रोग वचार क '...

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E ISSN 2320 – 0871 भारतीय भाषाओं कȧ अंतरा[çĚȣय मासक शोध पǒğका 17 फरवरȣ 2019 पीअर रȣåयूड रेĥȧड ǐरसच[ जन[ल This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 7, Issue 4 11 रोग वचार कȧ पृçठभूम Ĥदȣप कु मार मĮ (शोधाथȸ) Ĥो. मथला Ĥसाद ǒğपाठȤ (Ǔनदȶशक) महष[ पाणǓन संèकृ त एवं वैǑदक वæववɮयालय उÏजैन, मÚयĤदेश, भारत शोध सं¢ेप åयाधेरǓनçटसंèपशा[ÍĖमाǑदçटववज[नात ्। दुःख चतुभ[ः शरȣरं कारणैः सàĤवत[ते।। (महाभारत, आरÖयपव[ , . 2 æलोक 22) रोग का Ĥकोप, शरȣर मɅ अǓनçट अवांǓछत संĐमण, अ×यधक पǐरĮम एवं Ĥकृ Ǔत के वǽƨ आचार - इन चार कारणɉ से शारȣǐरक कçट का उदय होता है। कसी भी रोग के उदय मɅ इन चार कारणɉ के योगदान को समझने के लए उस रोग कȧ पृ çठभूम को ठȤक से समझना चाǑहए। इस शोध पğ मɅ कु Öडलयɉ से रोगɉ कȧ पहचान करने Ĥवध को वæलेषत कया गया है। Ĥèतावना रोग वचार कȧ पृçठभूम जातक के कमɟ के आधार पर बन चुकȧ होती है। रोगɉ कȧ पृ çठभूम को समझने के लए यह जǾरȣ है क हम रोगɉ के Ĥकार को èपçट करके आगे बढ़Ʌ। भाव-राश-Ēह-दशा- न¢ğ के सिàमलत अÚययन से रोगɉ के Ĥकार का पता चलता है। रोगɉ के Ĥकार का अथ[ है क रोग साÚय और असाÚय हɇ या संĐमण और गैर संĐमण वाले हɇ या èवाभावक या दुघ[टना जǓनत हɇ। इस बारे मɅ अमरȣकȧ डॉÈटर एच. एल कोरनेल ने लखा है क In my years as a physician, I have, by the use of Astrology, been able to very quickly locate the seat of the disease, the cause of the trouble, the time when the patient began to feel Uncomfortable , as based on the birth data of the patient, and this without even touching or examining the patient, and my intense desire to get this knowledge and wisdom before students and Healers in a classified form, is the reason for this Encyclopedia.. When once you have discovered the cause of the disease, and understand its philosophy and the relation of the patient to the great Scheme of Nature, the matter of treatment I leave to you, and according to the System and Methods you may be using. 1 इसका सं¢Üत अथ[ लɅ तो वे कहते हɇ क ÏयोǓतष शाèğ के £ान ने मेरे वषɟ के फिजशयन कȧ तरह से डॉÈटरȣ मɅ रोगɉ के होने कȧ जगह , कब हɉगे और होने कारण को तुरंत जानने मɅ मदद कया है। मेरȣ इÍछा है क यह £ान मɇ अपने छाğɉ तक पहु चाऊँ इसलए यह इनसाÈलोपडया लख रहा हू ँ। जब आप रोग होने का कारण ढूंढ़ लेते हɇ और दश[न समझ लेतɅ हɇ तथा रोगी का इस महान Ĥकृ Ǔत से सàबÛध

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  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 फरवर 2019

    पीअर र यूड रे ड रसच जनल

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    रोग वचार क पृ ठभू म

    द प कुमार म (शोधाथ )

    ो. म थला साद पाठ ( नदशक)

    मह ष पा ण न सं कृत एवं वै दक व व व यालय

    उ जैन, म य देश, भारत

    शोध सं ेप याधेर न टसं पशा मा द ट ववजनात ्। दु ःख चतु भः शर रं कारणैः स वतते।। (महाभारत, आर यपव, अ. 2 लोक 22) रोग का कोप, शर र म अ न ट अवां छत सं मण, अ य धक प र म एवं कृ त के व आचार - इन

    चार कारण से शार रक क ट का उदय होता है। कसी भी रोग के उदय म इन चार कारण के योगदान

    को समझने के लए उस रोग क पृ ठभू म को ठ क से समझना चा हए। इस शोध प म कु ड लय से

    रोग क पहचान करने व ध को व ले षत कया गया है।

    तावना

    रोग वचार क पृ ठभू म जातक के कम के आधार पर बन चुक होती है। रोग क पृ ठभू म को

    समझने के लए यह ज र है क हम रोग के कार को प ट करके आगे बढ़। भाव-रा श- ह-दशा-

    न के सि म लत अ ययन से रोग के कार का पता चलता है। रोग के कार का अथ है क रोग

    सा य और असा य ह या सं मण और गैर सं मण वाले ह या वाभा वक या दुघटना ज नत ह। इस

    बारे म अमर क डॉ टर एच. एल कोरनेल ने लखा है क –

    In my years as a physician, I have, by the use of Astrology, been able to very quickly

    locate the seat of the disease, the cause of the trouble, the time when the patient

    began to feel Uncomfortable , as based on the birth data of the patient, and this

    without even touching or examining the patient, and my intense desire to get this

    knowledge and wisdom before students and Healers in a classified form, is the reason

    for this Encyclopedia.. When once you have discovered the cause of the disease, and

    understand its philosophy and the relation of the patient to the great Scheme of

    Nature, the matter of treatment I leave to you, and according to the System and

    Methods you may be using.1

    इसका सं त अथ ल तो वे कहते ह क “ यो तष शा के ान ने मेरे वष के फिज शयन क तरह

    से डॉ टर म रोग के होने क जगह, कब ह गे और होने कारण को तुरंत जानने म मदद कया है। मेर

    इ छा है क यह ान म अपने छा तक पहु चाऊँ इस लए यह इनसा लो प डया लख रहा हू।ँ जब आप

    रोग होने का कारण ढंूढ़ लेते ह और दशन समझ लेत ह तथा रोगी का इस महान कृ त से स ब ध

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    पता चल जाता है तो उसके इलाज के तर के को म आप पर छोड़ता हू।ँ यह आप पर नभर करता है

    क आप कौन सा तर का चुनते ह। ” रोग क पृ ठभू म को ठ क से समझने के लए इस शोधप के

    न न उप शीषक म वभािजत कया गया है।

    कु डल से रोग वचार जब हमारे सामने कसी जातक क कु डल आती है तो हम सबसे पहले उसके ल न का अ ययन करते

    ह। इसम हम ल न क रा श, रा श का वामी, ल न का अंश, ल न के रा श वामी का अंश, ल न

    वामी कस भाव म गया है ? ल न पर कन ह क ि ट है ? इस आधार पर ल न शुभता-अशुभता

    का पता चलता है। उदाहरण के लए य द ल नेश शुभ ह है, शुभ थान पर बैठा है और 10 से 20

    अंश के बीच का है। ल न पर शुभ ह क ि ट है। तो यह नि चत हो जाता है क जातक के पास

    पया त जीवन ऊजा है। इसके अलावा आयुदाय योग से भी पता चल जाएगा क जातक द घायु, म यम

    आयु तथा अ पायु है। य द द घायु होता तो सामा यतः उसका जीवन शैल ाकृ तक रहेगा और वह

    संतु लत जीवनयापन करेगा। िजससे उसको रोग होने क संभावना कम होगी और य द रोग ह गे भी तो

    बल जीवन ऊजा के कारण ज द ह ठ क हो जाऐंगे। य द म यम आयु होगा तो जीवन के ार भ म

    या बीच म वकार को ज म देनेवाले ह क दशाएँ आएँगी िजससे वह अपनी जीवन शैल को खराब कर

    लेगा। वह ाकृ तक जीवन शैल से कृ म जीवन शैल क तरफ मुड़ जाएगा। िजससे उसका आहार- वहार

    बगड़ जाएगा और भाव जीवन के अं तम समय म दखाई देगा। यादातर इस तरह लोग को नशे क

    आदत हो जाती है। वे कोई कसरत या शर र यायाम नह ं करते ह। िजससे शर र म रोग से संघष

    करन ेक ऊजा घटती जाती है। एक समय आता है क यह इतनी कम हो जाती है क रोग इस पर

    वजय ा त कर लेते ह। कुछ यि त ऐसे भी होते ह िजनक नौकर ऐसी होती है क उसक

    प रि थ तय के कारण म यम आयु के योग को फ लत करने म सहायक जीवन शैल बन जाती है, जैसे

    रा पाल म लगातार नौकर करनेवाले लोग, लगातार 8-10 घ टे तक बैठ कर काम करन ेवाले लोग।

    आजकल जो लोग क यूटर पर ो ा मंग या बहु त देर तक काम करते ह। ऐसे लोग िजनके काम म

    लगातार भयानक तनाव या टकराव होते ह। इन सब ि थ तय क जानकार उनक कु डल से पता चल

    जाता है। यह पूरा जीवन ह कम का भोग है, और कम के भोग ह कु ड लय म दज होते ह। इनको

    लंबे समय तक चलनेवाले असा य रोग जैसे मधुमेह, मग , नपुंसकता आ द भी हो जाते ह। तीसरे कार

    के लोग वे लोग होते ह िजनक अ पायु होती है। इनके जीवन म अचानक असा य रोग जैसे कक रोग,

    य रोग, ए स, लकवा आ द हो जाते ह और जीवन ल ला बहु त ह ज द समट जाती है। अ यथा

    इनक जीवन शैल इतनी बुर हो जाती है क वे अ त नशा, अ त तनाव और अ त यसन के शकार हो

    जाते ह। िजसम जीवन ऊजा का य बहु त तेजी से हो जाता है। इस तरह के लोग सामा यतः ज म के

    समय या कुछ दन बाद ह दुःसा य रोग से भी पी ड़त हो जाते ह। इस तरह से आयु क गणना

    यो तष के रोग अ ययन का पहला पद होता है। इसके बाद दूसरे अ ययन कए जाते ह िजनम वशेष

    प से ष ठ भाव का अ ययन कया जाता है। ष ठ भाव के बारे म पाराशर ऋ ष के यह छः लोक

    अपने आप म बहु त समृ और सट क ह। इसको के म रखकर रोग का फ लत ठ क ढंग से कर

    सकते ह।

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    अथ व ! फलं व ये ष ठभावसमु वम ् । देहे रोग णा यं तत ् ूयतामेकचेतसा।।1।।

    ष ठा धपः वगेहे वा देहे वाऽ य टम ि थतः। तदा णो भवे ेहे ष ठरा शसमा ते।।2।। एवं प ा दभावेशा त त कारकसंयुताः।

    णा धपयुता चा प ष ठा टमयुता य द।।3।। तेषाम प णं वा यमा द येन शरो णम।्

    इ दुना च मुखे क ठे भौमेन ेन ना भषु।।4।। गु णा ना शकायां च भृ गुणा नयने पदे।

    श शना राहु णा कु ौ केतुना च तथा भवेत ्।।5।। ल ना धपः कुज े े बुधभे य द संि थतः।

    य कु ि थतो ेन वी तो मुख दः।।6।।2 इन लोक म पाराशर जी कहते ह क हे मै ेय जी ! अब म शार रक रोग, या ध, ण आ द के कारक ष ठ भाव का फल कहता हू,ँ एका चत होकर सुनो। ष ठेश वगृ ह म या ल न म या अ टम भाव म ि थत हो तो जातक के शर र म ण (घाव) होते ह। ष ठ भाव म जो रा श हो, उसका जो अंग हो, उस अंग म वशेष ण होते ह। इसी कार पता आ द भाव के अ धप त ष ठेश से यु त होकर छठे या आठव भाव म हो तो पता आ द अपने स बि धय को ण कहना चा हए। य द सूय ष ठ थान का अ धप त होकर छठे या आठव म ि थत हो तो म तक म, च से मुख म, भौम से क ठ म, बुध से ना भ म, गु स ेना सका म शु से नयन म, श न से पैर म एवं राहु अथवा केतु से कु (पेट) म ण कहना चा हए। ल नेश भौम पहले या आठव भाव अथवा बुध के े तीसरे या छठे म से कसी भाव म ि थत हो और बुध से ट हो तो जातक के मुँह म ण होते ह। हमने अंग और ह के स ब ध के बारे म पछल ेआ याय म व तार से चचा कया है। िजसको यहाँ पर मह ष पाराशर के लोक ने मा णत कर दया। या न रोग वचार म दूसरे म पर हम ल न और ष ठ भाव देखना चा हए।

    सामा यतः हर तरह के उ े य के लए कु डल के अवलोकन म सबसे पहले ल न ह देखते ह। रोग के स दभ म तो ल न को देखना ह चा हए। ल न शार रक ि थ त को द शत करता है। चूं क ल न सामा यतः देखते ह ह इस लए हम उसके बारे म वशेष चचा न करके शोध वषय के के व तु रोग के लए यहाँ पर ष ठ भाव क चचा कर रहे ह। इन छः लोक म पाराशर ऋ ष ने भाव, अंग तथा ह के रोग से संब ध को या या यत कया है। िजसको हम कसी भी उदाहरण क कु डल के साथ स या पत कर सकते ह। इसके लए िजस जातक क कु डल ले रहे ह उसका ज म 01 जनवर 1968 को रात 21:40 बजे उ. . के गोरखपुर म हुआ है।

    उदाहरण कु डल -1

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    इस कु डल म ष ठ भाव म मकर रा श है। काल पु ष न पु ष च म देखने से पता चलता है क

    मकर का अंग घुटना और इसका वामी श न है िजसका अंग पैर है। यहाँ पर चं मा ह ि थत है या न

    माता हु । श न ष ठेश होकर अ टम म बैठा है। इस जातक के घुटने म ण होते रहे ह और बहु त बार

    चोट लगीं ह। श न अ टम म है जो दा हने पैर और घुटने का त न ध व करता है। इस जातक के

    दा हने पैर म दद और ण क शकायत बनी रहती है। चं मा के कारण इस जातक क माता जी क

    तीन बड़ी श य या हु ई है। इस तरह से हम और भी कु ड लय पर स यापन कर सकते ह।

    रोग नणय के आव यक त व

    यह आव यक एवं ज टल वषय है। इसम मु य प से न न ल खत त य पर वचार कया गया है-

    1 रोगो प त का समय

    2 रोग क कृ त

    3 रोग का कोप एवं ती ता

    4 रोग के उपचार

    रोगो प त का समय

    रोगो प त-समय ान के लए बहु मा य एवं वीकृत तर का दशा और गोचर ह। यावहा रक प से जातक

    को सलाह देते समय यह अनुभव हुआ है क वंशो तर दशा म अंतर दशा का वामी महादशा के वामी

    पर बहु त भाव डालता है। ह के योग को कु डल म व भ न तर पर देखना चा हए। रोग के संयोग

    भी हर तर पर ामा णत होते हु ए दखाई देते ह। िजनको ष ठ, ल न, अ टम और वादशेश पर लगा

    कर हम रोग के उ पि त का समय नकाल सकते ह। य द ल नेश बुध हो और पंचम आ द भाव म

    ि थत हो तथा पाप ट हो तो अपनी अ तदशा के आर भ म ह रोग देता है।3

    उदाहरण कु डल -2

    ह के इस योग को उदाहरण कु डल म द शत कया गया है। चं का पु होने के कारण बुध भी तुरंत फल दान करता है। जब एक नैस गक पापी ह क दशा हो और दूसरे पापी ह का अंतर आ जाए और दोनो कसी तीसरे ह पर ि ट या भाव डाल रहे ह तो घटनाएं तृतीय ह स बि धत घ टत ह गी। वह तृतीय ह य द ल ना धप त या अ टमा धप त हो तो फर शर र म रोग क उ पि त होगी। उदाहरण क कु डल म य द श न क महादशा हो और मंगल क अंतर दशा या मंगल क महादशा म श न क अ तर दशा हो को बुध ल ननेश के पी ड़त होने के कारण वा य क हा न होगी। वर-

    1 म ं5 3

    7

    ब.ुश.ु 9 11

    4

    12 6

    8 10

    2

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    अ थमा-बेहोशी इ या द रोग ह गे। रोग होने का समय समीकृत वष म भी नधा रत कए जाते ह। होराशतककार म सभी ह के समीकृत वष दए गए ह - बुध- 16 वष, शु -20, गु - 24 वष, श न- 28 वष, मंगल - 18 वष, चं - 22 वष, सूय - 26 वष। यह समीकृत वष न केवल भा य के वष नधा रत करने म उपयोगी ह बि क उस ह से द त रोग कस आयु म होगा यह भी नधा रत करते ह। रोग का स ब ध आ धकतर ल न, चतुथ, ष ठ तथा अ टम भाव से रहता है। अतः इन भाव के वामीय पर शुभ अथवा अशुभ ि ट के फल व प उपरो त समीकृत वष म योग अथवा ऋण करके

    मु य रोग के वष नकाले जा सकते ह। उदाहरण कु डल -34

    ल नेश - चं समीकृत वष - 22

    ल न म ह - सु.मं.(पापी) बु.(शुभ) अतः -यह पापी ह ल नेश के 22 वष से पूव रोग देने क को शश

    करेगा।

    सू.मं.बु. त ह 2 वष पहले ह रोग देने का यास करे। ले कन पापी

    ह 1 शेष है इस लए - (1X2 =2 वष) अतः -2 वष हु ए।

    ल न शुभ म य म है इस लए +2 वष हु ए।

    ल नेश चं - थान बल है, रा श नीच एवं नबल है पर तु प म बल है अतः +4 वष हु ए।

    चं पर गु के केि य भाव है अतः +4 वष हु ए।

    गु - मं तथा श न के बीच म ह। अतः - 2 वष हु ए।

    कुल वष = 22-2+2+4+4-2 = 28 वष

    इस यि त को शु क महा दशा म और श न क अंतर दशा म 27 वष क आयु म 7.5 माह के लए

    टायफाइड हु आ।

    इसी कार से अ य भाव का पर ण करके रोग के होने का वष नकाल सकते ह। रोग होने के समय

    म यावहा रक प से 1-2 वष का अंतर हो सकता है।

    गोचर से भी रोग उ पि त के समय का ान होता है। जब ल नेश कसी भी तरह से ष ठेश के भाव म

    हो। गोचर के च और सूय, ल न और ल नेश के स ब ध बना रहे ह तो उसी दन और माह म रोग

    होने क स भावना बहु त यादा रहती है। रोग का समय दशा और गोचर दोन के सि म लत अ ययन से

    ा त हो सकता है। रोग के समय च का जो न होगा वह रोग क अव ध तय करेगा। जैसे अ ा

    2 6 4 स.ुब.ुमं

    8 चं 10 12 श

    5

    1 7

    9 के. 11

    3 रा.शु.

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    न म होनेवाले रोग ल बे समय के इलाज के बाद ठ क होते ह। दु ःसा य रोग देने म यह न स म

    है।

    रोग क कृ त

    रोग क कृ त को ठ क से समझने के लए। यो तषशा के व या थय को शर र व ान का गहन

    अ ययन करना चा हए। िजससे यह पता चले क अंग क संरचना कैसी होती है और वह कस तरह से

    काम करते ह। उसके आधार पर अंग से स बि धत ह और न को तय करना होगा। फर गोचर,

    मूल कु डल , दशा आ द के आधार उनके शुभाशुभ होने का नणय करना होगा। फर अंग म होनेवाले

    रोग क कृ त को समझना होगा। इन ा त प रणाम को सं हत करके रोग के कारक ह और

    न क वृ ि त से सा यता और ती ता का आकलन करके रोग के नदान हेतु यास करना होगा।

    व तुतः रोग क कृ त को जानने का उ े य रोग के नदान के लए बहुत ज र है। जो हमारे शोध का

    वषय नह ं है। फर भी इसका सै ां तक ान रोग के समी ा मक अनुशीलन के लए ज र ह। इस लए

    इस वषय पर सं त चचा ज र है। रोग क कृ त के ान म सबसे पहले यह पता करते ह क रोग

    कफ-वात- प त इनम से कन- कन त व के कारण हुआ है। इन त व का रोगी के शर र के साथ

    यवहार या है ?

    रोग का कोप एवं ती ता रोग के हो जाने के बाद क ि थ त तथा होने क स भा वत ि थ त क पहचान और उनके प रणाम

    का आकलन च क सा यो तष का मह वपूण अंग है। रोग के कोप के बारे म यो तषी जब

    कसी जातक क कु डल का अ ययन करता है तो उसे पता चल जाता है क कब-कब कस- कस रोग

    का कोप होने वाला है। रोग के कोप के बाद उसक ती ता मु य प से गोचर से पता चलती है। इस

    आकलन को ता का लक आकलन कह सकते ह। कु डल के सम अ ययन म जातक के कम और

    कमज का आकलन एवं कारक ह क ि थ त को यान म रखते हु ए रोग क ती ता का अनुमान

    लगाया जाता है। रोग के कोप के लए वशेष प से वंशो तर तथा यो गनी दशा, अंतरदशा और

    यतंदशा द का वचार कया जाता है। वैसे तो कसी भी एक दशा प त म न केवल, रोग उसके बारे

    म सभी जानका रयाँ मल जातीं ह। ले कन बेहतर है क हम इसक पुि ट दूसर दशाओं म भी कर ल।

    इस हेतु व ंशो तर के साथ यो गनी दशा को देखा जाता है। जब हम दु ःसा य बीमा रय के बारे म

    अ ययन करना होता है तो वग कु ड लय का अ ययन भी ज र है। खर े कॉण (22 वां े कॉण)

    तथा खर नवांश (64वां नवांश) को रोग के लए वशेष देखना चा हए। इन म ि थत ह उनक दशाएँ-

    अ तदशाएं शर र के लए बड़े घात देने म स म होती ह। इसी तरह से क भाव (6,8,12) तथा राहु-

    केतु को भी दुःसा य रोग के कोप और भयानक ती ता देने म स म माना जाता है। इनक दशाओं

    और अ तदशाओं म रोग का कोप अचानक और अ नयि त ती ता के साथ होता है। रोग के उपचार

    रोग के उपचार च क सा यो तष से सीधा स ब ध नह ं रखते ह। उपचार के लए रोग नदान क

    वीकृत प तयाँ जैसे आयुवद, एलोपैथ, हो योपैथ तथा ाकृ तक च क सा आ द ह। आयुवद म रोग के

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    उपचार हेतु यो तष क सहायता ल जाती रह है। जैसे रोग के यो तष त व का ान करके उपल ध

    दवाओं म से सट क दवा का चयन, उ चत मुहु त पर इलाज आर भ करने एवं दवा खाने से ज द

    व थ हो सकते ह। श य या करनी है तो उसम भी यो तष के सहयोग से सह मुहू त ा त करके

    सफल श य या एवं ज द वा य लाभ ा त कया जा सकता है।

    आजकल कुछ एलोपै थक डॉ टर भी यो तष म च रखते ह, वे वशेष प से श य या के मुहु त

    नकलवाते ह। इनके वारा क गयी श य याओं म सफलता के तशत दूसर से यादा ह। यह भी

    शोध का एक वषय हो सकता है। कुछ एलोपै थक के बहु त ह ति ठत डॉ टर यो तष शा का

    यवि थत अ ययन करके इसका उपयोग च क सा म सफलता से कर रहे ह। जैसे एलोपै थक प त के

    च क सक डॉ. के.एस चरक एफ.आर.सी.एस ने न केवल यो तष का अ ययन कया बि क वे च क सा

    यो तष पर कई कताब भी लख चुके ह। उनक मा यता है क - Astrology can help (the

    medical man) in two way . Firstly when adverse planetary influences indicate the

    occurance of ailment at any future date, the medical science has understandably has

    no clue about it.

    Secondly, it can sometimes incidcate whether or not surgical intervention is going to

    help and if so when. In addition it is possible that a sound astrologer may be able to

    point to a diseased organ or region when the medical man is finding it difficulty to

    locate the site of illness.5

    यहाँ पर डॉ. चरक के कथन को सं त म समझ तो वे कहते ह क यो तष शा के सहयोग से

    च क सा करने पर रो गय को दो तरह से लाभ ा त हो सकता है। थम यो त ष च क सा

    जगत ् के लोग को बता सकता है क कब रोग होने वाला है, जो च क सा जगत ् के लोग को नह ं पता

    चलता। दूसरा यो तष के मा यम यह बताया जा सकता है श य च क सा से कोई लाभ होगा क नह ं।

    इसके अलावा कई बार च क सक को यह पता ह नह ं चलता क रोग या है और कस अंग म है। यह

    भी यो तष के मा यम से पता चल सकता। डॉ. चरक ने यह अनुभूत स य उजागर कया है।

    रोग के कार रोग कम से कम दो कार के तो हो ह सकते ह - एक ज मजात रोग तथा दूसरे ज म के बाद के रोग।

    ज मजात रोग भी कई कार के हो सकते ह और ज म के बाद के रोग भी कई कार के होते ह।

    िजनको सं मण और गैरसं मण, आकि मक एवं पूव जानकार वाल,े दुघटना ज नत रोग, सा य और

    असा य रोग। समय के अनुसार रोग क सा यता और दु ःसा यता बदलती रहती है। समाज जैस-ेजैसे

    वकास करता है, उसम शा का वकास भी न हत होता है। शा अपने वकास म म आने वाल

    चुनौ तय पर वजय ा त करते हु ए आगे बढ़ते ह। रोग के स दभ म तो यह और भी ासं गक है। जो

    रोग पहले दुःसा य थे, धीरे-धीरे सा य होते गए। जैसे तपे दक पहले दु ःसा य था, अब सा य है। यह ं पर

    एक और बात नकल कर आती है क पुराने रोग तो सा य होते जा रहे ह, ले कन उनक जगह नए-नए

    दु ःसा य रोग आते जा रहे ह।

  • E ISSN 2320 – 0871

    भारतीय भाषाओं क अंतरा य मा सक शोध प का 17 फरवर 2019

    पीअर र यूड रे ड रसच जनल

    This paper is published online at www.shabdbraham.com in Vol 7, Issue 4 18

    इस शोधप म हमारे वतमान समय म जो रोग असा य ह उनपर ह चचा क गयी है। पूरा यास कया

    गया है क यह शोध दु ःसा य रोग के समी ा मक अनुशीलन म सबसे नवीन सूचनाओं, शोध एवं

    उपलि धय को दज करे। इन दन अख़बार म एक खबर आयी थी क कक रोग का उपचार अब अं ेजी

    दवा से संभव है। हो सकता है क योगशालाओं से नकल यह खबर कुछ दन म आम जीवन म

    स य हो जाए और कक रोग दु ःसा य न रह जाए। यह एक सतत या है। िजससे मनु य जीवन का

    संघष बना रहता है। इस ि थ त से नपटने म यो तष शा क भू मका मह वपूण हो सकती है।

    यो तष शा के सु स थ नमाग 6 म रोग को मु य प से सहज रोग (inherent or

    congenital diseases) तथा आगंतुक रोग (incidental diseases) दो भाग म बांटा गया है।

    सहज रोग को पुनः दो भाग म वभािजत कया गया है –

    1 शार रक रोग - अपंगता, अंधापन, कूबड़ या शर र म वकृ त पैदा करनेवाले रोग।

    2 मान सक रोग - पागलपन, हताशा- नराशा, आपरा धक और आ महंता मक ग त व धय के रोगी,

    आदतन नशेड़ी और चोर।

    आग तुक रोग को भी दो वभाग म बाँट सकते ह –

    1 य रोग - जाद-ूटोना, भूत लगना या इस तरह के रोग। इनम भी शार रक एवं मान सक रोग होते

    ह।

    2 अ य रोग - इसम ऐसे रोग आते ह जो पूव ज म के कम के फल ह जैसे कालसप योग, मंगल

    दोष, वषक या योग और वभ न कार के ऋण। ये रोग भी शार रक एवं मान सक होते ह।

    सहज रोग के कारण पछले ज म के पाप या तो जातक के या उसके पूवज के होते ह। इसी तरह से

    आयुवद म भी रोगो पि त के दो कारण माने गए ह - 1. कम कोप तथा 2. दोष कोप 7 आचाय

    चरक ने दोष के कोप एवं उनके प रणाम व प ज म लेनेवाले रोग के 3 कारण माने ह- 1. ापराध,

    2. असा येि याथ संयोग तथा 3. काल सं ाि त।

    बु से उ चत प म ान का न होना तथा मन का वषम या अनु चत कम म वृ त होना ापराध

    कहलाता है। बु , धृ त एवं मृ त के ट हो जाने पर मनु य जो भी अनु चत काय करता है, उ ह

    ापराध कहते ह। इि य के इि याथ के साथ अ तयोग, अयोग या म यायोग को असा येि याथ

    संयोग कहते ह। 8 कान, वचा, ने , िज वा एवं ना सका इन पाँच इं य के श द, पश, प, रस एवं

    ग ध ये पाँच अथ होते ह। उ त पाँचो इं य म से कसी भी इं य का अपने वषय के साथ अ तयोग,

    अयोग या म यायोग, उस इि य के अंग म वकार उ प न कर देता है। जैसे अ य धक तेज रोशनी म

    रहने के बाद अ य त कम रोशनी म जाएँ तो हम कुछ भी नह ं दखाई देता है। यह देखने क शि त को

    ीण कर देता है। इसी तरह से कठोर, भीषण तथा अ य श द के सुनने से शर र म या ध उ प न हो

    जाती है। काल को अपने गुण के साथ अ तयोग, अयोग या म यायोग को काल स त कहते ह। सद ,

    गम बरसात जैस ेगुण वाले मौसम या ऋतुओं को काल कहते ह। 9 य य प ऋतुएं छः होतीं ह। उनम हर

    दो ऋतुओं म एक जैसे गुण होते ह, इस लए तीन ह मौसम को माना गया है। अब बरसात म इतनी

    बरसात हो जाए क सब तरफ जल लय हो जाए या बरसात ह न हो या फर ऐसे समय म हो जब

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    उसक ज रत ह न हो तो इसे वषा ऋतु का अ तयोग, अयोग या म यायोग कहगे। इस अस तुलन के

    कारण व भ न रोग होते ह। उनको काल स त से उपजे रोग कहगे।

    रोग के भेद का वणन कई अ य आधार पर कया जा सकता है। यहाँ पर सा यता के आधार पर कए

    गए वभाजन से सा य और दु ःसा य रोग को समझने का यास करगे और आगे के अ याय म उनको

    पर त करगे।

    सा य रोग सामा य अथ म देख तो िजन रोग को साधा जा सकता है, िजनका इलाज कया जा सकता है, उनको

    सा य रोग कहते ह। सा य रोग सामा यतः कम अव ध के लए होते ह। इनके कारक ह बुध, चं ,

    मंगल, सूय आ द होते ह। इन रोग से मृ यु क स भावना बहु त ह कम होती है। इन रोग के इलाज के

    तर के आधु नक और ाचीन च क सा प तय ने खोज लया है। यादातर मौसमी रोग, आकि मक

    रोग, इसी ेणी के होते ह। उदाहरण के लए - सर दद, समा य बुखार, शर र दद, जलन, सूजन,

    बलगम, द त, सद -जुकाम, जल ज नत मौसमी बमा रयाँ, अपच, उलट , चोट, सामा य दुघटना,

    चेचक, ह डी टूटना, खुजल , टायफाइड, वचा रोग, पी लया, र ता पता, वात और कफ क

    सामा य बीमार , पथर , ो टेट तथा क ज आ द सा य रोग क ेणी म आते ह। सा य रोग के

    आर भ म जातकालंकार, भाव काश, जातकत व क णत व, दैव ाभरण, बृह पाराशरहोराशा म ् तथा

    जातकपा रजात के अनुसार बननेवाले योग म से कुछ योग यहाँ पर दए जा रहे ह :

    1 रोगार भ के समय ल नशे या चं शुभ ह के भाव म ह ।

    2 रोगार भ के समय ल नेश या चं के या कोण या उ च के या म या वयं क रा श म ि थत

    ह ।

    3 रोगार भ के समय के या कोण म शुभ ह ह ।

    4 रोगार भ के समय ल नेश या चं बलवान ् हो।

    5 रोगार भ के समय ल नेश चर रा श म तथा शुभ ह से ट हो।

    रोग ठ क होने का योग होने पर तथा मृ यु योग न होने पर रोगार भ के समय के न के वारा रोग

    क समाि त का आकलन कया जा सकता है -

    न ानुसार रोग क अव ध10 रोगार भ समाि त काल रोगार भ समाि त काल

    1 अि वनी 1,9 या 25 दन तक 15 वशाखा 8,10,20 या 30 दन तक

    2 भरणी 11,21 या 30 दन,

    कभी-कभी मृ युदायक

    16 अनुराधा 6,10 या 28 दन तक

    3 कृि तका 9,10 या 21 दन तक 17 च ा 8,11 या 15 दन तक

    4 रो हणी 3,7,9 या 10 दन तक 18 ये ठा 15,21 या 30 दन तक

    5 मृग शरा 3,5 या 9 दन तक 19 मूल 9,15 या 20 दन तक

    6 आ ा 10 या 1 मास तक

    कभी-कभी मृ युदायक

    20 पूवाषाढ़ा 15-20 दन तक या 2, 3 या 6 मास

    तक, रोग क पुनराव ृ ि त संभव है।

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    7 पुनवस ु 7 या 9 दन तक 21 उ तराषाढ़ा 20 या 45 दन

    8 पु य 7 दन तक 22 वण 3,6,10 या 25 दन

    9 अ लेषा 9,20 या 30 दन 23 ध न ठा 13 दन/स ताह/प

    10 मघा 20,30 या 45 दन 24 शत भषा 3,10,21या40 दन

    11 प.ूफा. 8,15 या 30 दन 25 प.ूभा. 2/10 दन,2/3 माह

    12 उ.फा. 7,15 या 27 दन 26 उ.भा. 7,10 या 45 दन

    13 ह त 7,8,9 या 15 दन तक 27 रेवती 10,28 या 48 दन

    14 वाती 1,2,5 या 10 मास तक

    इस तरह से सा य रोग का आकलन कया जा सकता है और ह एवं न के अनुसार उनके ठ क

    होने का समय पता चल सकता है।

    दुःसा य रोग वे रोग िजनका आधु नक एवं ाचीन च क सा प तय म उपचार उपल ध नह ं है। इस तरह क

    बीमा रय म मृ यु होती है दु ःसा य रोग दो कार के होते ह - 1. मृ युदायक

    2.आजीवन चलनेवाले।

    यो तषशा म अ टम ् एवं तृतीय भाव आयु के कारक भाव ह। 11 अतः इन भाव म ि थत या इनको

    देखनेवाले ह के अनुसार आयु समा त करने वाले या मृ युदायक रोग का नणय कया जाता है। हम

    जानते ह क फ लत यो तष म कु डल के ष ठ भाव को रोग भाव कहते ह। अतः इस भाव म ि थत

    ह, इस भाव को देखनेवाले तथा इस भाव के वामी ह से आजीवन चलनेवाले रोग का नणय होता

    है। 12 इसके अलावा भी कु ड लय म मृ यु दायक रोग के बहु त सारे योग बनते ह। इस तरह के रोग के

    उदय के बाद इनके वकास क ग त को थोड़ा बहु त कम कया जा सकता है। अ यथा इन रोग पर कोई

    नय ण नह ं होता है। यह रोग सामा यतः ल बी अव ध के होते ह। इनके कारक ह सामा य प से

    श न,राहु,केत,ुगु ,शु होते ह। इनको द घाव ध रोग के जनक क तरह देखा जाता है। ये रोग मृ यु देते

    ह। इनके उपचार क कोई सफल प त नह ं होती है। इन रोग क सूची म नरंतर बदलाव होती रहती

    है। जैसे-जैसे च क सा प त इनका इलाज खोजते जाता है, ये रोग से सा य बनते जाते ह। वतमान

    समय के कुछ दु ःसा य रोग क सूची बनाएं तो उनक सूची न न हो सकती है - म त म, अ तनशा,

    मधुमेह, शु ाणु कम होना, संभोग स बि धत बीमार , अ थमा, समल गकता, नपुंसकता, आघात,

    अपंगता, लंगड़ापन, मूढ़म त, पागलपन, लकवा, कक रोग, दय रोग, मग , कु ठ रोग तथा ए स आ द।

    इन रोग के उदय काल का वचार न न ब दुओं म कर सकते ह -

    1 ज म कु डल म अ टमेश, गु लक, श न, 22वाँ े कॉण या उसके वामी िजस रा श म ह उस रा श

    म श न गोचर कर रहा हो।

    2 ज म ल न के े कॉण का वामी, अ टमेश या 22व े कॉण का वामी, िजस रा श म ह उस रा श

    म गु गोचर कर रहा हो।

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    3 कु डल या सूय के वादशांश क रा श, अ टमेश के नवांश क रा श या ल नेश के नवांश क रा श म

    रोगार भ के समय सूय एवं गु ह ।

    4 रोगार भ काल के च मा का गोचर अ टमेश या सूय क रा श म हो।

    5 रोगार भ के समय रोगी के च मा क रा श से अ टम, कोण तथा न ेश क रा श म गु लक हो।

    6 रोगार भ के समय रोगी का न ेश अ टम थान म हो।

    ऊपर दए गए योग - दैव ाभरण .16 लो.57-58, 60 एवं 67, फलद पका - अ.17 लो.2-5 एवं 19,

    नमाग अ. 9 लोक 25, 13 आ द से लए गए ह। इस तरह से और भी थ से दु ःसा य रोग के

    योग सं ह कए जा सकते ह। इस के अलावा दोष भी होते ह िजनके होने से रोगी ज द ठ क नह ं होता

    है। उनम से कुछ को नीचे सूचीब कया जा रहा है :

    1 रोगार भकाल न चं मा एवं ल न नबल होना।

    2 रोगार भकाल न चं मा एवं ल न पर पाप ह क ि ट-यु त।

    3 रोगार भ के समय म ल नेश एवं राशीश अ त, पापा ा त, नबल, अ त, क थान पर, मृ युसं क

    अंश म ह ।

    4 के या कोण या अ टम म कोई पाप ह हो।

    व भ न कार बाला र ट एवं अ र टभंग योग

    कु ड लय म िजस कार से राजयोग और शुभ योग होते ह। उसी कार से अ र ट करनेवाले ह से

    अ र ट योग बनते ह। इन योग को के म रख कर यो तष के व भ न ाचीन थ म अ पायु

    योग, बाला र ट, अ र ट और अ र टभंग योग क चचा क गयी है। हमने यह भी देखा है क सबसे

    यादा अ र ट चं के मा यम से होता है। इस स दभ म एक लोक ासं गक है -

    योगे थानं ग तव त ब लन च े वं वा तनुगृ हमथवा।

    पाप टे बलव त मरणं वष या तः कल मु न दतम ् ।।13।।13 ( मर वल सत)

    अथात ् िजन योग म मृ यु का समय नह ं बताया गया है, उन योग म मृ यु के नणय का कार बताया

    जा रहा है। अ र ट योग कारक ह म जो सवा धक बलवान ् ह उसक अ धि ठत रा श म जब च मा

    आए तब मरण होगा। अथवा ज म ल न रा श म च मा आने पर अथवा ज मकाल न च मा क रा श

    म पुनः च मा के गोचर पर मृ यु होती है। इसको एक वष के अ दर देखना चा हए। पूरे वष म च मा

    के 13 भगण होते ह। इस कारण बलवान ् अ न टकारक ह क , ज म ल न क , ज म च क इन

    तीन रा शय म आने पर 13X3=39 कालाव धय पर वचार कया जाना चा हए।

    न कष इस शोधप से हम यो तषशा म रोग वचार का ान मलता है। हम रोग नणय के मुख त व

    जैसे रोग के उ पि त का समय, उनका कोप एवं ती ता तथा उपचार का प रचय मलता है। रोग के

    कार म मुख प से सा य और असा य रोग के वभाव को समझने म इस अ याय से सहायता

    मलती है। बाला र ट एवं अ र टभंग योग का अ ययन करते हु ए रोग वचार के लए यापक आयाम

    न मत हु ए। सबसे पहला न कष यह मला क रोग कमज ह। हमारे बु रे कम के प रणाम व प रोग

    होते ह। शर र म अ न ट अवां छत सं मण, अ य धक प र म एवं कृ त के व आचरण के कारण

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    रोग उ प न होते ह। इन रोग क ती ता का आकलन कु डल के भाव-रा श- ह-दशा-न के मा यम

    से कया जा सकता है। वग कु ड लय के अ ययन से ा त रोग ववरण को मा णत कया जा सकता

    है। रोग उदय का समय मुख प से गोचर एवं दशाओं से पता चलता है। रोग कोप क ती ता ह एवं

    रा शय के बला-बल से पता चलता है। ल न हम जातक के जीवन ऊजा से प र चत करवाता है। यह

    ऊजा ह हम रोग के उपचार और प रण त क दशा बताती है। इस शोधप म दए गए यो तषीय

    घटक का गहन ववेचन करके रोग के पृ ठभू म का नधारण कया जा सकता है। जो हम दुःसा य रोग

    के समी ा मक अनुशीलन म सहयोग करते ह। स दभ थ 1 लेखक एच. एल कोरनेल- द इनसा लोपी डया आफ च क सा यो तष ––प.ृस.ं 502 2. ट काकार-पं. प नाभ शमा-वृह पाराशरहोराशा म-् प.ृस.ं75 3. ल.े जग नाथ भसीन - यो तष और रोग –प.ृस.ं118 4. ल.े जग नाथ भसीन - यो तष और रोग –प.ृस.ं119 5. ल.े ो. एन.ई मु तु वामी-मे डकल ए ोलॉजी कंसे टस ए ड केश टडीज –प.ृस.ंXii 6. ल.े ो. एन.ई मु तु वामी- मे डकल ए ोलॉजी क बीनेशन ए ड रेमे डयल मेजस –प.ृस.ं1 7. चरक सं हता – उ तरतं अ. 40। 8. चरक सं हता- सू थानम ् 1।54 तथा 11।37 9. चरक सं हता- सू थानम ् 1।54 तथा 11।37 10. ले. डॉ. शुकदेव चतुवद- यो तष शा म रोग वचार –प.ृस.ं – 14 11. नमाग – अ.1 शलोक – 4 12. ले. डॉ. शुकदेव चतुवद- यो तष शा म रोग वचार –प.ृस.ं – 194 13. या याकार - डॉ. सुरेशच म - बृह जातकम ्–प.ृ स.ं 164