भारत का जेअब्दलु कलाम - kavi harsh kumar...

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भारत का डॉ. .पी.जे . अद कलाम हषक मार हष

Transcript of भारत का जेअब्दलु कलाम - kavi harsh kumar...

  • भारत का

    डॉ. ए.पी.जे. अब्दलु कलाम

    हर्षकुमार ‘हर्ष’

  • भमूमका

    मिर बालों पर मात अगंुमलयााँ

    ममता की अनपढ़ भार्ा है

    िान्ननध्यों की मौन ऊजाष

    आिीिों की पररभार्ा है ॥

    ‘जब-जब धमष की हानन होती है तो कोई महापुरुर् अवतररत होता है’। यह उन्तत हमारे देश-धमष की एक मयाषददत अवधारणा है, आस्था की चमचमाती धरोहर है। भारत की यह महान िंस्कृनत हमें अपने पूवषजों िे

  • ित्यननिष्ठ िम्पदा के रूप में ममली है। और यह ित्य मिद्ध होती रही है। भगवान श्रीराम द्वारा स्थापपत रामेश्वरम ् धाम, डॉ. ए.पी.जे. अब्दलु कलाम को पाकर धनय हो गया। श्री रामचंद्र जी ने दक्षिण भारत के पामबन द्वीप में रामनाद न्जममदारी में िमुंद्र के तट पर पूजा-आचषणा हेतु मशवमलगं स्थापपत ककया था। इि मंददर के कारण हे पाि वाली बस्ती का नाम रामेश्वरम ् हो गया था।

    इिी रामेश्वरम ् में एक िाधारण पररवार में जनम लेकर, डॉ. ए.पी.जे. कलाम ने पवज्ञान के िेत्र में, नए-नए अनवेर्ण करते हुए देश को नई ऊाँ चाइयों पर पहुाँचा ददया। अपनी इिी प्रनतभा के बल पर वे भारत के ग्यारहवें राष्रपनत बन गए थे। देश के िवोच्च िम्मान ‘भारत रत्न’ को प्राप्त करने वाले डॉ. कलाम का पूरा जीवन िंघर्ों, कड़ ेपररश्रमों और िफलताओं की ऐिी गाथा है जो पवद्याथी वगष के मलए पवशरे् रूप िे अनुकरणीय बन गई। एक कुशल वैज्ञाननक और मानय राष्रपनत महोदय होने के

  • अनतररतत आप ित्यवादी, िदाचारी, पवनम्र स्वभावी, धमष ननरपेि, और कमषठ व्यन्तत थे।

    यह पुस्तक देश वामियों, राष्रवाददयों पवशरे्कर युवा वगष के मलए अत्यंत महत्त्वपूणष है। इि में उनके मलए देश में उपलब्ध भरपूर िंिाधनों िे अवगत करवा कर जीवन में अपने उद्देश्यों की आपूनतष हेतु मागषदशषन ददया गया है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दलु कलाम के उपदेशों, आदेशों एवं आदशों का पवस्ततृ वणषन करते हुए युवाओ ं में राष्रप्रेम की भावना का िंचार करने का प्रयत्न ककया गया है। िबि ेबड़ी बात कक देश के युवा-वगषके मलए प्रोत्िाहन देकर जीवन का ध्येय ननधाषररत करने का अविर प्रदान ककया गया है।

    अत: आशा है कक भारत के भावी कणषधार इि पुस्तक को पढ़कर पूवष राष्रपनत के ममशन 2020 के प्रनत िचते एव ंजागरूक होंगे।

  • हर्षकुमार ‘हर्ष’

    781/एि.एि.टी.नगर,पदटयाला.

    पंजाब । 09464470217.

  • आपने अपनी आत्मकथा ‘अन्ग्न की उड़ान’ के अतं में डॉ. ए.पी.जे.अब्दलु कलाम ने पाठकों के मलए इि प्रकार मलखा है --- “मेरी कहानी जैनुलाबदीन के बेटे की कहानी है, जो रामेश्वरम ् की मन्स्जद वाली गली में िौ वर्ों ि ेअधधक तक रहे थे और वहीं पर अपना शरीर छोड़ा था। यह उि ककशोर की कहानी है, न्जिने अपने भाई की मदद के मलए अखबार बेच े थे। यह कहानी ‘मशव िुब्रह्मण्यम अय्यर एवं अयादरुइ िोलोमन के मशष्य की कहानी है। यह उि छात्र की कहानी है न्जिे पनदलुाई जैिे मशिकों ने पढ़ाया था। यह उि इंजीननयर की कहानी है न्जि ेएम.जी.के. मेनन ने उठाया और प्रोफेिर िाराभाई जैिी हस्ती ने तैयार ककया। एक ऐिे नेता की कहानी है न्जि ेबड़ी िंख्या में पवलिण व िमपपषत वैज्ञाननकों का िमथषन ममलता रहा। मेरी यह छोटी िी कहानी मेरे जीवन के िाथ ही खत्म हो जाएगी| मेरे पाि न धन है, न िम्पपि। न मैंने कुछ इकट्ठा ककया, न कुछ ऐिा बनाया

  • जो शानदार हो, आलीशान हो, या ऐनतहामिक महिव का हो।“

    ककतनी िादगी ककतनी मानवता झलकती है डॉ. कलाम महोदय की आत्मीय कहानी में। ऐिी पवभूनत का जनम तममलनाडु के िागर तट पर बिे एक छोट किब ेरामेश्वरम ् की मन्स्जद वाली गली में 15 अततूबर िन ् 1931 में हुआ था। आप अपने अधेड़ माता-पपता की िंतान थे। पररवार में माता-पपता के अनतररतत तीन भाई और एक मात्र बहन थी ‘जोहरा’। ननिंदेह आप पााँचों भाई-बहनों में मंझले थे अथाषत ् भाई मुस्तफा कलाम और बहन जोहरा के बाद आप उत्पनन हुए थे। दो भाई आप िे छोटे थे।

    आप अपने बाल्यकाल िे ही पढ़ने-मलखने की लालिा िे भरे रहते थे। ददनचयाष के नाम पर भोर होते ही उठ जाते। प्रात: चार बज ेकी नमाज पढ़ते तो पपता जी की अगंुली थामे भ्रमण को ननकल पड़ते थे। लौटते हुए

  • मन्स्जद जाने के पश्चात ् आप मंददर जाना भी कभी नहीं भूलत ेथे। रामेश्वरम ् गााँव एक तीथष होने के नाते लोग वहााँ आते-जाते रहते, तो बाल अब्दलु अपने पपता िे लोगों के वहााँ आने का कारण जानता। िायं काल भी जब मंददर-मन्स्जद जाते तो दरू िूयाषस्त होते देख कर बाल मन पूछ लेता कक बाबा यह लाल रंग का गोला कैिा है? िूयष का डूबना तया होता है, कफर कब आएगा? बच्च ेकी उत्िुतता जानकर पपता जी उिे उिर देते हुए बताते कक बेटा जैिे पिी ददन भर काम करते थक जाने के पश्चात ् अपने घोंिले में जाकर पवश्राम करते हैं, ठीक इिी प्रकार िूयष भी िुस्तान े के मलए चला जाता है और कफर प्रात होते ही तरोताजा होकर िंिार को प्रकाश उपलब्ध करवाने के मलए आ जाता है। पपता जी बताते कक िूयष पूवष ददशा िे उदय होकर पन्श्चम ददशा में अस्त हो जाता है। हमारे रामेश्वरम ् की पन्श्चम ददशा में िमुद्र है, इि मलए लगता है कक िूयष िमुद्र में डूब रहा है। वास्तव में िूयष कहीं डूबता

  • नही ंहै बन्ल्क यह पथृ्वी की ओट में हो जाता है। शाम को पुन: व ेअब्दलु को रामेश्वरम ् मंददर में भगवान मशव के दशषन कराने ले जाते थे। अब्दलु पपता के कााँधों चढ़कर घंटा घननाता और भोग लेकर घर लौट आता था। यह क्रम रोज मराष का हो गया।

    रात्रत्र में जब खलेु आिमान के नीच ेिोते तो पपता ि ेचााँद-मितारों के पवर्य में पूछते। पपता जैनुलाबदीन उिे हर प्रकार िे िंतुष्ट करने का प्रयाि करते रहते। पपता के मखु िे अपने प्रश्नों के उिर िुनकर उनहें अपने कोमल मन में तहा कर रख लेते। यहीं िे बच्च ेमें िंस्कारों का उदय होने लगता। बालक कलाम प्रनतददन अपने पपता िे जीवन और प्रकृनत के बारे में अनेक प्रश्न पूछता। इतना ही नही,ं उि ेपपता िे देश के महापुरुर्ों के आदशों को जानने की प्रेरणा ममलती। वे महात्मा बुद्ध, महावीर, गांधी जी की ित्य-अदहिंा, पवनोबा भावे की िवोदय भावना, ईिा और मुहम्मद हजरत िादहब के महान आदशों ि े भी

  • वाककफ़ होने लगे। ऐिी बाल कथाओं के माध्यम िे कलाम के मन में ित्य, अदहिंा, करुणा, दया, िहानुभूनत, िहयोग, िहचार इत्यादद का आपवभाषव उत्पनन होन ेलगा।

    स्कूल जाने पर अध्यापकों की बातों को वे िहज ही ग्रहण करने लगे थे, कारण कक पपता जी ने उनके बालमन में अनेक प्रकार की न्जज्ञािाएाँ जगा रखी थीं। नन:िंदेह पपता पढ़े-मलखे नहीं थे तथापप िााँिाररक ज्ञान का भण्डारण खबू कर रखा था। जगत के रहस्यों को पूणषत्या प्रकट करने की िमता रखते थे।

    रामेश्वरम ् लघु गााँव था, अत: वहााँ बच्च े की प्राथममक मशिा ही हो पाई थी। आगे की पढ़ाई के मलए रामनाथपुरम ् जाना होता था। बालमन आगे का ज्ञान अन्जषत करना चाहता था, पपता के पाि चपुचाप खड़ा हो गया। पूछने पर पढ़ने की इच्छा जतला दी। पपता ने न

  • चाहते हुए भी उिे पढ़ाने की िहमनत प्रकट करते हुए जोर ि े गले लगा मलया। बोले --अब्दलु मैं तुझ े बहुत प्यार करता हूाँ। तेरी हर इच्छा-अमभलार्ा पूणष करूाँ गा, बेशक उिे ऐिा कहते हुए अपनी पववशता छुपानी पड़ी थी। माता को बेटे के नततली िपनों की भनक लग चकुी थी। आधी रात गए उठ बैठी। पनत के िम्मुख घर की हालत का पदाषफाश ककया। व ेयह िब पहले िे ही जानते थे। उनिे तया छुपा था। कफर भी पत्नी को ढाढ़ि बाँधवाते हुए पैगंबर इब्राहीम ख़लील न्जब्रान की उन्तत िुझाने लगे कक तुम्हारे बच्चे तुम्हारे नहीं हैं। वे तो खदुा के मलए जीवन की लालिाओं का स्वरूप हैं। वे तुम्हारे जररए आते हैं लेककन वे तुम्हारा िब कुछ नहीं हैं। तुम उनहें अपना प्यार दो, अपने पवचार नहीं। कलाम की अम्मा को लगा जैि े ककिी फररशते िे रूबरू हो रही हो। वह न जानती थी कक उिके खापवदं के पाि इतना पवशाल हृदय हो िकता है।

  • कलाम ने जाना तो उिका भी गला रुाँध आया। उिे अनुमान हुआ कक वह एक ऐिे पपता की िंतान है, न्जिकी पवचारधारा ककिी महापुरुर् अथवा ऋपर् िे कम नही ं है। तभी एक बालक मन ने ननश्चय ककया कक वह ददलोजान िे पररश्रम करके पढ़ेगा और िमय आने पर अपने माता-पपता का नाम रोशन करेगा। बालक रामनाथपुरम ् जाने के मलए तैयार हो स्टेशन पर आ पहुाँचा था। गाड़ी चलने को थी, तभी बाबा ने कलाम के कानों में अपनी पररवाररक पववशता फूाँ क दी कक बेटा! तुम जहााँ जा रहे हो, वहााँ तुम्हें ममलने के मलए आना हमारे मलए कदठन रहेगा। अत: तुझ ेवहााँ पर अकेले ही रहकर पढ़ाई करनी है। मन लगाकर रहना। ईश्वर तुम्हें खशुी देगा। गाड़ी को चलना ही था िो चल पड़ी, दरू बहुत दरू, कही ंिपनों के देश जैिे। अब्दलु लम्बे-लम्बे िााँि लेता, धचतंा में मगन हो गया। वह अपने भपवष्य के प्रनत िजग भावना मलए गाड़ी की गनत के िाथ-िाथ मीठा-मीठा ददष िहलाता जाता।

  • बाबा के कहे हुए बोल पल-पल उिके बालक मन को टीित ेरहे।

    गाड़ी के चलते ही वातावरण में चपु्पी छा गई। घर लौटा पररवार दीमक खाई लकड़ी की तरह शांत-अिहाय अनुभव करने लगा। इधर भी रात नघर आई, उधर भी, न इधर ककिी को नींद न उधर बालक को चनै। यहााँ वेदना और कुण्ठा का पहरा तो उधर िंघर्ों की कहानी नछड़ चकुी थी। िमय ने धीरे-धीरे गनत पकड़ ली। घर बाहर िब िामानय होने लगा। घर पररवार के िदस्य पलकों वाले भोज पत्र पर िंदेश ेमलखते-ममटाते रहे। इडली, बड़,े डोिा, िााँबर, उपमा बनते तो अब्दलु का स्मरण हो आता। आज तक इि घर के पुरखों में िे कभी कोई घर िे बाहर नहीं गया था। दिूरी ओर अब्दलु को भी एकल झलेना पड़ता। कभी-कभी उिका बालक मन अन्स्थर हो आता तो झट िे घर-आाँगन की पववशता िे आाँखें पोंछ, फुरती िे पढ़ने बैठ जाता। कई ददनों तक मााँ के हाथों का खाना, उिका स्नेह-

  • िौहादष बाबा की िीख-निीहत, भाई-बहनों का स्मरण, मंददर-मन्स्जद, डूबते िूयष का दृश्य अब्दलु के मन्स्तष्क में डरेा डाले रहे थे।

    ‘श्वाट््र्ष’ हाई स्कूल में पढ़ाई आरम्भ हो चुकी थी। िहयोगी बच्चों के अलग-अलग िंस्कार थे। ककिी की भार्ा ललचाई िी, ककिी में किबाईपन, ककिी का कनकटना िम्बोधन पाकर अब्दलु ककंधचत गंभीर रहने लगा था। जैिे ही इिका पढ़ना-मलखना अध्यापकों को भा गया तो उनहोंने दबी हुई धचगंारी िुलगा ली। िभी अध्यापक इि के मलए खदु खराद बन आए, ताकक बच्चे को िही रूप िे तराशा जा िके। उनहोंने बच्च े में गुण तलाश कर उत्िादहत ककया।

    स्कूल में लम्बा अवकाश आते अब्दलु घर-पररवार में लौट आया। अम्मााँ ने बड़ ेचाव िे ‘पोली’ नामक ममठाई बनाकर अपने हाथों िे खखलाई, तो मााँ-बेटे दोनों का मन

  • िंतुष्ट हो गया। िौ-िौ लाड-प्यार के चलते अवकाश कब गुजर गया ककिी को पता न चला। बालक पनु: रामनाथपुरम ् आ बैठा। कलाम िादहब न े ‘अन्ग्न की उड़ान’ नामक आत्मकथा में यह िंदभष ददया है कक जब जब घर की याद िताती तो बाबा को ददया वचन याद आ जाता।

    इि प्रकार वह अपने किषव्यों की लालटेन जलाकर बैठ जाया करता। वह पवद्या-पवज्ञान के ढााँचे में स्वणष-मुद्रा बन ढलना िीख गया था, तयोंकक उि की पषृ्ठ भूमम में अब्बा-अम्मा के उिम िंस्कार दआुएाँ बन कर पीछा करते रहते थे। कलाम का गोल-मटोल, लेककन भोला-भाला चहेरा था न्जि पर उत्िुक और न्जज्ञािु नयनों का पहरा बना रहता था। वह घर लौटता तो मााँ के आाँचल में घुिा रहता। वह न तो ककिी िे कभी झगड़ा-लफड़ा करता, न चुस्त चालाककयााँ। ककशोर हो आए

  • बालक को भी मााँ अपने आाँचल में िुला लेती तो बहना देश-देखकर मुस्का देती। बालक िंवेदनशील बनता गया---

    मिर-बालों में मात अगंुमलयााँ, ममता की अनपढ़ भार्ा है।

    िान्ननध्यों की मौन ऊजाष, आिीिों की पररभार्ा है।

    मुस्कानों खमुशयों के आाँिू, खाली हाथ नहीं होते हैं

    बच्च े का िम्पुट पवकाि ही हर अभाव की अमभलार्ा है॥

    महानगर में आकर कलाम मााँ-ममता के मीठेपन को गले लगाना िीख चकुा था। हाई स्कूल के अतंराल की एक घटना वे कभी नहीं भूल पाए। वे बताते हैं कक उनहोंने अपने जीवन में आए प्रत्येक व्यन्तत िे कुछ न कुछ िीखा है। कभी-कभी कुछ घटनाएाँ ऐिी घदटत हो जाती हैं, जो

  • व्यन्तत को कुछ खाि कर ददखाने के मलए प्रेरणा का स्रोत बन जाती हैं। कहते हैं कक उनके गखणत के अध्यापक श्री रामकृष्ण अय्यर बड़ ेिरल स्वभाव के व्यन्तत थे। उन के पाि िदा एक बेंत की छड़ी रहती थी। जब कभी उनहें गुस्िा आता तो उनका हाथ बेंत बरिाने लगता था, नन:िंदेह ऐिा बहुत कम होता था। इिी िंदभष में डॉ. अब्दलु कलाम ने मलखा है कक एक बार वे स्कूल के अहात ेमें पढ़ा रहे थे कक कलाम उनकी ओर घूर कर ननकल गया। अय्यर िादहब न े देख मलया था। उनहें बहुत बुरा लगा, तुरंत उिे आवार् देकर वापि बुला मलया। उनहोंन ेएकाएक कई बेंत बालक कलाम की पीठ पर जमा ददए कक गखणत में उिके अकं कम आए हैं। वतत के िाथ कलाम पपटाई का ददष भूल तो गया, परंतु अध्यापक अय्यर िादहब के शब्द उिे याद रहे –कक गखणत में तुम्हारे अकं कम तयों आते हैं। इि बेंत-पपटाई का अिर यह हुआ कक अगली गखणत की परीिा में अब्दलु के अंक शत-प्रनतशत

  • रहे थे। बात यहीं पर िमाप्त नही ं हुई थी। यह बात एक िुखद घटना बन गई। अध्यापक महोदय ने कलम का परीिाफल देखा तो हैरान हुए। कलाम को बुला कर मिर पर हाथ कफराते हुए कहने लगे कक बेटा तुम बहुत अच्छे पवद्याथी हो। तुम्हारी पपटाई करने का मुझ े खेद भी है लेककन याद रखना कक न्जि पर मेरे बेंत बरिते हैं, वह महान पुरुर् बनता है।

    अध्यापक महोदय कह कर भूल गए होंगे, लेककन इन कहे हुए शब्दों को कलाम ने जीवन भर याद रखा और ननश्चय ककया कक अय्यर िादहब की इि बात को िाकार करके रहूाँगा। वास्तव में ही कलाम ने इि घटना को ित्य कर ददखाया। श्वाट््र्ष हाई स्कूल रामनाथपुरम ् की ही एक और घटना प्रभापवत करने वाली है। एक अध्यापक थे अयादरैु िोलोमन। यह अपने पवद्याधथषयों को बहुत प्यार करते थे। वे प्राय; िच्च-ेिुच्च े मेहनती बच्चों को उत्िादहत करते रहते। कलाम की प्रनतभा को पहचानने में

  • भी उनहें देर न लगी थी। वे प्रनतभाशाली छात्रों का मनोबल यह कहकर बढ़ाते कक आप अपने भीतर को झााँक कर देखो। आप के अंदर एक बड़ी प्रनतभा पवद्यमान है। उिे पहचानो, मेहनत और लगन िे उिका पवकाि करें।

    इनके पवर्य में कलाम न े स्वयं मलखा है –‘अयादरैु िोलोमन एक महान मशिक थे। वे िभी छात्रों को उनके भीतर नछपी शन्तत और योग्यता का अहिाि कराते थे। िोलोमन ने मेरे स्वामभमान को जगा कर उिे एक ऊाँ चाई दी। मुझ,े एक ऐिे माता-पपता के बेटे को, न्जिे मशिा का अविर बड़ी मुन्श्कल िे ममल पाया था, आश्वस्त कराया कक मैं भी अपनी उन आकााँिाओं को पूरा कर िकता हूाँ न्जनकी इच्छा करता हूाँ।‘ वे यह भी कहा करते थे कक ननष्ठा और पवश्वाि व्यन्तत की ननयनत बदल देते हैं। अयादरैु िोलोमन वास्तव में ही कलाम के मलए एक प्रेरणा पुञ्ज िाबत हुए। उिने इि अध्यापक के ये

  • शब्द अपने मन में उतार मलए थे, न्जन पर ननष्ठा और पवश्वािों का पहरा त्रबठा ददया।

    इधर अम्मी न ेएक िुखद अनुभूनत पाल रखी थी। वह अपने लाओ-गौहर के भपवष्य में िपने बोने लगी। एक ददन वह अपने बेटे को उिके व अपने दानयत्वों का बोध कराने के मलए पाि बैठा कर िमझाने लगी कक इंद्रदेव जब ऋतुएाँ गढ़ रहा था तो उिने एक ऋतु वािंत बनाई थी। इि रुत में जवााँ होते पेड़-पौधों पर उिने रंगीन पुष्प खखलाए। ऐिा करने िे बढ़ती हुई वनस्पनत को अपन ेवंश को बढ़ाने का अहिाि होता है। अत: बेटा! मैंने भी एक मााँ होने के नाते अपनी आाँखों में कुछ िपने िंजो रखे हैं। तुम भी िेहरा बााँध एक दलुदहननयााँ ले आओ तो मुझे भी रिोई-घर िे ककंधचत फुरित ममल जाए। नन:िंदेह हर मााँ का यह िापना होता है जो िमय आने पर िाकार हुआ करता है। लेककन बेटे अब्दलु का तो धचतन ही अलग था।

  • उिने मााँ के लालानयत नयनों में झााँका। खेद जताते हुए कहा कक माता यह िमय अभी नहीं आया है। मुझ े इि बंधन में मत बााँधना। अभी मैं इिे ननभा नहीं पाऊाँ गा। िमय भागता जा रहा है और मुझ ेअभी बहुत बड़-ेबड़ ेकायष करने हैं। मााँ ने अपनी ओर िे बहुत कुछ कह मलया—महापुरुर्ों के िंदेश, गुरु-पीरों की मशिाएाँ, वीर योद्धों के कारनामें, शरीकाचारी के ताने-मेने इत्यादद। लेककन पार्ाणों पर धगरे पानी की तरह िब व्यथष में बह गया।

    मााँ-ममता न ेआखखर अपना आाँचल फैला ददया, शैशव में पपलाए दधू का वािता देकर अपनी बात मनवाने के मलए जोर ददया। हामी भरने तक भूखी-प्यािी रह कर प्रतीिा करने की न्जद भी िावषजननक कर डाली। ककशोर मन न ेमााँ की आाँखों में आए आाँिू देखे और पोंछ डाले कक मााँ मुझ ेअपने अब्बा का नाम अमर करना है। अभी मैं यह न्जम्मादारी ननभा नहीं िकूाँ गा। यह बात ित्य है। िागर-

  • गहरे, पवषत-ऊाँ च े मााँ के अरमान धधकने लगे, एकाएक ज्वालामुखी झरना बह ननकला। इधर पार्ाण हुए मन पर कोई अिर न होता देख, मााँ ने गुरु-पीरों, महापुरुर्ों के उपदेश िुना डाले। मााँ की कुण्ठा, िंत्राि और वेदना बढ़ती देख अब्दलु ने अपने ननश्चय की ऊाँ ची उठी दीवारें प्रकट कर दीं। अपने ध्येय, अपने लक्ष्य की िीमाएं स्पष्ट कर दीं। इि प्रकार िमा याचना करते हुए शादी को अपने रास्ते में रुकावट कह कर बात टाल दी।

    घर में तूफान मच गया। अब्दलु का कठोर ननश्चय जानकर भाई-बहन, माता-पपता व अनय िब आहत हो आए। एक तरफ पूरा पररवार और दिूरी ओर एक अकेला अब्दलु। अब्दलु ने पररवार में घदटत हुआ िब जानकर, मााँ िे िमा याचना करते हुए कहा कक मााँ! भले मैं तुम्हारा ददल दखुाने का गुनहगार हूाँ कफर भी मुझ ेदआुएाँ देती रहना। जब जब मेरी राहों में अाँधधयारा नघरने लगे, तुम प्रकाश बनकर मेरा मागष रुशना देना। मैं तेरे आाँिुओं

  • की कीमत नहीं चकुा पा रहा हूाँ, कफर भी मैं आशा करता हूाँ कक मेरे िाथषक कायों िे तुम्हारा नाम अमर हो जाएगा। बाबा चपुचाप िब िहन कर गए, जो अपने अब्दलु को कलेतटर बना देखना चाहते थे।

    अब्दलु न ेअपने बाबा की प्रेरणाओं को तो िााँिों में बिा मलया था। इिी के बलबूते वह हर पवर्म न्स्थनत पर पवजय प्राप्त कर लेता। अपना कायषिेत्र आरम्भ करते हुए वह कभी बेमन नहीं हुआ था। इिने अपने बालपन में िमय का अनुपालन कर दानयत्वों का ननवाषह करना िीख मलया था। एक बार वे भारत के तत्कालीन रिा-मंत्री श्री वी.के. कृष्णा मेनन के िहयोग िे िेना के मलए ‘नंदी’ नामक हॉवरक्राफ्ट का माडल बनाने में जुटे। तब की न्स्थनतयों को कलाम ने स्वयं अपनी आत्मकथा में इि प्रकार उद्धतृ ककया है –‘ मैं िभी बाहरी कदठनाइयों को भुला कर अपनी प्रयोगशाला में उिी प्रकार जाया करता

  • था न्जि तरह मेरे पपता जी अपने जूते बाहर उतार कर मन्स्जद में नमाज पढ़ने जाया करते थे।

    अब्दलु अपने बाल्यकाल िे ही बड़ा फुरतीला व हर कायष के मलए तत्पर रहता था। अपनी आठ वर्ष की आयु में ही इिने अपने चचरेे भाई शमिुद्दीन की िहायता के मलए अखबार बााँटने आरम्भ कर ददए थे। कभी कभी अखबार खोलकर िुखखषया भी पढ़ लेता। बड़ी बात तो यह कक अब्दलु अपने स्कूल के मलए कभी देरी िे न पहुाँचा था। दिूरे पवश्वयुद्ध के ददनों में लोगों में िमाचार पढ़ने की उत्िुकता होती थी, रामेश्वरम ् में गाड़ी का रुकना बंद हो गया। अब पेपर दरू ि ेलाने पड़ते, कफर भी िमाचार पत्रों के आबंटन को िमय िे ननपटा लेता था।

    ‘िोलोमन’ का दीप जलाया धीरे-धीरे प्रकाश स्तंभ बनता गया। इि दीप में न तो कभी कामलख ही

  • उपजी थी और न ज्योनत का दंभ। इिने अपना पवश्वाि और ननष्ठा को कभी पवचमलत न होने ददया था।

    बी.एि.िी. तक की पढ़ाई कलाम ने अपने ननजी श्रम ि ेधन इकट्ठा करके िम्पनन कर ली थी। अब आगे बढ़ने के मलए बालक के ननश्चय की दीवार की नींवें कमजोर पड़ने लगीं। आगे बढ़ते कदमों में भ्रम एवम ् अननश्चय के कााँटे त्रबछने लगे। अब चनेई में इंजीननयररगं में प्रवेश का िमय था। घर िे दरूी और एक बड़ी रामश का शुल्क चकुाना मानों अिंभव चनुौती थी। जेब खाली होन ेपर भी कलाम की आाँखों में पवश्वाि की एक अलौककक चमक भरी रही। चचंल मन कल्पनाओं के भाँवर में डूबता-इतराता मुट्ठी भर अरमान मलए इत-उत उठता-बैठता रहा । तया करे, ककिे कहे, तया कहे? घर-पररवार की हालत उििे छुपी न थी।

  • चारों खाने धचि जानकर भी हार नहीं मानी थी। कभी चाणतय तो कभी चंद्रगुप्त बन बुद्धध के चनैल घुमाता रहता। बहन ‘जोहरा’ बड़ी थी, बालकपन ि े ही दोनों में आत्मीयता घुटी रहती थी। जोहरा की शादी ‘अहमद जलालुद्दीन’ िे हो चकुी थी। जलालुद्दीन भी कलाम िे ममत्रवत भाव िे रहता था। जोहरा यह जानकर कक अब्दलु भाई पढ़ाई ननबटा कर घर आ चकुा है, पनत के िाथ उििे ममलने आ गई। रामेशवरम ् आकर देखा कक आज अब्दलु कुछ उखड़-उखड़ा है, ककिी िे हाँि कर ममलता-बैठता नहीं, तो वह कारण जानने की चषे्टा करन ेलगी। आखखर बहन थी, घर की बेटी थी। वास्तपवकता तो प्रकट होनी ही थी। जोहरा हर हाल भाई को महान बनाना चाहती थी। बार-बार कुरेदने पर भेद अभेद हो गया। अब जोहरा गूाँगी-बहरी बनकर नहीं रहना चाहती थी, लेककन उिके ििुराल वाले भी िाधारण पररवार िे थे। पनत िाथ

  • था इि मलए उिने अब्दलु की चपु्पी का राज उििे िाझा ककया।

    खदुा के मलए पनत-पत्नी दोनों की राय एकमत थी। दोनों चाहते थे कक कलाम हर हाल आगे पढ़े। लेककन प्रश्न एक बड़ी रामश जुटाने का था। यह बात िन ् 1954 की है। इंजीननयररगं की फीि एक हजार रुपए थी। दोनों ने पवचार बनाया कक जोहरा अपने िारे आभूर्ण बेच दे और एक हजार रुपए जुटाकर अब्दलु को प्रवेश ददलाने में िहायता करे। दोनों मीयंा-बीवी चपुचाप बाजार के मलए ननकले। पहले पीर की ममह्र उठाई, बाद में महाजन की दकुान ढूाँढ कर गहने धगरवी कर, एक हजार रुपयों की हंुडी मलखवा ली।

    घर लौट कर अब्दलु को बुलवा मलया, बहन ने भाई का मिर पलोि कर पहले मीठी डााँट पपलाई, कफर प्रवेश पाने का हल स्पष्ट कर ददया। अब्दलु धमष िंकट में

  • फंि गया। बहन का नाक, कान, कण्ठ खाली देख पवचमलत हुआ। उि े यह िब भी मंजूर नहीं था। घर-पररवार में तलेश होने लगा। अतंत: और कोई चारा नहीं होता देखकर िब को नीम-बकायन का घूाँट पीना पड़ा। पारस्पररक पवरोध धीरे-धीरे दब गया। िहमनत बनते अब्दलु इंजीननयररगं में प्रवेश पाने चनेई चला गया। चेनई में कुछ पुराने ममत्रों न ेममलकर प्रिननता में जश्न मनाया कक अब्दलु का प्रवेश हो गया, न्जििे उन िब का पारस्पररक िंबंध बना रहेगा।

    अब्दलु को पवशाल अतंररि पवज्ञान का पवर्य ममल गया। िमय-िमय पर अब्दलु अपने पवर्य में ननत नई ऊाँ चाइयााँ छूने लगा। अध्यापक वगष अब्दलु िे िंतुष्ट रहता, वह जी भरकर अब्दलु का प्रोत्िाहन करता। प्रिननता के मारे रोज-रोज अब्दलु की पीठ थपथपाते रहे। अब्दलु को अम्मी अब्बा की दआुएाँ याद रहतीं। ज्यों-ज्यों

  • िफलता कदम चमूती, त्यों-त्यों अब्दलु का आत्मपवश्वाि जमता गया। अवकाश होते ही चार ददनों के मलए अब्दलु रामेश्वरम ् लौट आया। अपने गााँव के मंददर-मन्स्जद िीि ननवाया, बहन-भाइयों िे ममलकर अपना लक्ष्य बताया। अब्दलु ने पद, पैिा, परुस्कार, प्रनतष्ठा और अपने नए पररवेश का अनुभव बााँटा। परूा पररवार धनय हो गया। अब्दलु की दधू चााँदनी िफलताओं न ेिौ-िौ रास्ते खोल ददए।

    घर-पररवार में एक ददन चचाष चली कक आखखर अपने किबे का नाम रामेश्वरम ् तयों है, तो बाबा ने परूी रामायण ही िुना डाली। भरे पूरे पररवार में ककिी के मन में द्वैत भावना न थी। िबन ेआन्त्मक लगन िे कथा िुनी थी। महराज दशरथ िे लेकर िीता अपहरण की कथा-कहानी बड़ ेिम्मान के िथ िुनाई। कफर बताया कक दषु्ट रावण को दण्ड देने के मन िे श्री रामचदं्र जी ने अपनी िफलता के मलए यही ंपर मशवमलगं की स्थापना करके

  • आराधना की। यहीं पर िे िमुद्र-िेतु तैयार करवाने का ननश्चय ककया, तयोंकक यहााँ पर जल प्रवाह कम था और िमुद्र का िेत्र िंकरा था। श्री राम चदं्र द्वारा रावण पर पवजय प्राप्त कर लेने िे, इि स्थान का महत्त्व बढ़ गया। धीरे-धीरे आबादी होने लगी। मशवमलगं की स्थापना वला स्थान मंददर बन गया और कफर मुगलों के िमय पर यहााँ मन्स्जद का ननमाषण हो आया। अब यह स्थान रामेश्वरम ् धाम के नाम िे पवख्यात है। फलस्वरूप अब्दलु ने मन में प्रण धारण कर मलया कक वह रामेश्वरम ् का नाम एक बार पुन: रोशन करेगा।

    शोध-परीिाओं व पद, प्रनतष्ठा वाला दौर आरम्भ हो आया। अब्दलु को चनुनट और चनुौनतयों भरा हर िेत्र अच्छा लगता, तयोंकक उिने हर कढ़ुवा ित गले लगाना िीखा था। िन ् 1958 में पहली बार उिकी ननयुन्तत डी.टी.डी. एण्ड पी. एयर में हुई। कफर रिा शोध पवकाि

  • िंगठन (डी.आर.डी.ओ.) में वररष्ठ वैज्ञाननक का पद पाकर प्रोटोटाइप ‘होवर क्राफ्ट’ का पवकाि ककया। िन ् 1962 आते रिा शोध को त्याग कर, अतंररि के िेत्र में ननयुन्तत पा गए। आपने इि पवभाग में 20 वर्ों तक रह कर नए अनुिंधान करते हुए अपने धचतंन िे पवकाि को नई ददशाएाँ प्रदान कीं। िन ् 1971 में अपना दायां हाथ रहे डॉ. िाराभाई की मतृ्यु के िमाचार न ेयुवा वैज्ञाननक कलाम को झकझोर ददया। ऐिी पवर्म न्स्थनत में पपता की धीरज वाली आकृनत ने प्रकट होकर उत्िादहत ककया।

    अब अब्दलु कलाम को एि.एल.वी. पररयोजना का प्रबंधक ननयुतत कर ददया गया। यहााँ पर एकदम िे नई और प्रानतकूल न्स्थनतयों में इनहें डॉ. ब्रह्म प्रकाश का िहयोग ममलते िब िामानय होने लगा। आप न ेफ्ााँि में एि.एल.वी-थ्री एपोजी राकेट तैयार ककया। उिका िफल परीिण करके लौटे ही थे कक डॉ. ब्रह्म प्रकाश ने िंदेशा

  • ददया, कक जमषन के महान वैज्ञाननक ‘वनषहर फॉन ब्रॉन, जो अमेरीका के ‘ममशन अपोलो’ के िूत्रधार रहे हैं, वे आ रहे हैं। उनका स्वागत करके उनहें ‘थमु्बा’ लेकर आना है। कलाम न ेचनेई िे थुम्बा आते हुए पवमान में फॉन ब्रॉन िे बातचीत करते हुए कुछ और अनुभव प्राप्त ककए। इि वैज्ञाननक ने जमषन के मलए खकुफया तौर पर ‘वी-टू’ का ननमाषण ककया था। इिके द्वारा दि हजार ममिाइल तैयार करने पर दहटलर तन आया। उिने त्रब्रटेन पर ये ममिाइल ऐिे दागे कक गोरे दंग रह गए। तभी उिके िहयोगी देशों न ेछल का िहारा लेते हुए फॉन ब्रॉन को बंदी बना मलया था। इिे अमेरीका ले जाकर ‘ममशन अपोलो’ थमा ददया गया। वहााँ पर रहकर इिने मानव-युतत शनन राकेट को चदं्रमा पर उतार ददया था।

    दोनों में बातचीत का मिलमिला चलता रहा। फॉन ब्रॉन न े कलाम को िुझाया कक यदद रॉकेट पवज्ञान को अपनाओ तो िावधान रहना। इिे अपना ममशन, धमष

  • और जनून बना लेना होगा। इिे आजीपवका मत बनने देना। िर कलाम पहले िे ही कुशाग्र बुद्धध, ननपुण, और कुशल थे, उिका आशय जान गए। उधर डॉ. ब्रह्म प्रकाश न ेभी िीख दे दी कक धयैष और िहनशीलता के बल पर ही नई ऊाँ चाइयों को छुआ जा िकता है। कलाम अपनी पवलिण िमता और प्रनतभा के बल पर अपने ममशन में जुट गए। उनहोंन े अपने िहयोगी नारायणन को डी.आर.डी.ओ.योजना के अतंगषत ममिाइल का कायष थमा ददया। रूिी ममिाइल एि.ए.--टू का िवेिण करने और स्वदेशी तकनीक के पवकािाथष एक वैज्ञाननक और बढ़ा मलया।

    िन ् 1972 में ‘डपेवल’ कोड पररयोजना आरम्भ कर दी। तीन वर्ों में पााँच करोड़ का अनुमान लेकर चले थे। नारायणन के कायों ि े िंतुष्ट होकर कलाम ने उिे एयर कमाण्डर और ननदेशक बना ददया। नारायणन एक युवा, उत्िाही और धनु का पतका

  • व्यन्तत था। उिके पररश्रम और अथक लगन ने उिमें िौ घोड़ों की शन्तत भर रखी थी। अब कलाम िर की अगुवाई में पवक्रम िाराभाई स्पेि िेंटर में एि.एल.वी. पररयोजना गनतशील व िाथषक बन आई थी। कलाम िर का व्यन्ततत्व नन:िंदेह एक भोले-भाले िामानय वैज्ञाननक का बना रहा था, तथापप वे अपने मिद्धांतों अथवा आदशों िे कभी िमझौता न करते थे। वे लाल फीताशाही की अिहयोग की नीनतयों िे धचढ़ते थे।

    अब कलाम िर ने एि.एल.वी.थ्री योजना के अतंगषत श्री हररकोटा लााँच स्टेशन िे पहली उड़ान, िन ् 1978 में िम्भव बनाने के मलए अनुक्रम तैयार कर मलया था। िभी वैज्ञाननकों में नव ऊजाष का िंचार हो गया। जन िाधारण के मलए रॉकेट प्रिेपण एक नया अध्याय था। अंतररि पवज्ञान में भारत एक कक्रश्मा करने जा रहा था। इनहोंने अपनी योजना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंददरा गााँधी िे कह दी, न्जििे

  • उनमें एक नया कौतुहल जग गया। उि ने घोर्णा कर दी कक िन ् 1978 में भारत अपने प्रथम उपग्रह का प्रिेपण करेगा। यह उद््घोर् िमाचार पत्रों में िुरखी बनकर छपा। पूरे पवश्व की आाँखें चुधंधयाने लगीं। पवदेशी वैज्ञाननक हतप्रभ रह गए। लेककन िमय आने पर प्रयाि अधरूा मिद्ध हुआ और हमारा रॉकेट िमुद्र में जा धगरा। िमीिा हुई, डॉ. कलाम के मन में ननराशा उत्पनन हुई। डॉ. ब्रह्म प्रकाश न ेउत्िाह बढ़ाकर कलाम िर को एक बड़ ेिदमें िे उबार मलया।

    उत्िाहों की भट्टी तपकर िोना कंुदन बन आया। पूरी टीम कफर िे िमपपषत भाव िे जुट गई थी। भारत के दामन में मलखा जा रहा इनतहाि कफर िे उददत होने लगा। अब उपग्रह को ‘रोदहणी’ नाम ददया गया। 18 जुलाई िन ् 1980 को प्रात: आठ बजकर तीन ममटं पर श्री हररकोटा उपग्रह कें द्र िे कफर िे रॉकेट लााँच ककया गया। उल्लािों की गंध त्रबखर गई। िर कलाम िदहत वैज्ञाननकों की पूरी

  • टीम पुलककल एवम ् आनन्नदत हो आई। छ: िौवें िेककंड में कलाम खशुी िे उछल पड़,े उपग्रह की स्थापना हेत ुचौथे चरण की ऊजाष बढ़ गई थी। अगले ही िण अतंररि की ननचली ितह में उपग्रह स्थापपत हो गया। िफल हुए ममशन की बधाइयााँ बाँटने लगीं। पुरुर्ाथष की पवमल व्याख्या हो आई थी। इंददरा जी न े फोन पर िभी वैज्ञाननकों को शुभ कामना िंदेश देकर उनका उत्िाह बढ़ाया और देश वामियों का मिर गवष िे ऊाँ चा उठ आया। इि प्रकार देश उपग्रह प्रिेपण में आत्म-ननभषर हो आया। ददन भर रेडडयो और टेलीपवजन डॉ. कलाम की िफलता का गुणगान करते रहे।

    डॉ. कलाम का िपना तो पूरा हो गया लेककन चाव अधरेू ही रह गए थे, तयोंकक उिे ित्प्रेरणा देने वाला अब कोई इि जगत में नही ंबचा था। आज वह अपनी मााँ के दधू की कीमत उि े लौटाना चाहता था। अब्बा भी इि

  • दनुनयााँ िे कूच कर चकेु थे। काल के अतंराल िे प्रेरणा के स्रोत पप्रय अध्यापकों का कुछ अतापता न रहा था।

    देश-पवदेश में रहने वाले रहने वाले भारतीयों ने डॉ. कलाम को मिर- आाँखों पर त्रबठा मलया। एि.एल.वी.थ्री पररयोजना जीतकर, आगे बढ़े कलाम न ेडी.आर.डी.एल के ममिाइल के पवकाि-क्रम को िाँभाला। फरवरी िन ् 1981 में डॉ. भागीरथ राव ने एक वततव्य हेतु देहरादनू में आमंत्रत्रत ककया। डॉ. कलाम ने अपने िंभार्ण में अशं-अशं पर दटप्पणी करते हुए िब का मन जीत मलया। यहीं पर भारत के प्रमिद्ध वैज्ञाननक डॉ. राजा रामनना भी उपन्स्थत थे, उनहोंने चाय के िमय डॉ. कलाम को बधाई देते हुए कहा कक आप तो डॉ. ‘िाराभाई’ के िमकि हो आए हो। तब डॉ. रामनना तत्कालीन रिामनत्री के िलाहकार थे। उनहोंने ममिाइल कायषक्रम की धीमी गनत पर प्रनतकक्रया व्यतत करते हुए, डॉ. कलाम को इिका नेततृ्व करने हेत ु

  • िहमत कर मलया। डॉ. प्रोफेिर ‘धवन’ ने भी अपनी ओर ि े कलाम िर के नेततृ्व पर अपनी मोहर लगा दी। फलस्वरूप ईिरो िे डी.आर.डी.एल. में बदली हो गई।

    डॉ. कलाम ने डी.आर.डी.एल. िंस्थान में आते ही चल रही योजानाओं को जाना। क्रम पवकाि की पााँच योजनाएाँ चल रहे थी,ं लेककन काम नाम मात्र का ही हो पाया था। कलाम िर योग्य एवं कुशल प्रबंधक थे। इनहोंने आधनुनकतम ममिाइल बनाने हेतु ‘इंटीगे्रदटड गाइडडड ममिाइल’ डडवेलपमेंट प्रोगराम का पप्रटं तैयार करके िम्बंधधत मत्रालय में मभजवा ददया। रिा मंत्री पप्रटं देखकर पवन्स्मत हुए त्रबना नहीं रहे थे। उनहोंने अनुभव ककया कक कलाम वास्तव में काम करने वाला व्यन्ततत्व है।

    डॉ. कलाम ने भारतीय िेनाओं की तत्कालीन आवश्यकताएाँ जानी, जल, थल व वायु िेना की भावी

  • अपेिाओ ंको अनुभव ककया। आप पवश्व की िेनाओं की िमताओं िे वाककफ थे । इि मलए योजना बनाई कक िमय के अनुरूप कैिे ककिी शत्र ु को लंगी लगाई जा िकती है, कैिे धोत्रबया पाट में मलया जा िकता है। अपने गुरुजनों व अम्मी-बाबा की िून्ततयों-स्मनृतयों का ध्यान ककया और िचते हो आए। पााँचों योजनाओं को नया रूप देने के मलए नई टीमों का कफर िे ननधाषरण ककया गया।

    ‘पथृ्वी’ के पररयोजन का नेततृ्व कनषल वी.जे.िुंदरम ् को प्रदान कर ददया। कनषल िुंदरम ् िेना की ई.एम.ई कोर में रहे थे। आप एयरोनॉदटकल इंजीननयररगं में स्नात्कोिर व मैकेननकल वाइब्रेशन में प्रवीण थे। ऐिे ही ‘त्रत्रशूल’ योजना के मलए नौ िेना कमाण्डर एि.आर.मोहन को उपयुतत जानकर टीम का कायष िौंप ददया। उपरोतत दोनों टीमों में दो युवा िहायक भी उपलब्ध करवा ददए जो अपने कायों के मलए िमपपषत भाव रखते थे। इन टीमों का चयन कोई मामूली कायष नहीं था,

  • बन्ल्क एक चनुौतीपूणष प्रकक्रया थी। अब बारी थी ‘आकाश’ और ‘नाग’ की। इन दोनों योजनाओं पर भी उपयुतत एवं कमषठ व्यन्ततयों का चयन ककया गया। ‘आकाश’ पररयोजना प्रहलाद को और ‘नाग’ का दानयत्व एन.आर. नैयर को िोंप ददया गया।

    अब बारी थी पंचम पररयजना ‘अन्ग्न’ की। इि ेअनत महत्वपूणष योजना जानकर कलाम िर ने अपने हाथों में ले मलया। कलाम का धचतंन घोड़ा मद्राि जा पहुाँचा। उन ददनों वहााँ न्स्थत डी.आर.डी. में आर.एन.अग्रवाल प्रबंधन िंभाले हुए थे। कलाम ने तुरंत उनहें अपने िंयोजन में िाथ ले मलया। पााँचों िंजीदा टीमों की पुनस्थाषपना करके िर का मन िंतुष्ट हो गया। पााँचों टीमों न ेअपनी-अपनी शतरंज त्रबछाकर गोदटयााँ थाम लीं। िंयोजकों को ददन रात के िमय की पारी का ध्यान न रहा था। िब ने देश की अस्मत, िेनाओं की आत्मननभषरता

  • और डॉ. कलाम की कमान को ब्रह्म वातय मानकर अधधमान ददया था। वर्ों पूवष ‘इमारत कंचा’ नामक स्थान, न्जिे टैंक-भेदी ममिाइल के परीिण हेतु ढूाँढा गया था, अब कफर िे ममिाइल िंयोजन चके आऊट के मलए ननधाषररत कर मलया गया।

    ममिाइल प्रणाली और पवकाि का मध्यांतर ममटने को आ गय। ओडीिा की बगल में बंगाल की खाड़ी में चााँदीपुर को परीिण स्थल हेतु तैयार ककया जाने लगा। टेस्ट-रेंज के पाि एक घना जंगल था। डॉ.कलम न ेिावधान कर ददया कक इि आरण्य में ककिी पशु-पिी को हानन नही ंपहुाँचाई जाए। िन ् 1983 में तत्कालीन रिामंत्री आई.जी.एम.डी.पी. का ननरीिण करने आए तो आश्वस्त हो गए कक अब जल्दी ही िपने िाकार होने वाले हैं। उनहोंने िभी वैज्ञाननकों का उत्िाह-वधषन ककया। ‘अन्ग्न’ ममिाइल बन कर तैयार हो गई। डॉ. कलाम इिे देख-देख

  • कर फूले नहीं िमाते थे। बहुआयामी वैज्ञाननकों की टीमों नें देश के ‘ममिाइल मैंन’ का लोहा मान मलया।

    यह ‘अन्ग्न’ ममिाइल एक टन बोझ लेकर 1500 ककलोमीटर तक उड़ने में ििम थी। यदद पवस्फोटक का बोझ कम कर ददया जाए, तो इिकी मारक िमता और बढ़ िकती थी। ‘अन्ग्न’ धरती िे धरती पर मार करने का एक िटीक अस्त्र है। 22 मई िन ् 1989 को इिका प्रथम िफल परीिण ककया गया। दिूरा िफल पारीिण 29 मई 1992 को ककया गया।

    इिके िंशोधधत रूप ‘अन्ग्न—2’ का परीिण 11 अप्रेल 1999 और पुन: 17 जनवरी 2001 में ककया गया। दोनों परीिण िफल मिद्ध हुए। ‘अन्ग्न—2’ की मारक िमता 2000 ककलो मीटर तक अचूक प्रहार करने की है। पूरा देश गौरवान्नवत हुआ और डॉ. कलाम वा उनकी पूरी टीम को भरपूर िम्मान ददया गया।

  • इिके पश्चात ् ‘अन्ग्न—1’ का परीिण 25 जनवरी 2002 को ककया गया। इि की मारक िमता 700 तक की है और यह एक टन का पवस्फोटक लेकर जा िकती है।

    ‘पथृ्वी’ का परीिण भी िाथ-िाथ होता रहा। इिके दो िंस्करण तैयार ककए गए। इिकी मारक-िमता 150 ककलोमीतर है यह भारतीय थल िेना के मलए बहुत उपयोगी है।

    ‘पथृ्वी—2’ की मारक िमता 250 ककलोमीतर की है और यह वायु िेना के मलए पवशरे् रूप िे महत्त्वपूणष है।

    ‘पथृ्वी—1’ इिे भी िेना को िौंप ददया गया था।

    ‘त्रत्रशूल’ : इि ममिाइल का प्रयोग िेना के तीनों अगंों द्वारा ककया जा िकता है। यह धरती िे हवा में मार करने वाली अचकू ममिाइल है। यह 500 मीटर िे लेकर 9

  • ककलोमीटर तक अपना काम करती है और मात्र 15 ककलोग्राम तक का पवस्फोटक ले जाती है।

    ‘नाग’ : यह टैंक भेदी ममिाइल है जो हर प्रकार के मौिम में कारगार है। इिके प्रभाव िे टैंक बच नहीं िकता है। यह वजन में बहुत हलकी है और मात्र 4 ककलोमीतर तक मार कर िकती है।

    ‘धनुर्’ : िुरिा अनुिंधान एवं पवकाि िंस्थान ने डॉ. कलाम की देख-रेख में ही ‘धनुर्’ नाम देकर ‘पथृ्वी’ ममिाइल का नया िंस्करण तैयार कर मलया था, न्जि ेजहाज ि ेछोड़ा जा िकता है।

    ‘अस्त्र’ : नामक ममिाइल हवा िे हवा में मार करने वाली है। इिे हलके पवमान िे छोड़ा जा िकता है।

    ‘आकाश’ : यह ममिाइल हवा अथवा धरती िे छोड़ी जा िकती है। यह 600 मीटर प्रनत िैककंड की गनत िे

  • उड़ने वाली अचकू ममिाइल है। इिकी मारक िमता अधधकतम 30 ककलोमीटर तक ही है। लक्ष्य यदद ननकट हो तो और भी जल्दी बेध िकती है।

    ‘ननशांत’ : भारतीय रिा अनुिंधान एवं पवकाि द्वारा डॉ. कलाम की अगुवाई में कफर िे इस्तेमाल ककए जाने योग्य बनाया गया था। यह रीमोट िंचामलत है और इिे केवल एक बार प्रयोग होने वाली ममिाइल के रूप में भी इस्तेमाल ककया जा िकता है। यह अत्याधनुनक िंवेदनशील राडार को भी चकमा देने में ििम है।

    ‘अन्ग्न’ और ‘पथृ्वी’ ममिाइल के परीिण के पश्चात ् िन ् 1990 आते-आते डॉ. तलाम को ‘पद्म पवभूर्ण’ िम्मान देकर अलंकृत ककया गया। िम्मान ममलते ही डॉ. कलाम को उिके माता-पपता और गुरुजन का स्मरण हो आया और आाँखें छ्लक उठीं। डॉ. कलाम ने स्वयं मलखा है कक जब इनहें ‘कामराज यूननवमिषटी’ मदरुाई के दीिांत

  • िमारोह में भार्ण देने के मलए आमंत्रत्रत ककया गया था, तब इनहें वहााँ जाकर पता चला कक इनके वदृ्ध अध्यापक िोलोमन इिी नगर में रहते हैं। यह टैतिी लेकर उनहें ममलने के मलए जा पहुाँच ेथे। ममलकर दोनों ही की आखों िे स्नेहभाव उमड़ आया। डॉ. िादहब उनहें अपने िाथ िभागार में ले आए और मचं पर िुशोमभत कर िम्मान ददया। डॉ. िर न ेवो मशिा दोहराई जो वर्ों पूवष इन गुरु जी ि ेप्राप्त की थी।

    ‘ब्रह्मॉि िुपर िॉननककू्रर् ममिाइल’ : इि पररयोजना को भारत और रूि के वैज्ञाननकों ने िंयुतत प्रयाि ि ेअजंाम ददया था। इिीमलए इिका नाम दोनों देशों की नददयों—ब्रह्मपुत्र और मास्को नदी के नाम को ममला कर ‘ब्रह्मॉि’ रखा गय। इि ममिाइल के चााँदीपुर ि ेदो बार िफल परीिण, पहले 12 जून 2001 को और दिूरा 28 अप्रेल 2002 को ककए गए। इि पररयोजना को िफलतापूवषक पूरा करने में भारतीय रिा अनुिंधान एवं

  • पवकाि तथा िांइदटकफक ररिचष इंस्टीट्यूट आफ मशीन त्रबन्ल्डगं, मॉस्को का िंयुतत योगदान रहा। भारतीय रिा अनुिंधान एवं पवकाि के मुख्य ननयंत्रक डॉ. ए. मिवाधनु पपल ै ब्रह्मॉि कम्पनी के प्रबंध ननदेशक रहे। इि पररयोजना के िंचालन का आधार डॉ. कलाम द्वारा पवकमित की गई ममिाइल तकनीक ही रही थी। ब्रह्मॉि की गनत ध्वनन की गनत िे भी तीन गुणा अधधक है। यह जहाज भेदी ममिाइल है। इिे जहाज, पनडुब्बी, पवमान, जमीन अथवा ऊाँ ची इमारत िे भी छोड़ा जा िकता है। इिकी मारक िमता 280 ककलोमीटर थी। यह एक बहुलक्ष्य भेदी ममिाइल है। इिकी तकनीक में उिरोिर पवकाि चालता रहता है।

    इि प्रकार यह कहा जा िकता है कक डॉ. कलाम आधनुनक भारत के महान तकनीमशयन हैं, न्जनहोंन ेभारत की िैनय शन्तत को मजबूत करने और इिे पवश्व भर में बेजोड़ बनाने के मलए एक पवलिण तकनीक को

  • जनम ददया। इिी कारण इनहें ममिाइल मैन के नाम िे जाना जाता है।

    डॉ. ए.पी.जे.अब्दलु कलाम बहु आयामी व्यन्ततत्व थे। जहााँ इनहोंने देश की तीनों िेनाओं को आत्मननभषर बनाने के मलए नए-नए अनुिंधान ककए, वहीं धचककत्िा पवज्ञान में भी देश को ननत नई तकनीकें देकर न जाने ककतने ददव्यांगों का ददष बाँटाया । एक हल्का पदाथष खोज कर पहले तो वायुयान हलके कर ददए, कफर ददव्यांगों की पीड़ा जानकर, उिी हलके पदाथष ‘काबषन-काबषन’ िे पोमलयो ग्रस्त रोधगयों के मलए ‘केमलपर’ बना ददए। पहले ऐिे रोधगयों को तीन ककलो के केमलपर िे टााँग को स्पोटष ककया जाता था। अब मात्र 300 ग्राम वजन के केमलपर िे टााँग को िहारा ददया जाने लगा। बच्चों, बूढ़ों व युवनतयों को अब चलना कफरना आिान हो गया। वास्तव में इि हलके पदाथष की खोज डॉ. कलाम ने हलके लड़ाकू पवमान

  • बनाने के मलए ककया था। ऐिे पवमानों िे युद्ध के दौरान ममिाइल आदद छोड़ने का काम ककया जाता है।

    डॉ. कलाम स्वयं इि घटना के िंदभष में बताते हैं –“ एक ददन ‘ननजाम इंस्टीट्यूट आफ मेडडकल िाइंिेर् के पवकलांगता धचककत्िक मेरे पाि आए। उनहोंने मेरे पाि रखे ‘काबषन-काबषन’ नामक पदाथष को उठाकर देखा। वह बहुत हल्का था। वे तुरंत मझु ेअपने अस्पताल ले गए और अपने मरीज ददखाए।

    वहााँ अनेक लड़के-लड़ककयााँ पोमलयो रोग िे पीडड़त थे। उनहें तीन ककलोग्राम वजन के केमलपर पहनाए हुए थे। िब लोग बहुत कष्ट में थे। उनहोंने मुझ िे प्राथषना की कक मैं उनके मलए कुछ करूाँ । मैंने उनिे तीन िप्ताह का िमय मााँगा। तीन िप्ताह के अदंर मैंने अपनी कायषशाला में 300 ग्राम वजन के केमलपर तैयार करवा कर उन बच्चों के पहनवाए।

  • अब वे िब बड़ी आिानी िे चल िकते थे। बच्च ेहलके केमलपर पहन कर चले तो उनकी आाँखों में खशुी के आाँिू थे। उनके मन में हमारे मलए दआुएाँ थीं। शायद वे गवष ि ेभी भरे थे।“ इि प्रकार िे अपने ही देश की कायषशाला में बने इन केमलपरों ने पवकलााँगता धचककत्िा की दनुनयााँ में एक नया अध्याय जोड़ ददया।

    इिी प्रकार एक अनय नई तकनीक की बात जाननएं। हृदय रोग में ‘बेलून एंन्जयोप्लास्टी धचककत्िा’ में अथवा बंद धमननयों को खोलने के मलए एक पवशरे् प्रकार के ‘बेलून’ का उपयोग ककया जाता है, कफर धमनी को खुला रखने तथा उिे नष्ट होने िे बचाए रखने के मलए छोटे स्टैंड लगा ददए जाते हैं। ये स्टैंड पवदेश िे माँगवाए जाते थे, और माँहगे भी थे। डॉ. कलाम ने यही स्टैंड अपनी कायषशाला में बनवाए जो िवषथा बहुत िस्ते और िमीचीन थे। इि मलए डॉ. कलाम कहा करते थे कक पवज्ञान के पाि बहुत िे पवकल्प हैं। न्जनका अपवष्कार

  • जन िामानय को बहुत उपयोगी मिद्ध हो िकता है। यदद हमारे देश के तैयार हो रहे वैज्ञाननक और तकनीमशयन िमय की आवश्यकताओं को बारीकी िे जान लें तो देश का बहुत कल्याण हो िकता है।

    डॉ. कलाम िदा निीहत करते रहते थे कक जहााँ चाह हो वहााँ राह भी ममल जाती है। हमें अपना आत्मपवश्वाि जागतृ करना है। प्रौद्योधगकी में अनंत-अपररममत िंभावनाएाँ हैं। नए वैज्ञाननकों को िूझ-बूझ िे काम लेकर िजृनशील बनना है। बड़ े िपन े देखो, बड़ा धचतंन रखो। िमय नहीं रुकता, बहता पानी नहीं रुकता। अपने आप पर आश्वस्त होकर अपने कायों में जुट जाएाँ तो हर अमभलार्ा पूणष होगी। युवकों में नया जोश चादहए, उनकी मुट्दठयों में तूफानों को जकड़ने की िमता चादहए। यह देश हमारा है, हमने ही ममलकर इिे पवकमित करना है।

  • एक िंदभष बताते हुए डॉ. कलाम कहते हैं कक एक बार व ेहैदराबाद के एक स्कूल के मंच