इककीस वार पानी. सननरित कर पितलान स पट का दरद

मिटता ह । इस मनतर का जाप करता जाय और राख कषकर उवारता जाय तो बिघछ का जहर उतर जावा ह, भाग म चलत जाप कर चल तो वयापर आदि का भय नषट होता ह। विशष विधान गरगम स जान लना ।

॥ धयाखया वदधि सरसवती मतर )) ६ ॥

ऊअह मखकसलधासिनी पापातमाजषयकरी प‌ बद याकवादिनी सरसवती ऐ ही नम' सवाहा: ॥ इस सनतर का एक लाख जाप करना चाहिए, और

परण होन घाद दशास होम करता हवन फी सामपरी म दश वसत इस अकार लना (१) नारियल खोपर क टकड (२) कपर (३) खारक, (४) मिशरी, (५) गगगल, (६

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असनन-+-नीनमन--+मिनिननन-+नननननानननन कननन-न-मननीी मनन -न-नीयननन-नननन-कनमिननननन- तन ननन-न-नन किन न-तयनन निनायणयणय-किननन-नीयीयनन-भ+-ण-न-न- 3 रमन नाननन-ननन

अगर, (७) रठाजसी, (८) धत, (४) गड, (१०) और

अदन, इनकी सिभित कर वन करना भमिरायन, हझ

चय पाकषना और विकार दषटि स भहदी दखना,आाप करन क विरो म भगशदवि,बरतर शदधि का बयाम रखता, किया

बराबर १६ दोगो तो सपपन म दश-दवी परतयकष आकर बरदान दगा अदधा स सिदधि दोती ई, इस ससतर की सिदधि दोन बाद अभयास अहत बढगा अयाकपान बत समय मसतर का जञाप कर एदबात करन त सवाकयान

कछता बढ डायगी और थार टदि दोगी डिमको इषन करता पसद नही शो बह दीप भद फल चढा कर जाप कर।

॥ समपधि दाता मतर [छा समिषय भपतर घर गदख आरयग परिचदिय

गाव फिखसल आरिधद फिदधायरिय इबममपरप समद पाहझ बम |

इस मशय का जाप नितप एकसो रककीस वार

उततर दी ताफ मल करक करन बादिए धप दीप रखनपत

मनतर की राकति बढती ह सो अयया सदित कपयोग स

रकना रब खाप परा नो झाव ठचय दककीस सदकार गिम न २

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यनतर-मनतर-कलप सगरह [ १०३

लना इस तरह करन वाल को तमाम तरह क भय नषट

होग और धीर धीर आननद मगल होता जायगा।

>>] विदया सिदधि मतर ॥८॥

ऊदठी अह णमी जिगयाण, ऊ ही अह आगासगा- मिण ऊ ही शरी वद घद वागवादिनी भगवती

सरसवति ममविदयासिदधि कर कर ॥

इस मनतर का अधिक जाप फरन स ऐसा भास

होगा कि जस आकाश म उड रह ह, जाप करक धअषट दरवय स जिन भगवान फी पजन करना ओर सरसवती दवी की पजन करना-पजन वासकषप स कर तो भी दो सकती ह, जाप तो आख बद करक करना चाहिए जब पर हो जायगा जिस विदया को सिदध करना हो ततकाल सिदध दोगी, और आपयषय फा दाल मालम दवोगा करषट का निवारण होगा,

_- ॥ बडक भर मतर ॥६॥ ऊ ही कली करो को बडछाय आपदउदधारणाय कछ कर घटकाय ही हमलवय नम ॥ यदद सन‍तर घढत चमतकारी द, ऋरणसथभातरी दव का

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१०४ ] यमक-मरतर-कशप सपर

यद सनत द सो शकति दख कर झाएधन फरना चाहिए

बढ मालधा निरय फरमा और बलची नवध चदाना जब पषाद बारद हजार खाप पर दो जाव तब विशप पजन करता और बजी सट करना पदि करिया शदध हई होगी दव परतयकष भरणवा सवपम म आकर सपषट शततर दगा

निरमरता स जाप करता और माप क समय म कोई विशन आब तो डरना मही निमगर दोझर जाप परा

करना पतो आशा फलतगी धरम मौति दान पमप पर विषय शना झिसस सिदधि पा सकाग।

॥ इवि मतर सगरह |

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करप समगरह ,

॥ सह दवी कलप ॥

सहदघी का छो टासा माड दोता द जिसको जडी-

घटी म गिनत ह, जहा पर सहद दवी का माड दो वहा

शनिवार की रात को जाकर धप दकर एक सपारी पास म रख हाथ जोड विनती करना क ह दवी शरात. काजन म

स तझ मर यददा पघराऊगा, इस तरह कदद कर सवसथान

पर आ जाना, रविवार परात. काल होन स पहल जाफर

फिर फतन सट कर नीच लिखा मतर इककीस बार पढ ।

3० नमो भगवती सहदवी सददतहयानी

सईबहठकर कर सवाहा ।

इस मतर स मतरित कर जड सदित बाहर निकाल

ओर मोनपण सिज सथाल पर आकर एक पाटल पर सथापन कर धप दीप कर फल भट कर और फिर उसकरा रख निकाल और उस रखम गोरोचन व फसर डाक कर गोजषी बनाल जब कभी काम हो-तब गोतली को घिस कर

*

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१०६ ] बसव-सन-कलप सपई

विकषक कर जान सिसस बाचाजराप दोगा वह सरण दो

शायगा और विजय मिलषगी। खहरती दी खड को इाब$ आधरम स रोग मपठ

दोठा द, इसफ चण को गाय क पी म मिकता कर पीम स

अबया सतरी ग घारस कर सकगी, परसव फ समय कए

ही रदता हो दो इसको कमर पर बाधन स सश स

परसव होगा कठसाकष रोग म गकष पर मोषम स कठ

मात रोग घता शायशा दवाप क बाप कर पररमान कर हो

कय पाव थरियो म बाद विधाद करत इसक सख को पास म रस तो अप पाय इस तरदद स सइवबी का फल

ह, परान दसत शिशित परसयो स उदधत कर परकाशन करात ह, इति सहदबी करप |

॥ छघोगसरस कन‍प ॥

सागसस कप ी ओ मतर बठस गय ह जिमडा

डाव-रम रण साप मइाय $र वो बप दीप एसन की

झाषशथकता महदो ह, पिधकषी राजि दो पडी बाकी रह दग रिपरता परवक रिवर झासम स था कायोरसरगासम

झड रइ कर कर सकत ह पइ समरण रद कि कामाससगो

झम स शीधर भञाम दोगा।

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७ ००-_-_०9०9५#गिननगगन+3 3 मन भ33 ७3७ म 3५3८ कक न 9५०9 कण शशम वि

यनतर-सनतर-कलप समरह [ १०७ मन ाका93७७७2७७४७७:७४४७७७४७७००७०७७७७७५७५४५००७ ०० ० रा एएनलनणशणणणणणओई

॥ सपतति परदान मनतर ॥

3 ही शरी ए लोगसस उजफोयगर घममति-

सथयर जञिण अरिहनत कितत यसस चडबविस

पि फवलि मममनो5भीषट कर छर

सवाददा: ॥ १ ॥

इस मनतर का जाप खड रदद कर करना चादटिय

समपतति सख क लिए शवत आसन शवत बसतर शवत माला

ओर सामन चकशवरी दवी का आलसथन रख या नव पद यनतर रख कर कर घप दीप जाप करत समय अखड

रखना और भआलमबन क सामन नबयय फलष भट

फरना चाहिए ।

॥ मान पान सपतति सोमागयदाता मतर ॥

3» करो की हा ही उसभमजिय च बनद

सभमवमसभिणदरण च समह व पउमपपह सपास

जिया चदपह वनद सवाहा ॥२॥ इस मतर फा जाप करना दो तो परथम काय का

सकलप फर लना चाहिए और दवो सक तो सात दिल क आयबिल एक साथ कर एकाद सथान म इस मनतर का

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१०८ ] ००)... यातरमसयकलप सपरह.....

इककीस इतार पाप परा कर पयथा शकति बष को मर

कर अडटा शक काय सिदध न दो एक साकषा मितय फरमी च|हिए जिसस शीपर दवी घिदधि परापठ दोगी, बसव अासन क छिए कोई सास विधाम परो ह परमत रमापमा और बप दीप अवरस रखमा बादिए ।

॥ सप पदधि मतर ॥

3० ऐ ह म मी सपिटि चरपपपरतस सयिशष सिममस बासपरज व बिमफतमणप च शियपघमम

सतिष बमदासि कभ अर 'लर सकषि बमय मझिसमधज सस‍वाहव' ॥8।|

कब गहसथ क घर म कसमप दी लाय परा परतपर

पर पढ जाय साथ‌ समभदायम भधवा गघझम-समपरदायरम सभाड म कसमप दो शाम सनइ परथी विषछश दो बाय ओर 'ातर पर झागव दोता रह, परसत मख की सिठाश बढदी शवाय और परोकष म जिदा दोती काम पपी सथिति गशहसथ या साध समदायम हतपपत हो लवाय दो पह मसत

बिरोप काम दखा ह, इस मसत का सबाजास बाप काना

बाहिए और सकशप कर हरवाद कर दो चार सा भरपिक

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यनतर-सनतर-कछलप सममह [ १०६

जितनी माला नितय फरना हो सकलप करत सभय निशचय कर लव और जहा तक जाप परा न हो नयना-

घिक माजञो न फर ! जब जाप समपरण हो जाय तब शालमबनन को सामन रख वा सकतष स उततर करिया कर आर सवाहदा बोलत ही वासकषप चढाव इस तरह स

करिया परी दयोन वाद एक माला नितय फर कारय सिदध होन बाद‌ बद कर या न कर इचछा पर ह। इस भन‍तर

क परभाव स सप बढगा मान-पान म बरदधि होगी परसपर का वरभाव मिटगा जय विजय होगी और समपतति छखख का निवास दोगा |

॥ स भय कटमप कलश पीडा हर मतर ॥ ४॥

3० ही शरी समनसिजिण 'च बनदामि रिह- नमिपसतहबदधमाण च मनोबाडिछत परय परय सवाहदा' ॥४॥

किसी परकार का भय उतपनन हआ हो गरहसथी हरा साध को सताप दवोता दवो गरहसथ को ससारिक छटमब या राजकाज आदि भय आपतति आन की समभावना दवो वो यह मनतर सिदध करन, स सवभय मिट जात ह, चतर

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११० | सरसव-ममतरकलप सपरर

बिहवान धरमिट की गिनती म आए हव मानवियो की शोर स पस भय आब तो पीत रग साला स आप करना चाहिए सामासप ऋए सवमावो दषट निदगी दसमझक मामवी की ओर स भप झान की सममाबना

हो भा झागपा दवो तो कषातव रग की मासा स जाप करना बाटिए, इपट दव क समरण को म मक !

॥ जय विसय वशीकरण मतर ॥

45 दरी ही परबमए भमियपा विहयरयमला पषददीयगभरमरणा चडमविपतपि विशगरा

विलवयरा स पसीयत रबादा' ॥श!। जिस भमषय क सिय समदाय म मपियत। दो गई

हो कोइ सानपानडी दषटि स म दखता दो भौर जहा

आय धबहा पर भपमान होता हो, परा बिना कारण

ही कोइ अपवाए बोकषण दो तो इस मसतर क जाप स सिदधि परापत करना चाहिए शिमस सब कारया म शय बिजप दोगा और वा झोग विशदधता रखत ऐ बए वश म आबग सनद बढगा भौर शाति मिलगी |

राप सझया व बरत ब बग गहशख हिशा दआ मी ह जाप करन पात भरपनी पदधि स पमझाकष

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यननर-मनतर-कलप समरह [१११

ओर शकति अनसार कर, घरमाराधन व नीति नयाय को न छोड इचट दव का रमरण घरावर करता रह जिसस सिदधि दोगी।

॥ समाधिशाति सखदाता मतर ॥

<“ थरॉ अमबराय किततियवदियमहिया ज

लोगससउततमासिदधा आरोगग बोहिलाम

समादिवर मततमरदित सवाहा, ॥६॥

शरीर म वदना दो और दवाय हाय होती रह, वदना स अशाता की वदधि दोती हो ऐस ससय म इस मनन क जाप स शाति आजाती ह, अशाता बदनीय का उदय किसी समय इतना बढ जाता ह कि शाति का आना कोसो दर दीखन लगता ह और जो भी कछ सममराया जाय सनाया जाय तो भी चितत की सथिरता नही दो पाती, और ऐस समय म जिस मनषय फो वदनीय का उदय ह बदद तो इस मतर का जाप करन क लिए शकतिवान नही हो सकता तथापि पास वाल लोग बीमार को यह मनन वारसवार सनात रह जाप कर और बोसार की शदधि हो तो बह भी कराता रह जिसस

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भदमो दोगा शाति झाषगी और झायधय समपण होन

का समय आया ोगा तो समाधि सरण होगा रबिरता बढती समकित रादध दोगा और झव सिसोगवि क मयाय स सदगधि परापस होगी।

॥ यश परतिषठा परदधि फरता मतर ॥७॥ ४ ही एशो मी सी अमद स निममहयरा आइकचमभहियपयासर। सागरबरगभीरा परिदधासिधधि मम विसलत मममनोबासछित परय परष रबादा ॥ ७ || परसयक मनणय को अपन अपम कारय म पश सतिषता

को इचछा रहती द गहसम हो मनि दो धपयानी दो पोगी हो बकरी हो बपापारो दो-अयवरसायो हो शवव निज

कारय म यशा चाहत ह मौर पश मिकष जरायगा हो परणिपठा तो अपन आाप दो साती ह कयो कि यरा क

थाद‌ दवी परतिषठा भाषा करती द इस लिए पश परतिषठा क इचछक आअरमाझो को इस मसतर ढा छाप करना शआादिप पह असपसव पमरहारी ह, अप ससया कितभी कएना! यह भिम मनोबल पर आपार रखता ई विधान म समा का हहसा महदी ६।

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चखचहझचििलट७टल‍लिलओखययथयचयथचखखखययसः

यनतर-मनतर-कलप सगरह [ ११३ ___ || _ -....____त.ल‍_.०६०००-०००-->ऊज2यअ2-:-:

लोगसस कलप एक और दखन म आया ह, जिसस

अलप अकतरो क मतर ह ओर विशषकर सवपत शभाशय

दरश आदि छाय क ह, लोगसस कलप जो परकाशित

रराया जा रहा ह यदद सिदध हो जाय तो सनचछा पर

होगी अत इस कलप को यही समापत करत ह ।

॥ ऋणशहता सगल कलप ॥

॥ मगल सतति ॥ रकत सालायावरघरो, शकतिशचलगदाघर । चतसजो बषगमतो, चरदशच धरासत ॥ १॥ दहो हि भगवनभोम, कालकानतहर परभो ! ॥ सवयि सवमिद ओरोकत , जलोवयस चराचर | २ ॥

'. ॥ मगल सतोतर ॥ मगलो भमिपतररच, ऋणहतो धनपरद ॥ सथिरआखनोमहाकाय*', सरवकमोवरोधक- ॥१॥ लाहितो लोहिताकषशच, सामगानाकपाकर" ॥ घरातमज कजषोमोमो, सतिदो भमिननदन. ॥२॥

अ गारकोयमशचव, सरवरोग परददारक. ॥

सषटि कतोपहरता च, सरवकरायफलपरद ॥श॥

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१४३ ] अखन‍मसतर-कसप सपद

॥ मगदधदव नामनानि॥। १ मगकष २, ममिपतर १ ऋण इता ७ घनपरदाय

४ सथिर धयासनाय ६ महाकायाय ७ सरभ करमावरोध काय ८ कषोदिभव £, छोटिताश १० सामगाना कपा एप ११ घरापतर १२. कसाय १३, मौमाय १४ मठदाय १४, ममिनखताय १६ अगारकाब १७ घमाप (१८. सरोगापहाारकाय १३. सषटिकता २० अप २१ सपकारयफकषपरदाय ।

॥ मगदव यकष मतर || ॥ +* को ही को स! मगलाम नम ||

॥ मगसतदष विधान ह दरदगमनाशाय, बनपतान दतव || कतरखावरयदाम, बामपाद तहनद' | १ )।

॥ मगछतदष सतवि ।! इसममरण वरया, रकत मारयाग यग ॥ कमक कत$% सार, सालिबविशवपप | १ || परतिशकषित कामपा विभरमशकति अलल ॥ सडहिपराफिसन मगल मगरानाप‌ ॥ ९ ।|

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यनतर मनतर-कलप समरह [ ११५ असल... 5

मगलदव | क

|| व अध सतति ॥

भमिपतर महातज, सतदोदटभव पिनाकिनः ॥

धनारथी तवापरपननोसमि, गरहण वरम नमोसत त ॥ १ ॥

॥ मगलदव आराधन विधान |

यह फलप बहत स कारयो फो पार लगान म काम

आता द परनत इसका नाम पराचीन परत म “ऋचहरता मगल कलप” लिगवा ह, ओर मगल दब क इकफीस नाम जो सतोतर म बताय ह उनम तीसर करम पर ऋशदरता नाम ह इसलिए इस कलप का नाम ऋणहरता मगल कलप भी उचित ह और बस जिस मनषय क विशष ऋण दो गया हो और उसकी वदधि स मकति न होती हो तो ऋण उतारन म मगल दच की आराधना लाभदाई दोती ह मगल दव यह नौ परदटो म स एक ह और जयोतिष शासतर म इनकी तजसविता ब मगल कोक का सवरप बताया ह जिसस सिदध दोता ह कि यदद गरह विशष पराकरमी ओर तजरवी ह। जब इसकी कआाराधना की जाय तब सामन आलषसबन म मगल दव की सथापना ऊच आसन पर करना चाहिए । आराधना करन क लिए

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११६ | यस-मसतर ऊरप सपरदद >-ब--- कण फिलणज-जततततमफिलफपरजमललतज

बसतर आसन और मातञा जाहन रग परी शवना चाहिए, दव क चठान को कषार पषप नवध मी पफ हए फल कप

और कषातन सपारी चढाना चाहिए, सव सतर सरइ स धप दीप की तपारी हो जाप हय दव क सामन हाय ओड फर स‍थति क रपनोक ओ आरमम म ह बोजना भाहिए, सतदि घोज घाह मसम समरकार करक मगहनबग

का सतोतर थोरना और सतोतर क अमसार इचकीस नाम बताय ह हनऊा हौशय म रखता और फिर मल मतर का जाप करना जिसम मतराशर बोछ कर परथम बार मगकाय

नम बोकषमा इस वरह स परसमक मथत म ममतराशर

बोल कर वसरी बार भमिपतर भम' तीसरी गार ऋखइरता नम* चोशभी बार घनपरदाय नमः इस तरह इककरीस पाम

क झाग मसवाधर और नाम क बाद ममा पदषव लगा

कर वक‍की प शाप कर आयधिक कर तो एक वार वो बार

तीन वार, चार बार करन स अनककम २१९ ४२ 2८ $4 २

८९ होग शव भरम णाव परा दो खाय तब एक सर की

कषकडी पहल स दी पपार करा कर पास म शल और

सिशञ क बायी तरफ घटन क पास शर की खकडी स

हीन शकीर सखोब कर जकडी हास म रस कर 'दखतरगम

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यनतर-मनतर-कलप समरह ११७ ] गखयययययययजलणललललल

ल जिल __>न‍तऊाऊतऊान‍न> चलो 5

नाशाय” विधान शलोक को बोल कर लकडी रख दव

ओऔर बाय पाव की पगतली स तीनो लकीरो फी मिटा

दव । इतनी करिया करन क बाद जो दववय-वसत भट

करनी हो कर और फिर जल फा कललश दवाथ म रख

अरघ सतति बोल कर नमरकार कर सथापना विसजन कर।

इस तरह स इककीस दिन तक करन क बाद बाइसव

दिन मनतरोचार म नम शबद न घोल और परतयक

मनतर क साथ फट‌ सवाहा बोल कर उततर करिया कर परतयक फट रवाहदा. क साथ दशाग धप का होम धपदानी

म करता रह और इतनी करिया क बाद जिस कारय क

हत आराधना की दवो दव क सामन सकलपरप परारथना कर और फिर नितय इककीस जाप करता रह सकलप परा हो जान पर बध कर दव इस तरदद स मगल दव को, आराधन करन का विधान द। अपन दषट दव को

साननिषय समझ करिया कर शरदधा रख धरम नीति पर चल बरहमचय पाल दान दव ओर नियम वदध कर तो करिया फलनती ह ।

आराधन करन क दिनो म आयबधिल की तपसया

कर आयबिल नही दवो सक तो कछ दिन एफासना कछ

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११८ ] य बर-मसथ-करप सपरहद

बिन धाम बिलल कर आराघन कर दवायघन म तपसया अयरय करना चाहिए, डिसस सालिक परकति रहती ऐ और शाति मिकषतरी ह, विशष विधान गरगम म परापत कर हमन तो शितमा समइ छिया ह लतमा दी परदाशित

करा रह ह। असन

॥ धममोमगछतपरककिदट फरप |॥

पममो, मगकन, मफिटट, अदिसा, सजसो, सबो, # यह दशबवकाजिक सतर छी गाया ह, और उपर

पताइ हई भाषी गामा का ऋहप इमार दवा आया ह

पराचरीस परवक दिलस परषठ नपट दवो छान स दश महो

षाप झत' शितमा समइ कर पाय ह इतना ही परकाशित कराया जाठा ई |

इस गाजा म छ शबद ह खिनकय साव-झय कलप म इस हरइ बताया ह कि--

बममो-पारा मालल-गघक मकिद -तादा अहिता-क बारपाठा सजमो-अगधिया

शबी-काकापतरा

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यनतर-मनतर कलपसगरदद ११६ |

इस तरह छ शबद दवाराछ वसतए पारा, गधक, ताबा, क वारपाठा, अगथिया, और काला धतरा बताया गया ।

अगथिया दो तरह का होता ह एक लाल पषप का, दसरा पील पषप का इसम कोनसा लना विधान म इसका खलतासा नही लिखा ह।

परथम पार की अगथिया क पषप क साथ पीसना चाहिए और सगदी जसा बना कर अलग रख लना।

दसर गधक को क वारपाठा क रस म बाटना और लगदी बना लना | ह

तीसर ताबा सोटचका लकर उसका चरा करा लग ओर कालला धतरा जा पील पषप का दयोता ह उसक रस म खब बाट लव । *

इस तरदद स किय बाद तीनो की एक नगदी बना लब और पील पषप वाजनी बनदार क रखम सात दिन तक घोटता रह जब घोटत घोटत सात दिन पर दवो जाय तब जगदी बना कर मिटटी क दोव-कोडिय म रख दोनो कोडियो पर मिटटी लगा कर वध कर दन और

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१२० ] धतर-ममव-कलप सपरद

फिर गजन पट की भा दत सो हगमग भाए परहरए म

मातरा सयार हो थायगी। ठडी होन पर फोडियो म स मातरा निकाझ छषब, मातरा शदध बन गई बोगो तो एक

पोल एथ क रस म एक रची सावा भर कर सापगी, इस शरद छा विधान द दोता म दोमा मसीब पर ह यह परमोग जसा पाषा द बसा परकाशित करत ह भौर साथ दी इतना अवशय कहत ह दि परसयक किया म

गरगम की भति आवशयकता ह जो मददातमापनो दी

सबा करन स परापठ हो परकती ह |

न‍ ॥ झपरण सिदधि कलप ॥ बरतमान का म कई बार सना गया ह दि सषय

सिदधि का पलनोमत दकर घर का जवर झामपण या

सोमा सगबा कर इसका हगमा कर दन की पकलाहच

दकर मोझ जीषो को ठग बात ह कौर कई बार समझ

दार चर भी ऐस फद म झाजात ह। झोर पर का घम

को बठत ह । दवा ऐस परयोग कई तरद क दोत ह ओो

पथ पशयोरष स सिदध दवोव ह, भरत! छो मरम आकर

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यनतर-मनतर-कलप मगमह [ १२१ कनन+ +--++----_+/+ ४*"““+“/--*““++४++++

ठगो की ठग विदया स सावधान रहना चाहिय। सबण सिदधि कलप म स एक अयोग का वरणन

किया जाता ह जञिन को करन स पहल गरगम परापत करना चाहिय।

परयोग करत समय पारा, लोह का बरादा, ताब का बराद।, और सफद सखया वजन म बराबर लकर आआकक दधम सबकी एक साथ खरल करना, करत करत बारीक पीसत जगढी तयार हो जायगी जब लगदी चन जाय तब अलग रख, मिटटी का दीवा लकर उस म एक तोला सददागा पीसकर रख दना और उस क उपर लगदी रखना। फिर एक तोला सददागा नगदी क उपर रखदना और उपर दसरा दीवा ढक दना , दोनो दिय पहल स घिस कर तयार रखना चाहिय जिस स दोनो को मिलात समय सधि म छद न रहन पाव जब दिय तयार दोजाय तो एक ढिय पर दसरा दिया रख मजबत ताब क तार स बाधदो , सधि पर कपड की चीधी मलतानी मिटटी म सिगोकर लपट दो उपर स फिर दो धवीधी लगा मलवानी मिटटी स आचछादित करलो और खब ससल कर इसतरदद वबसालो कि वायका सचार

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१२] यसथ -मरतरकलप घपह

नही होसक इस तयार दोनबाद लख तो ह दि पदचचीस कड लगाना कषकिन कितन कगागा यह सिजकी बदधि उपर आपार रमबता ह | जब कह भाप स कम शतल झाय तब

मधयम कपदमिकरी बाल दिय का रख दना और बार घट तक अदर रखमा बाद म बाइर निकातनना भौर भीर घीर खोबना माशरा तयार हई दोगी तो बह एक दोल शदध ठामरस म एक रखती सातरा काम दगी | पर क विधान म पारा आदि कितमा लमा पद लिखा नही ह डिखत शरनमाम स सब सिनताकर पक तोला बजन सना चाहिप इस तरइ स यह परयोग पसा परापत हव। ह

तसा दवी परकाशित कराया जाता ह, सिदध दोसा सम होना मसीब भर आधार रखता ह सबस पोरस आादिको सिदधिका बम शासतरो म भरीपाजजी क चरितर म भावाई हस धमत हए मह वो मानना पडगा कि सबण सिदि

ह बरर परध भापत दोमा भागयाषीम ह, धरम मौति पर हढ एडसा इपटवव क रमरण को भईदी मलना |

लपर बताय हए परयोग म एक पशवक म पसा भी दखा गया द छि सखया पीछष रफका भादिए इस बात

का सलासा टीक ठरह स तो इस विदया क निपशात

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यनतर-मनतर-कलप समरह [ १२३

॥ वीश यतर कलप ॥

॥ सात खान का वीशा यतर ॥ चीशा यतर कलप-जिसक साथ विधान यनजन-और मतर का मिलनना सागयोदय स दोता ह। यतर क साथ मतनर होन स आराधन फरन वाल को जलदी सिदधि भरापत दोती ह, पहल यतर घना दत ह इस को ठीक तरहद स समझ लता चाहिए ।

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१४०]. गतर-मसतरकरप सपरद

ऊपर बताय हए यतर का आालजललन भअपटगघ स

करसा भादहिय और झव सब कोठ तयार दो आय तब बीच म ओ यतर छ छणिया बताया ह उसम परथम

बायी हरफ क कोठ म दो छा अक हिलमा फिर धीनका-चारका-छ-सात-आाठ ओर दशा का करक धषिसख यतर फखन को परा किस बाद बास म मलत

पलिसमा मस--

४० ही सितरपिगकष दह सपापन हन दस पथ पथ सरव सापप सतराहमाः | इस मरतर को परथम दपर कोठ म स आरमम कर

बताप मषाफिर किस जस २ हवी किसा बार म दसर काट म चिदरषिगज हीसर स मीच क कोटठ म वद बोय बासी तरफ क कोट म गयापन सषिख और नीच वाहिसी ओर क कोठो म इन इन लिख भमीच बायी ओर क

कोन म पतर पर परथ सषिसत पर फ बायी भोर क कोन म सापय खिसझना और फपर क वाहिमी ओर क कोम म रबाहाः कविता इस सरइ स यतर तपार करना !

सिदधि परापत करम क इत एक यतर शाशरपतन पर

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यनतर-सनतर कलपसपरह शयर

ज लखन विधान क अनसार तयार कराना और भोजपतन या कागज पर लिख हए दम-बीस यतर भी साथ रख सिदद कर लना चाहिए सो बढ हए यतर किसी को दन म काम आय, इस तरह की तयारी क वाद आग क विधान पर धयान दव।

सिदधि ऋरत समय एकानत जगदहट दखना चाहिए

जहा जनता का आना जाना न दवो और पीपल का वकष हो उसक तीच सथापना-वयानारथ जगह शदध करा लना चाहिए और जीवत वाली भमि भी नही दोना चाहिए अखड जयोत की रकता का धयान भी रखना उचित ह, * ओर इस तरदद की तमाम करिया को शदध मान स करा सक ऐस दो सचक अथवा सहायक को अवशय रखना चाहिए, पीपल क पतत पर एक सो आठ बार यतर मनतर सहित लिखना और पीपल की लकडी स घत लगा कर पततो को रख दना, फिर मनतर का जाप करना-कितना करना यदद विधान म बताया नही परनत अनमान स सिदधि करन बाल को समझ लना चाहिए, फिर सामन एक क ढ जसा बना पीपल की लकडिया कपर स जला कर मनर बोलत जाना और सवाहय बोलत ही घत या

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[११६ गरसत नमसथऋकप सपह धार 2 505: :70%00:2:0:::070#"ह-री+५४२१५०४०१७ ५५५०३ ५०त५0:5:+*अ पता: परा :मापरय->ान--+नार 2-2 5० ह

थतर झिलखित पता और वशाग छोडत खाना इस तरद स चाहमोस दि तक करना चाहिए, परयोग चह जितम

कबछ दप या एप दी बसत दी पान कर सरस जज टडा दिया दबा पीय भमि सभारा, शरहमचरस पाशन और उसक बमतर पर शयन कर | लाप का समस पिशकली राजि का ह ओर इपन कस करना समापना मठक आदि शरगम स परापप कर सिदध साधक का जोडा होता ह तापस सब सिदधि कर रददा था परत सिदध पदप की सापरिषपता मही थी जिसस कार सिदध मददी होता भा जब भी भी पादचडी मददायाजा दत रमामरम खड रह तो ततकाज सिदधि दवीगई

डिपतका बयात शासतरो म ऋजा द ।

सिदधि क समय शरीर व वसत शदधि करा षयान

रखमा चाहिए और झावशमकीय झअझपषणथा दिशप इतसा हित दोकर काम करना ह तो ममतर आप विकाल करसा

चिप ससया का समय बराबर साधना ओर दव क कर नबद मिल‍पम 4 करत रहना पषप भलञाव था माकती क अडामा इस तरद करत राधि म सवपम आन जिसका धयाम रखना और सिदधि परापत दोन क बाद तो अब कापय दवो बनच को सघापत रकष पक साखा फर कर सो

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यनतर-सनतर-क लप समरह १२७ ]

जान स शभाशभ फल और वयापार क अक का भास होगा जिस समरण रख शभ कारय करत रहना |

जो यतर कागज भोज पतर पर बनाय ह उन म स

एक निज क पास म रख कारय करना सो लञाभ होगा धरम नीति शरदधा सयम नियम को कभी सत भलना धरम स दवी विजय पा सकत ह । असत

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* जआ >0- 4० ० ३०% 3 कक >क० ० 4क कक | -३ इक च 4

घटाकाए-कलप -+>ट मक (७००

शीप भरकाशित ही रहा द-मषिसम झाराधन

करम फ विधि पिधाम सपषट भाषा म वतान क

ह झतिरिकत यतर भादि क एक दरजन फोट दिय ह, ४ “६ पसतक विशष महसवपण दहोगी, सापारणख

ह मनषय सी झाराधन कर सकता ह और दऐव का

झाकरपित फोटो व बरश भादि क सिशर बहत दपयागी

$ दवोग माइक परणी म नाम छिखाइय करामत पाच

डर शपया | पोसट ल--आाठ भाना। पता--

पदनमल नागोरी मन पसतफालप पो छोटी साइडी (मबाड)

विशष सचना ऋषि मडल शलोज-विकरिधराथ भव मही द |

६_नथषार मददामतर इल‍प-- कीमत ) !

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